राज्यपाल के हाथों डिग्री लेने से तमिलनाडु की पीएचडी छात्रा ‘जीन जोसेफ’ ने किया “इंकार"

Jitendra Kumar Sinha
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तमिलनाडु की राजनीति और शिक्षा जगत में हाल ही में एक घटना ने व्यापक चर्चा छेड़ दी है। मनोनमनियम सुंदरनार यूनिवर्सिटी में आयोजित दीक्षांत समारोह में एक पीएचडी की छात्रा, जीन जोसेफ, ने राज्यपाल आर.एन. रवि के हाथों अपनी डिग्री लेने से स्पष्ट इंकार कर दिया। यह विरोध न केवल समारोह के माहौल को बदला बल्कि सोशल मीडिया पर भी बहस का केंद्र बन गया।

यह घटना उस समय हुई जब दीक्षांत समारोह में छात्र-छात्राओं को क्रम से मंच पर बुलाया जा रहा था और राज्यपाल आर.एन. रवि, बतौर कुलाधिपति, डिग्रियां प्रदान कर रहे थे। जैसे ही जीन जोसेफ का नाम पुकारा गया, उन्होंने मंच पर जाकर डिग्री लेने से पहले स्पष्ट कहा कि वे राज्यपाल से डिग्री नहीं लेगी। इसके बाद उन्होंने अपनी डिग्री विश्वविद्यालय के कुलपति एम. चंद्रशेखर से प्राप्त की।

जीन जोसेफ ने मीडिया से बातचीत में बताया कि उनका यह कदम तमिल भाषा, तमिल संस्कृति और तमिल लोगों के अधिकारों के प्रति राज्यपाल के कथित “पक्षपातपूर्ण रवैये” के विरोध में था। जीन के अनुसार, राज्यपाल ने कई बार अपने बयानों और निर्णयों से तमिलनाडु की भावनाओं को आहत किया है। उनका कहना था कि यह मुद्दा केवल व्यक्तिगत नहीं है बल्कि तमिलनाडु के सम्मान और सांस्कृतिक विरासत से जुड़ा है।

इस घटना का वीडियो कुछ ही घंटों में सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर वायरल हो गया। कई लोग जीन की हिम्मत की सराहना कर रहे हैं और इसे “लोकतांत्रिक विरोध” का उदाहरण बता रहे हैं, वहीं कुछ लोग इसे अनुचित और गरिमा के विपरीत मानते हैं। 

राज्य के कुछ विपक्षी नेताओं ने जीन के कदम का समर्थन किया और इसे “तमिल अस्मिता की आवाज” बताया। वहीं, सत्ताधारी दल और राज्यपाल समर्थकों ने इस तरह के सार्वजनिक विरोध को दीक्षांत जैसे गरिमामय अवसर पर अनुचित बताया। राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि यह घटना आने वाले समय में तमिलनाडु में राज्यपाल और राज्य सरकार के बीच संबंधों पर असर डाल सकती है।

जीन जोसेफ का यह कदम बताता है कि शिक्षा जगत के छात्र भी सामाजिक-राजनीतिक मुद्दों पर अपनी स्पष्ट राय रखने में पीछे नहीं हैं। चाहे कोई इस विरोध से सहमत हो या असहमत, लेकिन इसमें कोई संदेह नहीं कि यह घटना आने वाले दिनों में तमिलनाडु की राजनीतिक और सामाजिक बहस का महत्वपूर्ण हिस्सा बनी रहेगी।

यह घटना एक बार फिर साबित करती है कि लोकतंत्र में असहमति जताना हर नागरिक का अधिकार है, और जब यह आवाज शांतिपूर्ण और गरिमामय ढंग से उठाई जाती है, तो वह समाज में दूरगामी प्रभाव छोड़ सकती है।



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