“घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग”

Jitendra Kumar Sinha
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आभा सिन्हा, पटना 

भारतवर्ष की सनातन संस्कृति में भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों का विशेष महत्व है। ये ज्योतिर्लिंग न केवल धार्मिक दृष्टिकोण से, बल्कि ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और स्थापत्य की दृष्टि से भी महान धरोहर हैं। यह अंतिम और बारहवां ज्योतिर्लिंग है “घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग”, जो महाराष्ट्र के औरंगाबाद जिला में, विश्वप्रसिद्ध एलोरा गुफाओं के निकट स्थित है। यह स्थान शिवभक्तों की भक्ति, श्रद्धा और तपस्या की जीवंत मिसाल है। इसके साथ ही यह भारत के गौरवशाली इतिहास और महिला सशक्तिकरण की गाथा भी सुनाता है, क्योंकि इसके पुनर्निर्माण का श्रेय मालवा की वीरांगना महारानी अहिल्याबाई होल्कर को जाता है।

‘घृष्णेश्वर’ शब्द दो भागों से मिलकर बना है, ‘घृष्णा’, जिसका अर्थ है ‘तीव्र भक्ति’ या ‘तपस्या की ज्वाला’, और ‘ईश्वर’, अर्थात भगवान। यानि यह वह स्थान है जहाँ तपस्या और भक्ति की प्रचंड अग्नि से भगवान शिव प्रकट हुए थे। इसे घुसृणेश्वर, घृणेश्वर और धृष्णेश्वर जैसे नामों से भी जाना जाता है। यह ज्योतिर्लिंग उन लोगों के लिए है, जो जीवन के हर चरण में ईश्वर की कृपा की तलाश करते हैं, और अपने पापों से मुक्ति चाहते हैं। यह एक ऐसा मंदिर है, जो हर भक्त को यह संदेश देता है  "तपस्या कभी व्यर्थ नहीं जाता।"

घृष्णेश्वर मंदिर का इतिहास कई शताब्दियों पुराना है। इस मंदिर का उल्लेख शिव पुराण, स्कंद पुराण और अन्य ग्रंथों में मिलता है। कहा जाता है कि यह मंदिर कई बार विध्वंस और पुनर्निर्माण का साक्षी रहा है। अंतिम बार इसे पुनः अठारहवीं सदी में मालवा की महारानी अहिल्याबाई होल्कर ने बनवाया था, जिन्होंने काशी विश्वनाथ, सोमनाथ, त्र्यंबकेश्वर जैसे अन्य प्रमुख मंदिरों का भी जीर्णोद्धार करवाया था। यह मंदिर दौलताबाद से करीब 30 किलोमीटर दूर स्थित वेरुल गांव में है, जो एलोरा की गुफाओं के पास है। एलोरा की यह गुफा भी इतिहास और धार्मिक विविधता का अद्भुत संगम हैं, जहाँ बौद्ध, जैन और हिन्दू संस्कृति एक साथ सांस लेती हैं।

शिव पुराण में वर्णित एक कथा के अनुसार, सुधर्मा नामक ब्राह्मण की पत्नी घृष्णा शिवभक्त थी। वह प्रतिदिन 101 शिवलिंग बनाकर उनकी पूजा करती थी। उसकी तपस्या से प्रसन्न होकर शिव ने उन्हें पुत्र रत्न प्रदान किया। लेकिन उसकी सौत ने उसका पुत्र जल में बहा दिया। घृष्णा ने अपने शिव-भक्ति मार्ग से विचलित न होकर पहले की तरह पूजा जारी रखी। अंततः भगवान शिव ने प्रकट होकर न केवल उसका पुत्र जीवित किया, बल्कि उस स्थान पर स्वयं ज्योतिर्लिंग के रूप में विराजमान हुए। यह कथा सिखाती है कि भक्ति में शक्ति है, और विश्वास से ही चमत्कार होते हैं।

