आभा सिन्हा, पटना,
भारतीय संस्कृति में देवी-देवताओं की पूजा केवल धार्मिक आस्था का विषय नहीं है, बल्कि जीवन की गहराइयों से जुड़ा हुआ एक आध्यात्मिक अनुभव है। देवी शक्ति के अनगिनत स्वरूपों में से एक है मां भद्रकाली, जिन्हें मां काली का सौम्य रूप माना जाता है। मां भद्रकाली की पूजा विशेषकर ज्येष्ठ मास के कृष्ण पक्ष की अपरा एकादशी को की जाती है। इस दिन को भद्रकाली जयंती के रूप में मनाया जाता है।
देवी का यह स्वरूप शक्ति, क्रोध, करुणा और न्याय, सभी का अद्भुत समन्वय है। मां भद्रकाली के चार प्रमुख स्वरूप- दक्षजित, महिषाजित, रुरुजित और दारिकाजित, प्रत्येक की अपनी अद्वितीय कथा और महत्व है।
मां काली को प्रायः उनके रौद्र स्वरूप में जाना जाता है भयंकर रूप, रक्तचक्षु, मुण्डमाला और त्रिशूल धारण किए हुए। लेकिन इसी रौद्रता का एक संतुलित, सौम्य और भक्तवत्सल स्वरूप है भद्रकाली। काली जहां विनाश की प्रतीक हैं, वहीं भद्रकाली संरक्षण और न्याय की प्रतीक हैं। काली का रूप अनियंत्रित शक्ति को दर्शाता है, तो भद्रकाली का स्वरूप शक्ति के नियंत्रण और संतुलन का प्रतीक है। भद्रकाली को शिव की पुत्री भी कहा गया है क्योंकि वे उनकी तीसरी आंख से प्रकट हुईं हैं।
भद्रकाली जयंती ज्येष्ठ मास के कृष्ण पक्ष की अपरा एकादशी को मनाई जाती है। इस दिन भक्त देवी के मंदिरों में विशेष पूजा करते हैं। मान्यता है कि इस दिन देवी की उपासना करने से जीवन की सभी बाधाएं दूर होती हैं। साधक को अभय और बल का वरदान प्राप्त होता है। दक्षिण भारत और विशेषकर केरल में इस दिन का विशेष महत्व है।
दक्षजित स्वरूप- महाभारत और शिव-वायु पुराण के अनुसार, जब सती ने अपने पिता दक्ष के यज्ञ अग्नि में आत्मदाह कर लिया, तब शिव ने क्रोध में अपनी जटाओं से वीरभद्र और भद्रकाली को उत्पन्न किया। वीरभद्र और भद्रकाली ने मिलकर दक्ष के यज्ञ का विध्वंस किया। विष्णु ने वीरभद्र को कैद कर लिया, लेकिन भद्रकाली ने उन्हें छुड़ाया। दक्ष को दंडित करने में सहायक होने के कारण देवी को दक्षजित कहा गया।
महिषाजित स्वरूप- कालिका पुराण में उल्लेख है कि त्रेता युग में भद्रकाली ने दूसरे महिषासुर का वध किया था। देवी ने महिषासुर का संहार कर देवताओं को उसके आतंक से मुक्ति दिलाई। उनके इस रूप को महिषाजित कहा गया।
रुरुजित स्वरूप- वराह पुराण में उल्लेख है कि राक्षस रुरु के अत्याचारों से त्रस्त देवताओं की रक्षा के लिए भद्रकाली प्रकट हुईं। उन्होंने रुरु का वध किया और इस रूप में उन्हें रुरुजित कहा गया।
दारिकाजित स्वरूप- केरल में भद्रकाली की पूजा विशेषकर दारिकाजित स्वरूप में की जाती है। असुर दारिका के विनाश के लिए वे प्रकट हुईं। उन्होंने बेताल को अपना वाहन बनाया और दारिका का वध किया। इस रूप में वे क्रोध और मातृत्व, दोनों का अद्भुत संगम बन गईं।
