आभा सिन्हा, पटना
भारत की सांस्कृतिक और आध्यात्मिक धरोहर में कुछ पर्व ऐसे हैं जिनका महत्व हर युग में बढ़ता ही गया है। गणेश चतुर्थी उन्हीं में से एक है। विघ्नहर्ता, मंगलकर्ता और प्रथम पूज्य भगवान गणेश का यह उत्सव भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी को पूरे देश में हर्षोल्लास से मनाया जाता है। इस वर्ष गणेश चतुर्थी 27 अगस्त, बुधवार को मनाई जाएगी और इसके साथ ही शुरू होगा दस दिवसीय गणेशोत्सव जो 6 सितंबर, अनंत चतुर्दशी तक चलेगा।
इस बार का गणेशोत्सव विशेष है क्योंकि यह कई शुभ योगों और शुभ नक्षत्रों के संयोग में मनाया जाएगा। बुधवार का दिन, चित्रा नक्षत्र और आनंद, रवि, सर्वार्थ सिद्धि जैसे पांच योग इस पर्व को और भी मंगलकारी बना रहा है।
ज्योतिषाचार्यों के अनुसार, इस बार गणेश चतुर्थी अद्वितीय संयोग में आ रही है। तिथि प्रारंभ- 26 अगस्त दोपहर 12:48 बजे, तिथि समापन- 27 अगस्त दोपहर 02:06 बजे, पूजन दिवस (उदयातिथि अनुसार)- 27 अगस्त, बुधवार, नक्षत्र- चित्रा, वार- बुधवार (गणेशजी का प्रिय दिन)। पाँच विशेष योग, आनंद योग- सुख और शांति का सूचक, सर्वार्थ सिद्धि योग- कार्यसिद्धि और सफलता का योग, शुभ योग- मनोकामना पूर्ण करने वाला, शुक्ल योग- समृद्धि और उन्नति का द्योतक और रवियोग- विद्या, व्यापार और वाणी में शुभ परिवर्तन। इन योगों के प्रभाव से इस बार गणेश चतुर्थी न केवल धार्मिक दृष्टि से बल्कि ज्योतिषीय दृष्टि से भी अत्यंत महत्वपूर्ण है।
भगवान गणेश को आदि देवता, विघ्नहर्ता, बुद्धि और विवेक के अधिष्ठाता माना जाता है। किसी भी शुभ कार्य, यज्ञ या पूजा की शुरुआत उनके स्मरण से होती है। भगवान गणेश का सूंड़- विवेक और निर्णय क्षमता का प्रतीक है, बड़ा पेट- धैर्य और सहनशीलता का द्योतक है, मूषक वाहन- अहंकार पर विजय का संदेश है और मोदक- ज्ञान और आत्मसंतोष का प्रतीक है। गणेश चतुर्थी के अवसर पर घरों और पंडालों में स्थापित प्रतिमाएं भक्तों को यही संदेश देती हैं कि विनम्रता, धैर्य और विवेक से जीवन के सभी विघ्न दूर किए जा सकते हैं।
गणेशोत्सव 10 दिनों का पर्व है। प्रतिमा स्थापना (27 अगस्त), भक्त गणपति बप्पा को घर या पंडालों में विधिवत प्रतिष्ठित करते हैं। लाल वस्त्र, दूर्वा, मोदक और पुष्प अर्पित कर उनका स्वागत किया जाता है। दैनिक पूजन और आरती, सुबह-शाम भक्त गणपति की आराधना करते हैं। धूप, दीप, नैवेद्य और मोदक से पूजा संपन्न होती है। सांस्कृतिक कार्यक्रम, कई जगहों पर नाटक, भजन-कीर्तन, नृत्य और सामाजिक कार्यक्रम आयोजित होते हैं। मुंबई, पुणे और हैदराबाद जैसे शहरों में गणेशोत्सव सामुदायिक एकता का अद्भुत उदाहरण बनता है।गणपति विसर्जन (अनंत चतुर्दशी, 6 सितंबर), दस दिनों बाद “गणपति बप्पा मोरया, अगले बरस तू जल्दी आ” के नारों के साथ प्रतिमाओं का विसर्जन किया जाता है। यह आस्था और विरक्ति दोनों का अद्भुत संगम है।
