मधुमेह (डायबिटीज) को आमतौर पर एक ऐसी बीमारी माना जाता है जो केवल ब्लड शुगर (रक्त शर्करा) के स्तर को प्रभावित करता है। लेकिन हाल के अध्ययनों और शोधों से जो तथ्य सामने आया हैं, वह बेहद चौंकाने वाला और गंभीर चिंता का विषय हैं। बीकानेर के पीबीएम अस्पताल में हुए एक ताजा शोध के अनुसार, मधुमेह केवल इंसुलिन या शुगर का खेल नहीं है, बल्कि यह शरीर के लगभग हर अंग पर गहरा प्रभाव डालता है विशेषकर हड्डियों और जोड़ों पर।
इस शोध ने साफ किया कि 35.5% मधुमेह रोगी हड्डी और जोड़ संबंधी बीमारियों से जूझ रहे हैं। इनमें फ्रोजन शोल्डर, चारकोट जॉइंट, घुटनों में दर्द जैसी स्थितियां शामिल हैं। इसका सीधा अर्थ है कि डायबिटीज की वजह से हड्डियाँ अंदर ही अंदर खोखली हो रही हैं, जिससे फ्रैक्चर का खतरा कई गुना बढ़ गया है।
जब कोई मधुमेह रोगी ब्लड शुगर के स्तर को नियंत्रित नहीं रख पाता है, तो इसका असर सिर्फ आँखों, गुर्दों और दिल तक सीमित नहीं रहता है, बल्कि यह हड्डियों की मजबूती को भी प्रभावित करता है। इंसुलिन की कमी, लंबे समय तक हाई ब्लड शुगर और न्यूरोपैथी जैसी स्थितियाँ हड्डियों की बनावट को नुकसान पहुंचाती हैं। मधुमेह की वजह से हड्डियाँ अधिक लचीली, कमजोर और भंगुर हो जाती हैं।
पीबीएम अस्पताल, बीकानेर के डॉ. सुरेन्द्र कुमार वर्मा एवं डॉ. हारुन शाह के नेतृत्व में हाल ही के महीने में
डायबिटिक केयर एंड रिसर्च सेंटर शोध में 400 मधुमेह मरीजों को शामिल किया गया था, जिनमें से 35.5% में हड्डी और जोड़ों से जुड़ी समस्याएँ पाई गईं। शोध का निष्कर्ष है फ्रोजन शोल्डर 8%, चारकोट जॉइंट 3.5%, घुटनों और जोड़ों का दर्द 12.25% और एचबीए1सी स्तर 9.59 औसत (जो बहुत अधिक है)। इस शोध ने स्पष्ट किया कि जिन रोगियों का शुगर नियंत्रण बेहद खराब था, उनमें हड्डियों की कमजोरी और फ्रैक्चर की संभावना कई गुना अधिक देखी गई।
इंसुलिन को आम तौर पर ब्लड शुगर कंट्रोल करने वाला हार्मोन माना जाता है। लेकिन हड्डियों के स्वास्थ्य में इसकी अहम भूमिका है। इंसुलिन ऑस्टियोब्लास्ट नामक कोशिकाओं को सक्रिय करता है, जो हड्डियों के निर्माण और मरम्मत का कार्य करती हैं। जब शरीर में इंसुलिन की कमी होती है, तो हड्डियों के निर्माण की गति धीमी हो जाती है और वे कमजोर होने लगता है।
मधुमेह की एक प्रमुख जटिलता डायबिटिक न्यूरोपैथी होती है, जिसमें नसें कमजोर हो जाती हैं। इसका असर यह होता है कि मरीज को अपने शरीर का संतुलन बनाए रखना मुश्किल हो जाता है। चलते-चलते अचानक गिर जाना या संतुलन खोना आम बात बन जाता है, जिससे फ्रैक्चर होने की आशंका बढ़ जाता है, खासकर बुजुर्गों में।
शोध में कई प्रमुख कारक सामने आए हैं, जिनसे मधुमेह मरीजों की हड्डियाँ कमजोर हो रही हैं। ब्लड शुगर का असंतुलन के कारण हड्डी कोशिकाएं क्षतिग्रस्त होती हैं, इंसुलिन की कमी के कारण हड्डियों का निर्माण रुकता है, विटामिन D की कमी के कारण कैल्शियम का अवशोषण नहीं होता है, न्यूरोपैथी के कारण संतुलन बिगड़ता है, गिरने का खतरा बढ़ जाता है, रीनल डिसफंक्शन के कारण हड्डी में मिनरल कम होने लगता है, मोटापा और गतिहीन जीवनशैली के कारण घुटनों और जोड़ों पर अतिरिक्त भार बढ़ जाता है।
