बिहार में ऑनलाइन प्रमाण-पत्र व्यवस्था बनी मजाक

Jitendra Kumar Sinha
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डिजिटलीकरण का उद्देश्य सरकारी सेवाओं को पारदर्शी और आमजन के लिए सहज बनाना था, लेकिन बिहार में ऑनलाइन प्रमाण-पत्र प्रणाली कुछ लोगों के लिए मजाक और शरारत का अड्डा बनता जा रहा है। ताजा मामला जहानाबाद जिले से सामने आया है जहाँ 'सैमसंग' नाम के व्यक्ति ने आय प्रमाण-पत्र के लिए आवेदन दिया, जिसके पिता का नाम 'आईफोन' और माता का नाम 'स्मार्टफोन' बताया गया है। यही नहीं, उसके पते में 'बैटरी' और डाकघर का नाम 'ढक्कन' दर्ज किया गया है।

इससे पहले पटना में 'डॉग बाबू' के नाम से आवास प्रमाण-पत्र जारी हुआ था, जिसमें पिता 'कुत्ता बाबू' और माता 'कुतिया देवी' लिखी गई थी। वहीं, मोतिहारी के कोटवा अंचल कार्यालय में 'ट्रैक्टर' के नाम से आवास प्रमाण-पत्र बन चुका है, और मधेपुरा में 'एयरफोन' के नाम से आवेदन स्वीकार किया गया था।

जहानाबाद के मोदनगंज अंचल के अधिकारी मोहम्मद आसिफ हुसैन ने बताया कि यह हरकत सरकार की छवि धूमिल करने की साजिश के तौर पर देखी जा रही है। मामले की गंभीरता को समझते हुए इसे साइबर थाने में रिपोर्ट किया गया है। वहीं, अधिकारी यह भी कह रहे हैं कि यह सिर्फ मजाक नहीं बल्कि सरकारी व्यवस्था में बाधा डालने की कोशिश है।

पटना के मसौढ़ी अंचल में जब 'डॉग बाबू' के नाम से प्रमाण-पत्र जारी हुआ था, तो वहां के कार्यपालक सहायक मिंटू कुमार निराला को तत्काल प्रभाव से बर्खास्त कर दिया गया था। यह मामला इसलिए भी गंभीर था क्योंकि यह प्रमाण-पत्र बाकायदा जारी भी कर दिया गया था। इसके बाद से ही अधिकारियों को निर्देश दिया गया है कि ऑनलाइन आवेदनों की भलीभांति जाँच हो।

यह घटनाएं राज्य की ऑनलाइन सेवाओं की विश्वसनीयता पर सवाल खड़ा कर रहा है। डिजिटल इंडिया के सपनों को जब मजाक बनाया जाता है, तो यह सिर्फ एक प्रशासनिक चूक नहीं है बल्कि सामाजिक उत्तरदायित्व की भी विफलता बन जाता है। ऐसे मामलों से सरकारी सेवाओं पर आम लोगों का भरोसा कमजोर पड़ता है।

इन घटनाओं को देखते हुए स्पष्ट है कि ऑनलाइन व्यवस्था को और अधिक सुरक्षित एव सतर्क बनाए जाने की जरूरत है। फर्जी आवेदनों को पहचानने के लिए स्वचालित सिस्टम विकसित किया जाएं, जिससे मजाक करने वाले लोग सिस्टम तक पहुंच नही बना सके। इसके साथ ही शरारती तत्वों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जानी चाहिए ताकि दूसरों को इससे सबक मिले।



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