आभा सिन्हा, पटना
भारत को विश्वभर में आध्यात्मिकता, आस्था और मंदिरों की भूमि कहा जाता है। यहां हर देवी-देवता के अनेकों मंदिर हैं, जिनसे जुड़ी पौराणिक कथाएं, रहस्य और परंपराएं लोगों को चकित कर देता है। गणेश जी, जिन्हें विघ्नहर्ता और प्रथम पूज्य माना जाता है, देशभर में अनगिनत मंदिरों में स्थापित है। उनकी मूर्तियां सामान्यतः बड़े सिर, सूंड और गजमुख स्वरूप में देखा जाता है। लेकिन उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग जिला में स्थित मुंडकटिया मंदिर इस परंपरा से बिल्कुल अलग है। यहां भगवान गणेश की मूर्ति बिना सिर के विराजमान है और उनकी पूजा हजारों वर्षों से होता आ रहा है।
गणेश जी का नाम लेते ही हर किसी के मन में एक गजमुख देवता की छवि उभरती है। शास्त्रों के अनुसार, गणेश जी को प्रथम पूज्य माना गया है। किसी भी शुभ कार्य की शुरुआत उनसे किया जाता है। वे विद्या, बुद्धि और समृद्धि के देवता हैं। उन्हें विघ्नहर्ता कहा जाता है क्योंकि वे भक्तों के जीवन से सभी बाधाओं को दूर करते हैं। गणेश जी के अनेक रूप और स्वरूप हैं, लेकिन अधिकतर मूर्तियां बड़े सिर और हाथी के मुख के साथ दिखाई देता है।
मुंडकटिया मंदिर उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग जिले में स्थित है। यह प्रसिद्ध त्रियुगीनारायण मंदिर के बेहद करीब है। इस मंदिर की विशेषता है कि यहां गणेश जी की मूर्ति सिरविहीन है। श्रद्धालु मानते हैं कि यही वह स्थान है जहां भगवान शिव ने अपने पुत्र गणेश का सिर काटा था। मंदिर छोटा होने के बावजूद इसकी महिमा बहुत विशाल है। हर साल गणेश चतुर्थी और अन्य पर्वों पर यहां भारी भीड़ उमड़ती है।
मुंडकटिया मंदिर से जुड़ी सबसे प्रसिद्ध कथा का संबंध भगवान शिव, माता पार्वती और गणेश जी से है। एक बार माता पार्वती स्नान करने जा रही थीं। उन्होंने अपने शरीर के उबटन से एक बालक को जन्म दिया और उसे द्वार पर पहरा देने का आदेश दिया। वह बालक गणेश थे। जब भगवान शिव घर लौटे तो उन्हें प्रवेश से रोका गया। गणेश जी ने अपनी माता के आदेश का पालन किया और शिव को अंदर नहीं जाने दिया। इससे क्रोधित होकर भगवान शिव ने अपने त्रिशूल से गणेश जी का सिर काट दिया। जब माता पार्वती ने यह देखा तो वे शोक में डूब गईं और उन्होंने शिव से पुत्र को पुनर्जीवित करने की प्रार्थना की। तब शिव ने गणेश के धड़ पर हाथी का सिर लगाकर उन्हें पुनः जीवन दिया।
कहा जाता है कि जिस स्थान पर गणेश जी का सिर कटा था, वही स्थान आज मुंडकटिया मंदिर कहलाता है। यही वजह है कि यहां बिना सिर वाले गणेश जी का पूजा किया जाता है।
मुंडकटिया मंदिर किसी भव्य शिल्पकला का उदाहरण नहीं है, लेकिन इसकी सरलता ही इसकी विशेषता है। मंदिर छोटा है, पत्थरों से बना हुआ है और पारंपरिक पहाड़ी शैली में निर्मित है। गर्भगृह में गणेश जी की बिना सिर वाली प्रतिमा विराजमान है। मंदिर परिसर के चारों ओर देवदार और पहाड़ी वृक्ष वातावरण को पवित्र और शांत बनाता है। आसपास के पहाड़ और नदियां इस जगह की आध्यात्मिक ऊर्जा को और बढ़ाता है।
