भारत भूमि पर जितनी विविधता त्यौहारों की है, उतनी ही विविधता इनकी परंपराओं और मान्यताओं की भी है। भगवान श्रीकृष्ण का जन्मोत्सव (जन्माष्टमी) हर वर्ष पूरे देश में हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। किंतु राजस्थान के मरुस्थलीय नगर बीकानेर में स्थित “श्री लक्ष्मीनाथ मंदिर” में जन्माष्टमी की रात एक विशेष और अनोखी परंपरा का निर्वहन होता है। यहाँ केवल कृष्ण जन्म की कथा ही नहीं, बल्कि भगवान श्रीकृष्ण की जन्म कुंडली का वाचन भी किया जाता है। यह परंपरा न केवल धार्मिक आस्था का प्रतीक है, बल्कि यह इस नगर की सांस्कृतिक धरोहर और लोक विश्वास का जीवंत उदाहरण भी है।
राजस्थान के उत्तर-पश्चिमी हिस्से में बसा बीकानेर नगर अपनी संस्कृति, कला, स्थापत्य और मंदिरों के लिए प्रसिद्ध है। यहाँ का श्री लक्ष्मीनाथ मंदिर नगर सेठों द्वारा बनवाया गया एक ऐतिहासिक और भव्य मंदिर है, जहाँ नित्य पूजा-अर्चना के साथ-साथ प्रमुख हिंदू पर्व विशेष उत्साह से मनाए जाते हैं।
लक्ष्मीनाथ मंदिर का नाम लेते ही श्रद्धालु भावविभोर हो जाते हैं क्योंकि इसे बीकानेर की धार्मिक आत्मा माना जाता है। यहाँ रामनवमी, जन्माष्टमी, नवरात्रि और दीपावली पर विशेष आयोजन होते हैं, लेकिन जन्माष्टमी का आयोजन अपनी अनूठी परंपरा के कारण देशभर के भक्तों का ध्यान खींचता है।
श्रीमद्भागवत, विष्णुपुराण और हरिवंश पुराण में वर्णित कथा के अनुसार, द्वापर युग में भाद्रपद मास की कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि, रोहिणी नक्षत्र और वृषभ लग्न में भगवान विष्णु ने कृष्ण रूप में अवतार लिया। यह अवतार धर्म की पुनर्स्थापना, अधर्म के अंत और भक्ति-पथ के प्रचार के लिए हुआ।
कृष्ण अवतार का महत्व केवल धार्मिक ही नहीं, बल्कि सांस्कृतिक और दार्शनिक दृष्टि से भी अत्यंत गहरा है। श्रीकृष्ण को योगेश्वर, रणछोड़, मधुसूदन, गोविंद और जगतपालक के रूप में पूजा जाता है। उनकी बाल लीलाएँ, गोपियों संग रास, गीता का उपदेश और महाभारत में कौरवों पर विजय – सभी घटनाएँ मानव जीवन के मार्गदर्शन हेतु आज भी प्रासंगिक हैं।
बीकानेर में जन्माष्टमी का पर्व एक नगरव्यापी उत्सव का रूप ले लेता है। मंदिरों, घरों और चौक-चौराहों पर झांकियाँ सजाई जाती हैं। महिलाएँ विशेष रूप से ठाकुरजी के लिए वस्त्र, आभूषण और श्रृंगार सामग्री खरीदती हैं।
झांकियों में कृष्ण जन्म, कंस की जेल, कालिया नाग मर्दन, रासलीला, राधा-कृष्ण झूला, गोवर्धन पूजा जैसी झलकियाँ प्रस्तुत की जाती हैं। नगर की गलियों में इलेक्ट्रिक झांकियाँ भी सजती हैं जिनमें रामसेतु, लंका दहन, बाबा रामदेवजी की समाधि, कैलाश पर्वत, वराह अवतार आदि के दृश्य दिखाए जाते हैं। कई स्थानों पर भजन संध्याएँ और झूलों का आयोजन होता है। इस पूरे वातावरण में भक्तजन व्रत-उपासना करते हैं। कई श्रद्धालु निर्जल या फलाहार व्रत रखते हैं और मध्यरात्रि के बाद ही पारणा करते हैं।