घृष्णेश्वर मंदिर एक उत्कृष्ट स्थापत्य उदाहरण है, जो मराठा शैली में बना हुआ है। इसका निर्माण लाल बलुआ पत्थर से हुआ है। मंदिर का शिखर, दीवारों पर उकेरे गए चित्र और नक्काशी, सभी भक्तों और पर्यटकों को मोहित कर देता है। इसकी मुख्य विशेषता है मंदिर के अंदर स्थित गर्भगृह में शिवलिंग स्थापित है। यहां महिलाओं को भी शिवलिंग को छूने की अनुमति है, जो बहुत से ज्योतिर्लिंगों में नहीं है। मंदिर की दीवारों पर पुराणों की कथाएं, देवी-देवताओं की आकृतियाँ और धर्म की विविध छवियाँ उकेरी गई हैं। यह मंदिर कैलास मंदिर (एलोरा) से कुछ ही दूर है, जो स्वयं एक शिल्पकला का चमत्कार है।

भगवान शिव के द्वादश ज्योतिर्लिंगों का वर्णन प्रसिद्ध स्तोत्र में इस प्रकार किया गया है - “हिमालये तु केदारं, घृष्णेशं च शिवालये”। घृष्णेश्वर को "शिवालय" कहा गया है यानि शिव का घर। यह इस ज्योतिर्लिंग की पवित्रता और गरिमा का परिचायक है।

घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग के आसपास कई ऐसे स्थल हैं, जो यात्रा को पूर्णता प्रदान करता हैं। एलोरा की गुफाएँ-  यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल, अद्भुत स्थापत्य और धार्मिक एकता का प्रतीक है। कैलास मंदिर- एक ही पत्थर को काटकर बनाया गया विश्वविख्यात मंदिर है। दौलताबाद किला- इतिहास प्रेमियों के लिए आदर्श स्थल है। बीबी का मकबरा- औरंगाबाद में स्थित है, ताजमहल से प्रेरित एक सुंदर मकबरा है।

घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग पर महाशिवरात्रि के अवसर पर विशेष आयोजन होता है। इस दिन लाखों की संख्या में श्रद्धालु मंदिर पहुंचते हैं, जलाभिषेक करते हैं, और रुद्राभिषेक, महामृत्युंजय जाप एव रात्रि जागरण जैसे धार्मिक आयोजन में भाग लेते हैं।

इस मंदिर के पुनर्निर्माण का श्रेय जाता है पुण्यश्लोक अहिल्याबाई होल्कर को, जिन्होंने अपने जीवनकाल में भारत भर के कई प्रमुख मंदिरों को पुनःस्थापित किया था। वह न केवल एक सक्षम प्रशासक थी, बल्कि गहन शिवभक्त भी थी। उनकी दूरदृष्टि और धार्मिक समर्पण के कारण ही आज यह ज्योतिर्लिंग पुनः अपनी भव्यता में विद्यमान है।

घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग की यात्रा आध्यात्मिक जागृति के लिए, धार्मिक शुद्धिकरण के लिए, प्राचीन स्थापत्य और इतिहास को समझने के लिए, परिवारिक सुख, शांति और समृद्धि की कामना के लिए करना श्रेष्कर है। यह एक ऐसा स्थल है जहाँ केवल भक्ति ही नहीं, भारतीय इतिहास, संस्कृति और धार्मिक सहिष्णुता भी जीवित प्रतीत होता है।

घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग न केवल द्वादश ज्योतिर्लिंगों का अंतिम पड़ाव है, बल्कि यह भक्तों के लिए आत्मिक मुक्ति और ईश्वर-साक्षात्कार का द्वार भी है। यह मंदिर यह सिखाता है कि सच्ची श्रद्धा और तपस्या से ही शिव को पाया जा सकता है। घृष्णा की भक्ति से प्रकट हुआ यह ज्योतिर्लिंग आज भी लाखों श्रद्धालुओं को नई ऊर्जा, नई भक्ति और नई दिशा प्रदान करता है।



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