मिस्र की धरती प्राचीन सभ्यता, रहस्यमयी वास्तुकला और अद्भुत कलाकृतियों के लिए जानी जाती है। नील नदी के पश्चिमी तट पर स्थित “कोलॉसी ऑफ मेमनन (Colossi of Memnon)” आज भी इतिहास और संस्कृति के साक्षी बनकर खड़े हैं। ये दो विशालकाय मूर्तियाँ लगभग 3400 वर्ष पुरानी हैं और इन्हें प्राचीन मिस्र के महान शासक फिरौन अमेनहोटेप तृतीय की स्मृति में बनवाया गया था।
लगभग 1350 ईसा पूर्व अमेनहोटेप तृतीय ने थेब्स (आज का लक्सर) में अपना एक विशाल स्मारक मंदिर बनवाया था। इस मंदिर का प्रवेश द्वार ही इन दो प्रतिमाओं से सजाया गया था। मंदिर समय की आंधियों और नील नदी की बाढ़ों में नष्ट हो गया, परंतु ये दोनों मूर्तियाँ आज भी मजबूती से खड़ी हैं।
इन मूर्तियों को मूलतः अमेनहोटेप तृतीय की प्रतिमाएँ माना जाता था। किंतु बाद के समय में यूनानी और रोमी यात्रियों ने इन्हें अपने पौराणिक नायक मेमनन से जोड़ा। यूनानी मान्यता के अनुसार, मेमनन ट्रोजन युद्ध का एक वीर योद्धा था। इसी कारण जब यात्रियों ने इन प्रतिमाओं को देखा तो उन्होंने इन्हें "कोलॉसी ऑफ मेमनन" नाम दे दिया।
इतिहासकारों के अनुसार, प्राचीन काल में इनमें से एक प्रतिमा सुबह के समय अजीब-सी ध्वनि निकालती थी। यह ध्वनि सूर्य की गर्मी से पत्थरों में होने वाले कंपन के कारण उत्पन्न होती थी। यूनानी यात्रियों ने इसे दिव्य संकेत माना और प्रतिमा को ‘गाते हुए मेमनन’ की संज्ञा दी। बाद में रोमी सम्राटों ने प्रतिमा की मरम्मत करवाई, जिसके बाद यह ध्वनि निकलना बंद हो गई।
दोनों प्रतिमाएँ 18 मीटर ऊँची और करीब 720 टन वजनी हैं। इन्हें क्वार्ट्ज़ाइट बलुआ पत्थर से तराशा गया है, जिसे नील नदी से 675 किलोमीटर दूर खदानों से लाया गया था। यह अपने आप में मिस्रवासियों की अद्भुत इंजीनियरिंग और कलात्मक कौशल का प्रमाण है।
आज “कोलॉसी ऑफ मेमनन” मिस्र के प्रमुख पर्यटन स्थलों में गिने जाते हैं। दुनियाभर से पर्यटक इन मूर्तियों को देखने आते हैं और मिस्र की प्राचीन सभ्यता की झलक पाते हैं। पुरातत्वविद् भी इस स्थल पर शोध करते रहते हैं क्योंकि ये मूर्तियाँ उस युग की धार्मिक आस्थाओं और शिल्पकला को समझने की कुंजी हैं।
“कोलॉसी ऑफ मेमनन” केवल पत्थरों की प्रतिमाएँ नहीं, बल्कि प्राचीन मिस्र की जीवित धरोहर हैं। वे समय, मौसम और आक्रमणों की मार झेलते हुए भी आज तक खड़ी हैं। यह स्थल हमें यह सिखाता है कि कला और संस्कृति इंसानी सभ्यता की आत्मा होती है, जो सहस्राब्दियों बाद भी अमर रहती है।
