कला-कृति जैसी जीवित मछली है - “सायकेडेलिक फ्रॉगफिश”

Jitendra Kumar Sinha
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समुद्र की गहराइयों में प्रकृति ने कितने ही रहस्यमय जीवों को रचा है, लेकिन जब बात हो “सायकेडेलिक फ्रॉगफिश” की, तो यह जीव अपने रंग-रूप और व्यवहार से हर किसी को हैरत में डाल देता है। वर्ष 2009 में इंडोनेशिया के अम्बोन और मोलुक्का द्वीपों के पास कोरल रीफ (मूंगा चट्टान) क्षेत्र में पहली बार देखी गई यह मछली विज्ञान जगत के लिए एक अनोखा रहस्य बन गया है।

“सायकेडेलिक फ्रॉगफिश” का नाम ही इसके सबसे खास गुण को दर्शाता है। ‘सायकेडेलिक’ शब्द का अर्थ होता है वह दृश्य जो मतिभ्रम या गहराई से उत्पन्न मानसिक प्रभाव जैसा लगे, ठीक वैसे ही जैसे कोई चमकदार, घूमती हुई रंग-बिरंगी पेंटिंग। इस मछली की त्वचा पर पीले, सफेद और भूरे रंग की लहरदार धारियां होती हैं, जो हर बार अलग-अलग दिखती हैं। वैज्ञानिकों का मानना है कि यह धारियां न केवल इसे खूबसूरत बनाती हैं, बल्कि इसे मूंगा चट्टानों में छिपने में मदद भी करती हैं।

इस मछली की बनावट गोल, चपटी और छोटी होती है, जिससे यह मेंढक जैसी दिखती है। इसी वजह से इसे “फ्रॉगफिश” कहा गया। लेकिन इसकी सबसे अनोखी बात है, इसका तैरने की बजाय चलना। यह मछली अपने पंखों का उपयोग पैरों की तरह करती है और समुद्र की तलहटी पर चलती या हल्के-फुल्के कूदती नजर आती है। यह चाल इसे न केवल अलग बनाती है, बल्कि शिकार के दौरान बेहद कारगर भी होती है।

“सायकेडेलिक फ्रॉगफिश” में एक और अद्भुत गुण है, यह अपने मूड और माहौल के अनुसार रंग बदल सकती है। खतरे के समय यह अपने रंग से खुद को छिपा लेती है, जबकि सामान्य समय में यह अपने जीवंत पैटर्न से मूंगा चट्टानों में घुल-मिल जाती है।

यह छोटी मछली, केकड़ों और झींगों का शिकार करती है। इसके पास एक खास ‘ल्यूअर’ (लालच देने वाला अंग) होता है जिसे यह शिकार को आकर्षित करने के लिए हिलाती है, और जैसे ही शिकार पास आता है, यह तेजी से उसे निगल जाती है।



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