बिहार की राजधानी पटना से लगभग 35 किलोमीटर दूर खुसरूपुर प्रखंड में स्थित बैकटपुर गांव, धार्मिक श्रद्धा का एक अत्यंत महत्वपूर्ण केंद्र है। इस गांव में स्थित “श्री गौरीशंकर बैकुंठधाम मंदिर” न केवल पौराणिक और ऐतिहासिक दृष्टिकोण से विशिष्ट है, बल्कि अपनी अद्भुत विशेषताओं और भक्तों की अगाध श्रद्धा के लिए भी जाना जाता है। भगवान शिव और माता पार्वती का संयुक्त रूप में एक ही शिवलिंग में विराजमान होना, इस मंदिर को विश्व भर में अनोखा और अद्वितीय बनाता है।
इस मंदिर के पुनर्निर्माण की ऐतिहासिक कथा मुगल सम्राट अकबर के सेनापति राजा मान सिंह से जुड़ी हुई है। जब वे बंगाल विद्रोह को दबाने के लिए गंगा के रास्ते अपने परिवार और सैन्य दल के साथ रवाना हुए, तो उनकी नाव कौड़िया खाड़ में फंस गई। कई प्रयासों के बावजूद नाव आगे नहीं बढ़ सकी। रात का समय होने पर उन्हें वहीं रुकना पड़ा।
रात्रि विश्राम के दौरान राजा मान सिंह को स्वप्न में भगवान शिव के दर्शन हुए। शिव ने उन्हें आदेश दिया कि वे पास के एक जीर्ण-शीर्ण मंदिर का पुनर्निर्माण करें। सुबह होते ही मान सिंह ने मंदिर निर्माण का आदेश दिया। इसके बाद ही उनका मार्ग प्रशस्त हुआ और उन्होंने बंगाल में विजय प्राप्त किया। मान सिंह ने जिस शिवलिंग की पुनर्स्थापना किया, वही आज बैकटपुर धाम में शिव-पार्वती स्वरूप में पूजित है।
बैकटपुर धाम मंदिर को “श्री गौरीशंकर बैकुंठधाम” के नाम से भी जाना जाता है। इसकी सबसे बड़ी विशेषता यह है कि यहां भगवान शिव और माता पार्वती एक ही शिवलिंग में विराजमान हैं। इसके अतिरिक्त, इस बड़े शिवलिंग में 112 छोटे-छोटे शिवलिंग भी कटिंग किए गए हैं जिन्हें रूद्र कहा जाता है। इसे द्वादश शिवलिंग या रूद्र शिवलिंग धाम के रूप में भी जाना जाता है। ऐसी मान्यता है कि बैकटपुर जैसा शिवलिंग पूरे विश्व में और कहीं नहीं है।
बैकटपुर मंदिर का संबंध महाभारत काल से भी जोड़ा जाता है। कथाओं के अनुसार, मगध नरेश बृहद्रथ भगवान शिव के परम भक्त थे। वे प्रतिदिन गंगा किनारे पूजा करने इसी स्थान पर आया करते थे। एक बार एक ऋषि ने उन्हें संतान प्राप्ति के लिए फल दिया जिसे उन्होंने अपनी दो रानियों को खिला दिया। दोनों रानियों के गर्भ से शरीर के दो अलग-अलग हिस्से उत्पन्न हुए जिन्हें जोड़कर एक राक्षसी "जोड़ा" ने एक जीव बनाया जिसे जरासंध कहा गया।
जरासंध भी भगवान शंकर का महान भक्त था। वह हर दिन राजगृह से आकर इस मंदिर में पूजा करता था। उसकी बांह पर शिवलिंग की आकृति का ताबीज था, जिसके कारण वह अजय बना रहा। भगवान श्रीकृष्ण ने इस रहस्य को समझकर उसकी बांह से वह ताबीज निकलवाया और तब जरासंध का वध संभव हो सका।
बैकटपुर धाम का वर्णन आनंद रामायण में भी मिलता है। लंका विजय के उपरांत जब भगवान राम ने रावण का वध किया, तो उन्हें ब्रह्महत्या का पाप लगा। उस पाप से मुक्ति पाने के लिए भगवान राम गंगा तट पर स्थित बैकटपुर धाम पहुंचे। उन्होंने यहां शिवलिंग की पूजा की और दोषमुक्त हुए।