इस अध्ययन में 20 से 60 वर्ष की आयु के मधुमेह मरीजों को शामिल किया गया था। लेकिन आश्चर्यजनक रूप से, 35 से 45 वर्ष की आयु वर्ग सबसे अधिक प्रभावित पया गया। इसका मतलब यह है कि हड्डी और जोड़ से जुड़ी जटिलताएँ अब मध्यम आयु वर्ग के लोगों को भी तेजी से अपनी चपेट में ले रहा है, जो पहले केवल बुजुर्गों तक सीमित माना जाता था।
चारकोट जॉइंट एक दुर्लभ लेकिन गंभीर स्थिति है जो मधुमेह मरीजों में देखने को मिलती है। इसमें पैर या टखने के जोड़ों की हड्डियाँ धीरे-धीरे टूटने लगती हैं और मरीज को पता भी नहीं चलता। यह स्थिति इतनी गंभीर होती है कि कभी-कभी अंग कटवाना भी पड़ सकता है।
डायबिटीज और ऑस्टियोपोरोसिस (हड्डियों की कमजोरी) का संबंध पिछले कुछ वर्षों में अधिक स्पष्ट हुआ है। खासतौर पर टाइप 1 डायबिटीज से ग्रसित मरीजों में हड्डी का घनत्व (Bone Mineral Density) बहुत तेजी से घटता है। वहीं टाइप 2 डायबिटीज वाले मरीजों में हड्डी घनत्व बना रहता है, लेकिन हड्डियों की गुणवत्ता खराब हो जाती है।
हर मधुमेह रोगी को समय-समय पर हड्डियों की जाँच करवानी चाहिए। इसके लिए कुछ विशेष परीक्षण उपलब्ध हैं। वह है DEXA स्कैन (Dual Energy X-ray Absorptiometry)- हड्डियों का घनत्व जांचने का सबसे प्रभावी तरीका। एचबीए1सी जांच- ब्लड शुगर का औसत स्तर जानने के लिए। विटामिन D और कैल्शियम स्तर की जांच तथा फुट स्कैनिंग और गैट एनालिसिस (gait analysis)।
नियमित ब्लड शुगर मॉनिटरिंग करना चाहिए। डाइट, दवाइयां और व्यायाम को संतुलित करना चाहिए। कैल्शियम और विटामिन D का सेवन बढ़ाना चाहिए, इसके लिए डाइट में दूध, दही, हरी पत्तेदार सब्जियाँ, बादाम, अंडे और धूप शामिल करना होता है । व्यायाम करना चाहिए इसमें हल्के वेट ट्रेनिंग और वॉकिंग हड्डियों को मजबूत बनाती है। धूम्रपान और शराब से दूरी बनाना चाहिए ये दोनों तत्व हड्डियों की बनावट को बिगाड़ता है। साल में एक बार हड्डियों की जांच जरूर कराना चाहिए खासतौर पर अगर उम्र 40 पार कर चुका हो।
डॉ. सुरेन्द्र वर्मा कहते हैं कि “मधुमेह अब केवल शुगर की बीमारी नहीं रही। यह एक मल्टी-ऑर्गन डिसऑर्डर है। शोध ने यह सिद्ध कर दिया है कि हड्डियाँ इसका अगला शिकार बन चुकी हैं।”
डॉ. हारुन शाह का कहना है कि “हमें मधुमेह मरीजों की जाँच में हड्डी से जुड़ी समस्याओं को भी शामिल करना चाहिए। खासकर वे मरीज जिनका एचबीए1सी स्तर लगातार अधिक रहता है।”
पीबीएम अस्पताल का यह शोध एक चेतावनी की तरह है। यह दिखाता है कि मधुमेह से न केवल आंख, किडनी और दिल प्रभावित होते हैं, बल्कि अब हड्डियाँ भी गंभीर रूप से इसकी चपेट में हैं। अगर समय रहते मधुमेह मरीज अपने शुगर को नियंत्रित नहीं करते, तो फ्रैक्चर और विकलांगता जैसी स्थितियाँ सामने आ सकता है।