दारिकाजित कथा में उल्लेख मिलता है कि दारिका का वध करने के बाद भी उनका क्रोध शांत नहीं हुआ। तब भगवान शिव शिशु रूप में उनके सामने लेट गए। जैसे ही देवी ने शिशु रूप में शिव को देखा, उनकी मातृ भावना जाग्रत हो गई और वे शांत हो गईं। यह कथा बताती है कि शक्ति का संतुलन मातृत्व से होता है।
कुरुक्षेत्र स्थित देवीकूप भद्रकाली मंदिर 51 शक्तिपीठों में से एक माना जाता है। मान्यता है कि महाभारत युद्ध से पूर्व भगवान कृष्ण और पांडव यहां पूजा करने आए थे। विजय के पश्चात पांडवों ने अपने घोड़े देवी को अर्पित किए। आज भी भक्त अपनी मनोकामना पूरी होने पर टेराकोटा और धातु के घोड़े अर्पित करते हैं। यह भी मान्यता है कि यहीं पर कृष्ण और बलराम का मुंडन संस्कार हुआ था।
दक्षिण भारत के वारंगल में स्थित भद्रकाली मंदिर से कोहिनूर हीरे का संबंध जुड़ा है। 625 ईस्वी में चालुक्य वंश के राजा पुलकेशी द्वितीय ने यह मंदिर अपनी विजय के उपलक्ष्य में बनवाया था। बाद में काकतीय राजाओं ने इसे अपनी कुलदेवी का मंदिर बनाया। कहा जाता है कि काकतीय राजाओं ने कोहिनूर हीरा देवी की बायीं आंख में जड़वाया था। बाद में अलाउद्दीन खिलजी ने इस हीरे को लूट लिया।
केरल में भद्रकाली को करियम काली भी कहा जाता है। मान्यता है कि वे किसी भी व्यक्ति के भाग्य को बदल सकती हैं। यहां विशेषकर दारिकाजित स्वरूप की पूजा होती है। भद्रकाली का नृत्य-नाट्य “मुदियेट्टु” आज भी ग्रामीण इलाकों में प्रस्तुत किया जाता है।
उड़ीसा में भद्रकाली जयंती को जलक्रीड़ा एकादशी के रूप में मनाया जाता है। इस दिन भगवान जगन्नाथ की प्रतीकात्मक छवियों को पवित्र तालाब में स्नान कराया जाता है। इसे देवी और भगवान के जलविहार का उत्सव माना जाता है।
मां भद्रकाली के प्रमुख मंदिर में कुरुक्षेत्र, हरियाणा- देवीकूप शक्तिपीठ, वारंगल, तेलंगाना- भद्रकाली मंदिर (कोहिनूर हीरे से जुड़ा), हनमकोंडा, आंध्र प्रदेश- ऐतिहासिक भद्रकाली मंदिर, केरल- दारिकाजित रूप की विशेष पूजा, तमिलनाडु और कर्नाटक- लोक आस्था से जुड़े कई मंदिर है।
भद्रकाली सिखाती हैं कि शक्ति का प्रयोग संतुलन और न्याय के लिए होना चाहिए। देवी के भीतर मातृ रूप भी विद्यमान है, जो क्रोध को भी शांत कर देता है। उनके प्रत्येक स्वरूप का उद्देश्य धर्म की रक्षा और अधर्म का नाश है।
आज के युग में भद्रकाली की उपासना केवल धार्मिक महत्व तक सीमित नहीं है, बल्कि: जीवन में साहस, धैर्य और आत्मबल प्राप्त करने का साधन है। समाज में अन्याय और अत्याचार के खिलाफ संघर्ष का प्रतीक है। भक्ति, आस्था और शक्ति, इन तीनों का अद्भुत मेल है।
मां भद्रकाली का स्वरूप सिखाता है कि शक्ति का सही प्रयोग केवल सुरक्षा, न्याय और संतुलन के लिए होना चाहिए। भद्रकाली जयंती केवल धार्मिक पर्व नहीं है, बल्कि यह शक्ति, साहस और मातृत्व का संदेश देने वाला उत्सव है। मां भद्रकाली के चारों स्वरूप दक्षजित, महिषाजित, रुरुजित और दारिकाजित, जीवन के संघर्षों में प्रेरणा देती है। मंदिर आज भी आस्था और चमत्कारों का केंद्र हैं।