बीकानेर के “श्री लक्ष्मीनाथ मंदिर” की विशेषता यह है कि यहाँ कृष्ण जन्म कथा के साथ-साथ भगवान की जन्म कुंडली का वाचन भी किया जाता है। कथावाचक पंडित ओमप्रकाश व्यास के अनुसार, यह परंपरा प्राचीन काल से चली आ रही है। यहाँ वेदव्यास की गद्दी पर बैठकर ठाकुरजी के समक्ष कथा सुनाई जाती है और जन्म कुंडली का पाठ किया जाता है। रात्रि 12 बजे पंचामृत से लड्डू गोपाल का अभिषेक होता है। ठाकुरजी का विशेष श्रृंगार कर भोग अर्पित किया जाता है। कथा वाचन के बाद पंडित जी भगवान कृष्ण की जन्मकुंडली का विस्तार से वाचन करते हैं। इसमें वृषभ लग्न, रोहिणी नक्षत्र और चंद्रवंश में कृष्ण जन्म की चर्चा होती है। श्रद्धालु इस पाठ को अत्यंत श्रद्धा और भाव से सुनते हैं। यह परंपरा भगवान के अवतार के क्षण को वैज्ञानिक और ज्योतिषीय दृष्टि से भी समझाने का प्रयास है।
कथा और कुंडली वाचन केवल एक अनुष्ठान भर नहीं है, बल्कि इसके गहरे आध्यात्मिक संदेश भी हैं। कथा वाचन से भक्त भगवान के अवतार और उनकी लीलाओं का स्मरण करते हैं। जन्मकुंडली वाचन से यह विश्वास पुष्ट होता है कि भगवान का अवतार सर्वथा नियत समय पर, विशेष योग में हुआ था। यह परंपरा भगवान के जन्म को दैवीय योजना और धर्मस्थापना के अनिवार्य प्रयोजन से जोड़ती है। भक्तों को इस वाचन से धार्मिक ज्ञान और ज्योतिषीय बोध दोनों की प्राप्ति होती है।
जन्माष्टमी की रात लक्ष्मीनाथ मंदिर सहित शहर में एक और अनोखी परंपरा निभाई जाती है “कंस वध”। मध्यरात्रि 12 बजे ठाकुरजी के प्राकट्य के बाद अधर्म के प्रतीक कंस का प्रतीकात्मक वध किया जाता है। यह वध अच्छाई की बुराई पर विजय का प्रतीक है और भक्त इसे देखकर हर्षित हो उठते हैं।
बीकानेर में जन्माष्टमी पर सजने वाली झांकियाँ किसी कला प्रदर्शनी से कम नहीं होती है। मिट्टी और लकड़ी के खिलौनों से बने दृश्य ग्रामीण जीवन, पशु-पक्षी और राजस्थानी संस्कृति को दर्शाते हैं। इलेक्ट्रिक झांकियों में नदी, पहाड़, रेल, और पौराणिक प्रसंग जीवंत कर दिए जाते हैं। राधा-कृष्ण का झूला, ग्वालबालों के साथ खेलते कृष्ण, और महारास जैसे दृश्य भक्तों को द्वापर युग का अहसास कराते हैं।
इस दिन भक्त व्रत-उपवास का पालन करते हैं। कई श्रद्धालु निर्जल उपवास रखते हैं। अभिषेक, विष्णु सहस्रनाम, गोपाल सहस्रनाम और अर्थवशीर्ष पाठ का आयोजन होता है। एक हजार कमल पुष्प और तुलसी दल से ठाकुरजी का पूजन किया जाता है। मध्यरात्रि में आरती और पूजा के बाद व्रत का पारणा किया जाता है।
बीकानेर के लक्ष्मीनाथ मंदिर की यह परंपरा केवल धार्मिक आयोजन नहीं है, बल्कि एक सांस्कृतिक धरोहर है। यह लोक-आस्था, ज्योतिष, पौराणिक कथाओं और भक्ति का अद्भुत संगम है। यह परंपरा यह संदेश देती है कि भगवान के अवतार मात्र धार्मिक घटना नहीं है, बल्कि समय और ग्रह-नक्षत्रों की नियति से जुड़ी हुई दैवीय प्रक्रिया है।
बीकानेर का “श्री लक्ष्मीनाथ मंदिर” जन्माष्टमी पर अपने अद्वितीय अनुष्ठान, कृष्ण जन्मकुंडली वाचन, के कारण न केवल राजस्थान, बल्कि पूरे देश में विशेष स्थान रखता है। यहाँ की झांकियाँ, कंस वध, कथा और कुंडली वाचन, अभिषेक और उपवास, सब मिलकर जन्माष्टमी को अविस्मरणीय बना देते हैं। यह परंपरा आने वाली पीढ़ियों को यह संदेश देती है कि धर्म, आस्था और संस्कृति केवल मंदिरों तक सीमित नहीं, बल्कि हमारे जीवन और समाज की धड़कन हैं।
