भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) एक बार फिर अंतरिक्ष विज्ञान के क्षेत्र में अपनी क्षमताओं का लोहा मनवाने जा रहा है। इसरो के चेयरमैन वी. नारायणन ने रविवार को जानकारी दी है कि संगठन आने वाले कुछ महीनों में अमेरिका द्वारा निर्मित 6,500 किलो वजनी संचार उपग्रह का प्रक्षेपण करेगा। यह कदम न केवल भारत के अंतरिक्ष मिशनों की बढ़ती तकनीकी क्षमता को दर्शाता है, बल्कि वैश्विक स्तर पर इसरो की साख को भी और मजबूत करेगा।
इसरो के चेयरमैन वी. नारायणन ने बताया कि यह प्रक्षेपण 30 जुलाई को जीएसएलवी-एफ16 रॉकेट द्वारा नासा-इसरो सिंथेटिक एपर्चर रडार (NISAR) मिशन के सफल प्रक्षेपण के बाद होगा। NISAR मिशन को ऐतिहासिक माना जा रहा है क्योंकि यह धरती के सतही बदलावों की निगरानी और प्राकृतिक आपदाओं के पूर्वानुमान में अहम भूमिका निभाएगा। इसके तुरंत बाद अमेरिका के इस भारी-भरकम संचार उपग्रह का प्रक्षेपण इसरो की तकनीकी दक्षता का और बड़ा प्रमाण होगा।
6,500 किलो का संचार उपग्रह प्रक्षेपित करना किसी भी अंतरिक्ष एजेंसी के लिए बड़ी चुनौती होती है। इसरो ने पिछले कुछ वर्षों में अपने रॉकेट और लॉन्च सिस्टम को लगातार उन्नत किया है, जिससे अब वह इतने भारी उपग्रहों को भी आसानी से अंतरिक्ष में स्थापित कर सकता है। माना जा रहा है कि इस उपग्रह का प्रक्षेपण भू-स्थिर कक्षा (Geostationary Orbit) में किया जाएगा, जो लंबी दूरी की संचार सेवाओं के लिए उपयुक्त है।
इस प्रक्षेपण के साथ ही अमेरिका और भारत के बीच अंतरिक्ष सहयोग का दायरा और बढ़ेगा। पहले से ही नासा और इसरो मिलकर कई संयुक्त मिशन चला रहे हैं, और यह नया प्रोजेक्ट दोनों देशों के तकनीकी और रणनीतिक संबंधों को मजबूती देगा। इस मिशन के बाद भारत अंतरराष्ट्रीय बाजार में उपग्रह प्रक्षेपण के लिए और भी बड़ा खिलाड़ी बनकर उभरेगा।
पिछले एक दशक में इसरो ने कम लागत में उच्च गुणवत्ता वाले अंतरिक्ष मिशनों को अंजाम देकर दुनिया का ध्यान खींचा है। यूरोप, एशिया और अमेरिका के कई देश अब अपने उपग्रहों के प्रक्षेपण के लिए इसरो पर भरोसा कर रहा है। भारी-भरकम संचार उपग्रह के प्रक्षेपण से इसरो का पोर्टफोलियो और व्यापक होगा।
यह मिशन भारत के लिए गर्व का अवसर होगा। अंतरिक्ष क्षेत्र में आत्मनिर्भरता और वैश्विक सहयोग का यह संगम आने वाले समय में भारत को "स्पेस हब" बनाने की दिशा में एक और कदम होगा।
अगले कुछ महीनों में जब यह प्रक्षेपण होगा, तब न केवल वैज्ञानिक समुदाय, बल्कि पूरा देश इस ऐतिहासिक क्षण का साक्षी बनेगा। इसरो की यह उड़ान साबित करेगा कि भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम अब किसी भी स्तर पर विश्व की अग्रणी एजेंसियों को चुनौती देने में सक्षम है।
