250 साल लंबी अंतरिक्ष यात्रा का सपना - ‘क्राइसालिस’

Jitendra Kumar Sinha
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मानव सभ्यता ने अब तक जो सफर तय किया है, वह मुख्य रूप से धरती तक सीमित रहा है। कभी समुद्रों को पार करने वाले जहाज़, कभी आसमान में उड़ने वाले हवाई जहाज, तो अब रॉकेट और स्पेस स्टेशन, हर कदम ने एक नए युग में पहुंचाया। लेकिन अब विज्ञान और वास्तुकला के मेल से ऐसा विचार सामने आया है, जो सिर्फ विज्ञान-कथा का हिस्सा लगता था 58 किलोमीटर लंबा बेलनाकार स्पेसशिप ‘क्राइसालिस’। यह कोई साधारण अंतरिक्षयान नहीं है, बल्कि पूरी एक उड़ती हुई बस्ती होगी, जो 1,000 लोगों को लेकर 250 सालों की यात्रा पर पड़ोसी तारा मंडल अल्फा सेंटॉरी की ओर निकल पड़ेगी।

‘क्राइसालिस’ का डिजाइन प्रोजेक्ट हाइपरियन प्रतियोगिता का विजेता है, जिसमें दुनिया भर से वैज्ञानिक, इंजीनियर, डिज़ाइनर और आर्किटेक्ट शामिल हुए। इसका मकसद था, ऐसा अंतरिक्षयान डिज़ाइन करना जो मानव सभ्यता को धरती से बाहर एक नई दुनिया तक पहुंचा सके और यात्रा के दौरान उनकी पीढ़ियों को सुरक्षित, खुशहाल और आत्मनिर्भर रख सके। इस प्रतियोगिता के निर्णायकों में नासा के वैज्ञानिक भी शामिल थे, जिससे इसका वैज्ञानिक महत्व और भी बढ़ गया है।

‘क्राइसालिस’ कोई छोटा जहाज़ नहीं है, 58 किलोमीटर लंबा और कई किलोमीटर चौड़ा बेलनाकार ढांचा है। यहां रहने, खेती, शिक्षा, मनोरंजन, चिकित्सा और अनुसंधान की पूरी व्यवस्था होगी। इसे तीन मुख्य "शेल" में बांटा गया है। 

पहला शेल- प्रकृति और भोजन का संसार, यहां जंगल, बोरियल फॉरेस्ट और ड्राई स्क्रब जैसे बायोम होंगे। खाने के लिए पौधों से भोजन उत्पादन होगा, यानि पूरी तरह शाकाहारी कृषि व्यवस्था। प्रोटीन की पूर्ति लैब में तैयार प्रोटीन से की जाएगी। कुछ जानवर केवल जैव विविधता बनाए रखने के लिए पाले जाएंगे। यह हिस्सा जहाज का इकोलॉजिकल हृदय होगा, जहां पेड़-पौधे ऑक्सीजन बनाएंगे और पानी का पुनर्चक्रण होगा।

दूसरा शेल- संस्कृति और ज्ञान का खजाना, यहां पुस्तकालय, संग्रहालय, कला और सांस्कृतिक वस्तुएं होंगी। पार्क और मनोरंजन स्थल होंगे, जहां लोग मानसिक रूप से तरोताजा रह सकेंगे। जहाज की दीवारों पर लगे डिजिटल पैनल्स धरती के नजारों का आभासी अनुभव देंगे, ताकि लोग अपने ग्रह को याद करते हुए भी घर जैसा महसूस करें।

तीसरा शेल- घर और परिवार का बसेरा, यहां मॉड्यूलर हाउस होंगे, जिनमें लोग स्वतंत्र रूप से रह सकेंगे। परिवार बनाना, बच्चों की परवरिश करना और पीढ़ियों का सफर यहीं जारी रहेगा। एक आत्मनिर्भर मिनी-सिटी की तरह इसमें स्कूल, अस्पताल, और सामुदायिक स्थल भी होंगे।

अल्फा सेंटॉरी तक पहुंचने के लिए प्रकाश की गति के करीब चलने की तकनीक फिलहाल इंसानी हाथ में नहीं है। इसलिए यह यात्रा कई पीढ़ियों में पूरी होगी, जिन लोगों के साथ जहाज निकलेगा, वह मंजिल तक नहीं पहुंच पाएंगे, बल्कि उनके बच्चे, पोते-पोतियां या उससे भी आगे की पीढ़ियां वहां उतरेंगी। इसलिए जहाज को पूरी तरह आत्मनिर्भर बनाया गया है, रीसाइक्लिंग सिस्टम हवा, पानी और कचरे को बार-बार उपयोग योग्य बनाएगा। सोलर पैनल्स और न्यूक्लियर रिएक्टर ऊर्जा देंगे। आर्टिफिशियल ग्रैविटी के लिए जहाज़ घूमता रहेगा, ताकि लोग धरती जैसी गुरुत्वाकर्षण शक्ति महसूस करेंगे।

जब एक समाज को 250 साल तक सीमित जगह में रहना होगा, तो यह अपने आप में एक नई सभ्यता होगी। संविधान और कानून नए सिरे से बनाए जाएंगे। शिक्षा का तरीका बदलेगा, बच्चों को अंतरिक्ष विज्ञान, आत्मनिर्भर जीवनशैली और टीमवर्क सिखाया जाएगा। कला, संगीत और साहित्य का भी विकास होगा, क्योंकि यह मानसिक स्वास्थ्य के लिए जरूरी होंगे।

ऐसा मिशन सिर्फ कल्पना नहीं है, बल्कि मानव जाति की सबसे बड़ी इंजीनियरिंग और सामाजिक चुनौती होगा। तकनीकी चुनौती- इतने लंबे समय तक बिना खराबी के चलने वाली मशीनें और सिस्टम। मानसिक चुनौती-  पीढ़ियों तक सीमित स्पेस में रहना, बाहर निकलने का विकल्प न होना। जैविक चुनौती- सीमित जीन पूल के कारण स्वास्थ्य और आनुवंशिकी संबंधी समस्याएं। इन चुनौतियों से निपटने के लिए वैज्ञानिकों को जेनेटिक डाइवर्सिटी मैनेजमेंट, वर्चुअल रियलिटी थेरेपी, और ऑटोमैटिक रिपेयर सिस्टम जैसी तकनीकों का सहारा लेना होगा।

अगर ‘क्राइसालिस’ कभी हकीकत बन गया, तो यह इंसानी इतिहास में वही महत्व रखेगा, जो कभी कोलंबस की समुद्री यात्रा या राइट ब्रदर्स की पहली उड़ान का था। यह साबित करेगा कि इंसान केवल धरती का वासी नहीं, बल्कि पूरे ब्रह्मांड का यात्री बन सकता है। ‘क्राइसालिस’ अभी डिजाइन की दुनिया में है, लेकिन इसके पीछे जो सोच है, वह इंसान के अनंत जिज्ञासा और जिजीविषा का प्रमाण है। हो सकता है अगले सौ साल में ऐसी तकनीक आ जाए, जो हमें इस तरह के मिशनों को सच करने में सक्षम बनाए। और तब, शायद हमारी आने वाली पीढ़ियां सचमुच सितारों के जहां में पहुंच जाएं।



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