हिन्दी दिवस केवल एक भाषा का उत्सव नहीं है, बल्कि भारतीय अस्मिता, संस्कृति और ज्ञान परंपरा का भी प्रतीक है। इसी कड़ी में बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन ने इस बार 1 सितंबर से 15 सितंबर तक “हिंदी-पखवारा सह पुस्तक चौदस मेला” आयोजित करने की घोषणा की है। यह आयोजन न केवल साहित्य प्रेमियों के लिए, बल्कि विद्यार्थियों, शोधकर्ताओं और पुस्तक-प्रेमी जनों के लिए भी एक अनूठा अवसर लेकर आ रहा है।
बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन लंबे समय से हिन्दी भाषा के प्रचार-प्रसार और संवर्धन में अग्रणी रहा है। डॉ. अनिल सुलभ के नेतृत्व में सम्मेलन निरंतर हिन्दी साहित्य और संस्कृति की गरिमा बढ़ाने के कार्यों में संलग्न है। इस बार का आयोजन और भी विशेष इसलिए है क्योंकि इसमें साहित्य के साथ-साथ युवा पीढ़ी को जोड़ने की सार्थक कोशिश की जा रही है।
हिन्दी पखवारे के दौरान विद्यार्थियों के लिए वाद-विवाद, निबंध लेखन, कविता-पाठ, प्रश्नोत्तरी और भाषण जैसी अनेक प्रतियोगिताएं आयोजित की जाएंगी। इन गतिविधियों का उद्देश्य केवल पुरस्कार देना नहीं है, बल्कि युवा वर्ग में हिन्दी के प्रति रुचि और गर्व की भावना जगाना है।
14 सितंबर, हिन्दी दिवस के दिन सम्मेलन 14 हिन्दी सेवियों को 'साहित्य सम्मेलन हिन्दी सेवा सम्मान' से अलंकृत करेगा। यह सम्मान उन लोगों को समर्पित है जिन्होंने अपने जीवन को हिन्दी भाषा और साहित्य की सेवा के लिए समर्पित कर दिया है। यह क्षण न केवल सम्मानीय साहित्यकारों के लिए, बल्कि पूरी हिन्दी जगत के लिए गौरवपूर्ण होगा।
इस पखवारे का सबसे आकर्षक पहलू है पुस्तक चौदस मेला। इसमें राष्ट्रीय पुस्तक न्यास सहित देश-विदेश के अनेक प्रकाशक अपनी पुस्तकों की प्रदर्शनी करेंगे। साहित्य, इतिहास, विज्ञान, संस्कृति और समकालीन विषयों से जुड़ी पुस्तकें पाठकों को उपलब्ध होगी। इससे न केवल पठन-पाठन की संस्कृति को बढ़ावा मिलेगा, बल्कि नई पीढ़ी में पुस्तक-प्रेम को भी मजबूती मिलेगी।
पखवारे के दौरान राष्ट्रभाषा-प्रहरी नृपेंद्रनाथ गुप्त की जयंती मनाई जाएगी। साथ ही अनेक पुस्तकों का लोकार्पण तथा लघुकथा-गोष्ठी का भी आयोजन होगा। यह कार्यक्रम साहित्यिक विमर्श और नई रचनाओं के प्रकाशन का मंच बनेगा।
‘हिन्दी-पखवारा सह पुस्तक चौदस मेला’ केवल एक आयोजन नहीं, बल्कि भाषा और साहित्य से जुड़ने का अवसर है। यह हिन्दी की विराटता, समृद्धि और प्रासंगिकता को सामने लाता है। ऐसे आयोजनों से न केवल हिन्दी का प्रचार-प्रसार होता है, बल्कि समाज में सांस्कृतिक चेतना भी मजबूत होती है।