श्रद्धालु मानते हैं कि मुंडकटिया मंदिर में पूजा करने से सभी विघ्न दूर हो जाता है। यहां आने वाले भक्त विशेषकर गणेश चतुर्थी, संकष्टी चतुर्थी और विवाह-उत्सवों से पहले दर्शन करते हैं। यह मंदिर गुप्तकाशी, रुद्रनाथ और केदारनाथ यात्रा के दौरान भी श्रद्धालुओं के लिए महत्वपूर्ण पड़ाव है।
हर साल गणेश चतुर्थी पर इस मंदिर में भव्य मेला का आयोजन होता है। दूर-दराज से लोग यहां आकर भगवान को प्रसाद अर्पित करते हैं। भक्त मोदक और दूर्वा घास चढ़ाते हैं। स्थानीय ग्रामीण और पुजारी विशेष भजन-कीर्तन और पूजा-अर्चना का आयोजन करते हैं। इस अवसर पर मंदिर का वातावरण भक्ति और उल्लास से भर जाता है।
गांववालों का मानना है कि यहां दर्शन करने से मनोकामनाएं पूरी होती है। कई श्रद्धालु बताते हैं कि विवाह या संतान प्राप्ति की इच्छा से यहां पूजा करने के बाद उनकी मनोकामना पूरी हुई। एक लोककथा यह भी कहती है कि अगर कोई पहली बार यहां आता है और बिना सिर वाले गणेश जी के दर्शन करता है तो उसके जीवन से सभी बाधाएं दूर हो जाती हैं।
मुंडकटिया मंदिर केवल आस्था का केंद्र ही नहीं बल्कि एक पर्यटन स्थल भी है। यहां पहुंचने के लिए यात्रियों को त्रियुगीनारायण मंदिर के पास से गुजरना पड़ता है। आसपास की प्राकृतिक सुंदरता, पहाड़, झरने और हरियाली मन को मोह लेता है। श्रद्धालु अक्सर इसे अपनी केदारनाथ यात्रा के साथ जोड़ते हैं।
इतिहासकार मानते हैं कि मुंडकटिया मंदिर का संबंध प्राचीन शैव परंपरा से है। यह मंदिर पौराणिक कथाओं का सजीव प्रमाण माना जाता है। कई शोधकर्ताओं ने इसे भारत के अद्वितीय मंदिरों में गिना है क्योंकि यहां देवी-देवता का स्वरूप पारंपरिक रूप से अलग है। कुछ विद्वानों का मानना है कि यह स्थल आदिगणेश उपासना का प्रतीक है।
भारत में गणेश जी के अनेक मंदिर हैं, लेकिन मुंडकटिया की तरह अनोखे कम ही हैं। उच्चकटेश्वर मंदिर, मध्यप्रदेश- यहां गणेश जी की मूर्ति का सिर कटे रूप में माना जाता है। इडगाहपुरी गणपति, महाराष्ट्र- यहां गणेश जी की मूर्ति अपने आप बढ़ती हुई मानी जाती है। कम्बादेवन गणेश मंदिर, तमिलनाडु- यहां गणपति का स्वरूप सामान्य से बिल्कुल अलग है। लेकिन इनमें भी मुंडकटिया मंदिर का महत्व सबसे अनोखा है क्योंकि यहां बिना सिर वाली प्रतिमा की प्रत्यक्ष पूजा होती है।
भारतीय भक्ति साहित्य में गणेश जी की महिमा का विशेष उल्लेख मिलता है। संत तुलसीदास, सूरदास और अन्य कवियों ने भी गणेश जी को वंदन किया। दक्षिण भारत में हर साहित्य और नृत्य की शुरुआत गणेश वंदना से होती है। मुंडकटिया मंदिर इस बात का प्रमाण है कि गणेश जी का स्वरूप चाहे जैसा हो, भक्ति और आस्था ही सर्वोपरि है।
मुंडकटिया मंदिर केवल एक धार्मिक स्थल नहीं है बल्कि यह भक्ति, आस्था और रहस्य का संगम है। यहां बिना सिर वाले गणेश जी की पूजा यह संदेश देता है कि ईश्वर के स्वरूप से अधिक उनकी शक्ति और आशीर्वाद महत्वपूर्ण है।