महाराष्ट्र- मुंबई का लालबागचा राजा और पुणे के गणपति पंडाल विश्व प्रसिद्ध हैं। लाखों लोग प्रतिदिन दर्शन करते हैं। मध्यप्रदेश- भोपाल और इंदौर में विशाल शोभायात्राएं निकलती हैं। घर-घर में गणेश स्थापना होती है। बिहार और झारखंड- पटना और रांची में गणेशोत्सव के साथ हरतालिका तीज का उत्साह भी देखा जाता है। महिलाएं शिव-पार्वती की आराधना करती हैं। दक्षिण भारत- चेन्नई, बेंगलुरु और हैदराबाद में गणेशोत्सव की भव्यता देखते ही बनती है। यहां कुंभकार समुदाय विशेष प्रकार की कलात्मक प्रतिमाएं तैयार करता है।
इस वर्ष 26 अगस्त को हरतालिका तीज मनाई जाएगी, जो गणेशोत्सव से ठीक एक दिन पहले है। यह पर्व भगवान शिव और पार्वती के पुनर्मिलन का प्रतीक है। महिलाएं इस दिन निर्जला व्रत रखकर शिव-पार्वती और गणेशजी की पूजा करती हैं। बिहार और उत्तर भारत में मिट्टी से बने शिव परिवार की पूजा का विशेष महत्व है। इस प्रकार, इस बार गणेशोत्सव और हरतालिका तीज का संगम भक्ति, समर्पण और सांस्कृतिक उत्सव का अनूठा वातावरण बनाएगा।
ज्योतिषीय दृष्टि से गणेश चतुर्थी का महत्व– इस दिन चंद्रमा तुला राशि में और गुरु मिथुन राशि में रहेंगे। विद्यार्थियों को पढ़ाई में सफलता मिलेगी। व्यापारी वर्ग को लाभ और समृद्धि की प्राप्ति होगी। किसानों के लिए यह संयोग सुख और सम्पन्नता लाने वाला होगा।
गणेशोत्सव केवल धार्मिक नहीं बल्कि कला और संस्कृति का भी पर्व है। मूर्तिकार महीनों पहले से प्रतिमाओं की तैयारी करते हैं। पंडाल सजावट में पौराणिक कथाओं, सामाजिक संदेशों और आधुनिक तकनीक का संगम देखने को मिलता है। लोककला, संगीत और नृत्य गणेशोत्सव की आत्मा बन जाते हैं।
पिछले वर्षों में पर्यावरण संरक्षण को ध्यान में रखते हुए इको-फ्रेंडली गणेश प्रतिमाओं का चलन बढ़ा है। मिट्टी, शंख, गोबर और प्राकृतिक रंगों से बनी प्रतिमाएं जलाशयों को प्रदूषण से बचाने के लिए कृत्रिम विसर्जन कुंड का निर्माण, कपड़े, फूल और सजावट सामग्री का पुनः उपयोग, इससे आस्था और पर्यावरण दोनों का संतुलन बना रहता है।
गणेशोत्सव केवल पूजा-पाठ तक सीमित नहीं है, बल्कि यह सामाजिक समरसता, एकता और सांस्कृतिक जागरण का भी पर्व है। सामूहिक आयोजन समाज में भाईचारा बढ़ाते हैं। पंडालों में गरीबों और जरूरतमंदों को भोजन वितरण होता है। सांस्कृतिक मंच से शिक्षा, स्वच्छता और पर्यावरण जैसे विषयों पर जागरूकता फैलाई जाती है।
लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक ने स्वतंत्रता आंदोलन के समय गणेशोत्सव को जन-आंदोलन का रूप दिया था। सामूहिक गणेशोत्सव ने अंग्रेजों के खिलाफ लोगों को एकजुट किया। आज भी यह पर्व भारतीय संस्कृति और राष्ट्रवाद का प्रतीक माना जाता है।
गणेश चतुर्थी 2025 का यह विशेष संयोग भक्तों के लिए समृद्धि, कार्यसिद्धि और सुखद बदलाव लेकर आएगा। हरतालिका तीज और गणेशोत्सव का संगम इस बार का पर्व और भी खास बना रहा है।
