297 वर्षों बाद अद्भुत योग - ब्रह्मा-विष्णु की साक्षी में बंधेगा रक्षा-सूत्र - 9 अगस्त 2025 को होगा भद्रा मुक्त रक्षाबंधन

Jitendra Kumar Sinha
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रक्षाबंधन का पर्व भारतीय संस्कृति का एक प्रमुख उत्सव है, जिसमें बहनें अपने भाइयों की कलाई पर रक्षा सूत्र बांधकर उनके सुख-समृद्धि की कामना करती हैं और भाई जीवनभर उनकी रक्षा का वचन देते हैं। इस बार यह पर्व न केवल भावनात्मक बल्कि खगोलीय दृष्टि से भी अत्यंत विशेष और दुर्लभ है। 9 अगस्त 2025 को रक्षाबंधन के दिन 297 वर्षों बाद ऐसा संयोग बन रहा है, जो धर्मशास्त्रों, ज्योतिष और अध्यात्म—तीनों दृष्टिकोण से इस दिन को पवित्रतम बना देता है।

रक्षाबंधन का पर्व श्रावण मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है। यह केवल एक धागा नहीं है, बल्कि प्रेम, विश्वास और समर्पण की डोर है। वैदिक परंपराओं में रक्षाबंधन की शुरुआत देवताओं से हुआ है ऐसा माना जाता है, जब द्रौपदी ने श्रीकृष्ण को रक्षासूत्र बांधा था और इंद्राणी ने इंद्र को युद्ध में विजय के लिए रक्षा सूत्र बांधा था।

9 अगस्त को रक्षाबंधन पर नहीं रहेगी भद्रा। भद्रा वह काल होता है जिसमें शुभ कार्य जैसे विवाह, मुंडन, गृह प्रवेश या राखी बांधना वर्जित माना जाता है। लेकिन इस बार रक्षाबंधन पर भद्रा नहीं होगी। सुबह से दोपहर 2:40 बजे तक शुभ चौघड़िया और सर्वार्थ सिद्धि योग रहेगा, और इसके बाद भी दिनभर शुभ योग जारी रहेगा।

ज्योतिषाचार्यों के अनुसार, 297 वर्ष पहले यानि 1728 में ऐसा ही संयोग बना था। 2025 में फिर वही स्थिति लौट रही है। सूर्य – कर्क राशि, चंद्र – मकर राशि (जिसकी स्वामिनी शनि), मंगल – कन्या राशि, बुध – कर्क राशि, गुरु और शुक्र – मिथुन राशि, राहु – कुंभ राशि और केतु – सिंह राशि। यह ग्रह स्थिति शनैश्चर और श्रवण नक्षत्र की त्रिवेणी संगम जैसी है, जिससे यह दिन आध्यात्मिक रूप से और भी महत्वपूर्ण हो जाता है।

इस दिन तीन अत्यंत महत्त्वपूर्ण संयोग बन रहा है। शनिवार का दिन- शनि ग्रह का वार, श्रवण नक्षत्र-  जिसका स्वामी भी शनि है और चंद्रमा मकर राशि में- जो शनि की ही राशि है। तीनों ही संकेत करता हैं आत्मबल, अनुशासन, संयम और कर्तव्य की भावना की ओर। इससे यह रक्षाबंधन केवल एक सांसारिक पर्व नहीं, बल्कि आत्मिक स्नेह और जीवन-धर्म का प्रतीक बन जाता है।

शास्त्रों के अनुसार, श्रवण नक्षत्र के अधिपति हैं भगवान विष्णु और सौभाग्य योग के अधिपति हैं भगवान ब्रह्मा। इसलिए जब बहनें भाइयों की कलाई पर राखी बांधेंगी, वह ब्रह्मा-विष्णु की साक्षी में होगा। यह आध्यात्मिक दृष्टिकोण से अत्यंत शुभ और पवित्र संयोग है। ऐसा दुर्लभ योग आने वाले कई दशकों तक नहीं दोहराया जाएगा।

इस बार रक्षाबंधन पर पूरे दिन कोई भद्रा नहीं है, इसलिए बहनें सुबह से शाम तक किसी भी शुभ मुहूर्त में राखी बांध सकती हैं। सर्वश्रेष्ठ समय सुबह 7.00 बजे से दोपहर 2.40 बजे तक। इसके बाद अमृत, लाभ और चर के चौघड़िए में भी राखी बांधना शुभ माना जाएगा।

ज्योतिष में चंद्रमा मन का प्रतिनिधित्व करता है और मकर राशि संयम, धैर्य और स्थिरता का। जब चंद्रमा मकर में होंगे, वह भाई-बहन के संबंध को भावनात्मक गहराई और स्थायित्व देंगे। साथ ही, शनि के प्रभाव के कारण इस बंधन में दायित्व की भावना और सेवा भाव भी रहेगा।

उज्जैन, काशी, हरिद्वार, नासिक, द्वारका और पुष्कर जैसे पवित्र स्थानों पर विशेष रक्षाबंधन पूजन और भाई-बहन मिलन उत्सव आयोजित किए जाएंगे। पंडितों द्वारा शनि-विष्णु युगल पूजन, रक्षासूत्र संकल्प यज्ञ, और भाई की आयु एव समृद्धि हेतु विशेष हवन किए जाएंगे।

रक्षाबंधन को सामाजिक और राष्ट्रीय एकता का प्रतीक भी माना गया है। इस दिन बहनें सैनिकों को राखी भेजती हैं, देश की रक्षा के लिए उनके समर्पण को नमन करते हुए। स्कूलों में 'राष्ट्रीय रक्षा सूत्र' कार्यक्रमों का आयोजन होता है। जेलों, अनाथालयों, वृद्धाश्रमों में राखी का त्योहार सामाजिक समरसता का संदेश देता है।

इस बार ज्योतिष और अध्यात्म के साथ-साथ पर्यावरण संरक्षण पर भी जोर है। बहनें अब बीज वाली राखियाँ (जिन्हें लगाने पर पौधा उगता है), कपड़े की राखियाँ, या गोबर एव तुलसी युक्त राखियाँ चुन रही हैं, जिससे प्रकृति और संस्कृति का समन्वय हो।

भारत के अलावा अमेरिका, कनाडा, यूके, ऑस्ट्रेलिया में रहने वाले प्रवासी भारतीयों में भी ऑनलाइन राखी भेजने और डिजिटल पूजा का चलन बढ़ रहा है। वीडियो कॉल पर रक्षा सूत्र बांधने और साथ व्रत रखने की परंपरा अब सामान्य होती जा रही है।

रक्षाबंधन 2025 एक अत्यंत दुर्लभ, पवित्र और शुभ अवसर है। 297 वर्षों बाद जब श्रवण नक्षत्र, शनि की राशि, शनिवार और सौभाग्य योग एक साथ आएंगे, तब यह पर्व केवल भाई-बहन का नहीं, बल्कि धरती और ब्रह्मांड के संतुलन का पर्व बन जाएगा।

इस दिन बहनें केवल रक्षा सूत्र नहीं, बल्कि एक दिव्य ऊर्जा का संचार करेंगी, और भाई केवल वचन नहीं, धर्म और कर्तव्य की कसौटी पर खरे उतरने का संकल्प लेंगे।



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