यह भी कहा जाता है कि श्रीराम ने गंगा पार करके जिस गांव में रात्रि विश्राम किया था, वह गांव आज वैशाली जिले का "राधोपुर" कहलाता है, जो पहले "राघवपुर" के नाम से जाना जाता था।
इस मंदिर में पूजा-पाठ का कार्य पुराने परंपरागत पंडों द्वारा संपन्न कराया जाता है। स्थानीय जनश्रुतियों और शास्त्रों से प्राप्त जानकारी के अनुसार, यह मंदिर रामायण, महाभारत और मुगलकालीन इतिहास का अद्भुत संगम है।
यह मंदिर सावन महीने में विशेष रूप से आकर्षण का केंद्र बन जाता है। पूरे बिहार से लाखों की संख्या में श्रद्धालु यहां जलाभिषेक करने आते हैं। पटना कलेक्टरेट घाट और फतुहा त्रिवेणी कटैया घाट से हजारों श्रद्धालु जल लेकर बैकटपुर धाम पहुंचते हैं और रात्रि भर की यात्रा के बाद सुबह भगवान शिव को जल चढ़ाते हैं।
जैसे झारखंड में बाबा बैधनाथ धाम है, वैसे ही बैकटपुर धाम को "बिहार का बाबाधाम" कहा जाता है। यहां भक्तों की आस्था इतनी मजबूत है कि वे मानते हैं कि भोलेनाथ यहां साक्षात अपनी अर्धांगिनी के साथ निवास करते हैं।
भक्तों का मानना है कि यहां सच्चे मन से मांगी गई मनोकामना अवश्य पूरी होती है। चाहे विवाह हो, संतान प्राप्ति की इच्छा या व्यापार में सफलता, हर क्षेत्र में इस धाम की महिमा अपार है।
इतिहासकारों का कहना है कि प्रसिद्ध चीनी यात्री फाह्यान जब नालंदा विश्वविद्यालय के दौरे पर भारत आया था, तो उसने बैकटपुर धाम मंदिर का उल्लेख अपने यात्रा वृतांत में किया है। फाह्यान के विवरण से पता चलता है कि यह स्थल प्राचीन काल में भी एक अत्यंत महत्वपूर्ण तीर्थ था।
इस पावन स्थल पर कई बड़े संत और राजनेता भी आते रहे हैं। पुरी पीठ के शंकराचार्य जगद्गुरु निश्चलानंद सरस्वती 2007 में इस मंदिर में आए थे और उन्होंने इसे अत्यंत शक्तिशाली शिवधाम बताया था।
बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार स्वयं इस मंदिर के भक्त हैं और कई बार यहां दर्शन के लिए आ चुके हैं। उन्होंने मंदिर के विकास और सुविधाओं के विस्तार के लिए विशेष योजनाएं भी चलाई हैं।
सावन के महीने में यहां पांच दिवसीय शिवरात्रि मेला आयोजित होता है जिसमें बिहार के अलावा झारखंड, पश्चिम बंगाल, उत्तर प्रदेश और नेपाल से भी श्रद्धालु आते हैं। स्थानीय ग्राम सभा, जिला प्रशासन और मंदिर ट्रस्ट मिलकर इस मेले का आयोजन करते हैं।
मंदिर का संचालन एक ट्रस्ट द्वारा किया जा रहा है। सरकार और स्थानीय लोगों के सहयोग से मंदिर में आधुनिक सुविधाओं का निर्माण किया गया है, जैसे- भक्तों के लिए शौचालय और स्नानघर, रात्रि विश्राम हेतु धर्मशालाएं, भंडारा सेवा और जल वितरण केंद्र, CCTV कैमरे और सुरक्षा गार्ड, सौर ऊर्जा से चलने वाली लाइटिंग व्यवस्था।
बैकटपुर धाम, भगवान शिव और पार्वती की संयुक्त उपासना का प्रतीक है। यह मंदिर सिर्फ धार्मिक स्थल नहीं है, बल्कि भारतीय सांस्कृतिक, ऐतिहासिक और पौराणिक विरासत का जीवंत स्मारक है।
