राहु-कालसर्प दोष निवारण का प्राचीन शिवधाम - दक्षिण का कैलाश - “कालाहस्ती मंदिर”

Jitendra Kumar Sinha
0

 




आभा सिन्हा, पटना

भारत की आध्यात्मिक भूमि पर हजारों मंदिर फैले हुए हैं, लेकिन कुछ ऐसे अद्वितीय स्थल हैं जो न केवल आस्था का केंद्र होता है, बल्कि मानवीय जीवन की गहन समस्याओं के समाधान के लिए भी प्रसिद्ध होता है। आंध्र प्रदेश के चित्तूर जिले में स्थित कालाहस्ती मंदिर ऐसा ही एक पवित्र स्थल है, जो राहु दोष और कालसर्प दोष के निवारण के लिए पूरे देश में विख्यात है। यहां आने वाले हर श्रद्धालु इस विश्वास के साथ आते है कि भगवान कालहस्तीश्वर (शिव) स्वयं उसकी बाधाओं को दूर करेंगे। मंदिर का वातावरण, पौराणिक कथाएं और धार्मिक अनुष्ठान इसे एक जीवंत तीर्थस्थल का दर्जा देता है।

कालाहस्ती मंदिर आंध्र प्रदेश के चित्तूर जिले के श्रीकालहस्ती नामक कस्बे में स्थित है। यह स्थान तिरुपति से लगभग 35 किलोमीटर की दूरी पर है, जिससे यहां आने वाले भक्त अक्सर तिरुमला बालाजी के दर्शन के साथ कालाहस्ती भी अवश्य जाते हैं। दक्षिण भारत में इसे “दक्षिण का कैलाश” और “दक्षिण काशी” के नाम से भी जाना जाता है। मंदिर न केवल धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह शैव पंथ की परंपराओं और द्रविड़ वास्तुकला का भी अद्भुत उदाहरण है।

कालाहस्ती मंदिर का इतिहास लगभग 2000 वर्ष पुराना माना जाता है। इसका निर्माण काल, इसकी नींव चोला वंश ने 5वीं शताब्दी में रखी थी। पुनर्निर्माण, 10वीं शताब्दी में चोला शासकों ने विजयनगर साम्राज्य के राजाओं की सहायता से इसे पुनर्निर्मित कराया था। राजा कृष्णदेव राय ने 1516 ई. में मंदिर परिसर में सौ स्तंभ मंडप का निर्माण करवाया था, जो आज भी वास्तुशिल्प का अद्भुत नमूना है। मंदिर की दीवारों और स्तंभों पर की गई नक्काशियां दक्षिण भारतीय शिल्पकला के उत्कर्ष को दर्शाता है।

‘कालाहस्ती’ नाम की उत्पत्ति एक पौराणिक कथा से जुड़ी है। कहा जाता है कि इस स्थान पर तीन जीव, मकड़ी (श्री), सर्प (काल) और हाथी (हस्ती), भगवान शिव की भक्ति में लीन रहे। मकड़ी ने शिवलिंग पर जाल बुनकर उसकी रक्षा की। सर्प ने शिवलिंग से लिपटकर ध्यान किया। हाथी प्रतिदिन नदी से जल लाकर शिवलिंग का अभिषेक करता था। भगवान शिव ने तीनों को मोक्ष प्रदान किया, और स्थान का नाम ‘श्रीकालहस्ती’ पड़ा।

मंदिर की सबसे प्रसिद्ध कथा कन्नप्पा नयनार की है। एक दिन मंदिर में भगवान शिव के शिवलिंग से रक्त बहने लगा। पुजारी और लोग घबरा गए। कन्नप्पा नामक एक शिकारी, जो शिव का अनन्य भक्त था, तुरंत शिवलिंग की पीड़ा समझ गया। उसने अपनी एक आंख निकालकर शिवलिंग पर रख दी। जब वह दूसरी आंख भी निकालने लगा, तब भगवान शिव प्रकट हुए और उसे रोक दिया। उन्होंने वरदान दिया “हे भक्त, मैं सदा यहां निवास करूंगा और जो भी सच्ची भक्ति से आएगा, उसकी रक्षा करूंगा।” इस घटना ने कालाहस्ती को भक्ति और बलिदान का प्रतीक बना दिया।

वैदिक ज्योतिष में राहु को छाया ग्रह माना गया है। जन्मकुंडली में राहु की अशुभ स्थिति जीवन में बाधाएं, मानसिक तनाव और अचानक संकट ला सकता है।

जब जन्मकुंडली में सभी ग्रह राहु और केतु के बीच स्थित होते हैं, तो इसे कालसर्प दोष कहा जाता है। इससे जीवन में रुकावटें, आर्थिक हानि, विवाह में विलंब, और मानसिक अशांति हो सकता है।

कालाहस्ती मंदिर में विशेष राहु-केतु पूजा और कालसर्प दोष निवारण पूजा होता है। यह पूजा प्रतिदिन होता है, और एक बार में लगभग 100 लोग एक साथ बैठकर अनुष्ठान करते हैं। खास बात यह है कि इन पूजाओं में श्रद्धालु को उपवास या वस्त्र-दान की जटिलता नहीं होती है, जिससे देशभर के लोग यहां सहजता से पूजा करा सकते हैं।

मंदिर द्रविड़ शैली का उत्कृष्ट उदाहरण है। गोपुरम- ऊंचा प्रवेश द्वार जिसमें बारीक मूर्तिकला है। सौ स्तंभ मंडप- विशाल स्तंभ, जिन पर देवी-देवताओं, नृत्यांगनाओं और पौराणिक कथाओं की सुंदर नक्काशी है। गरभगृह-  शिवलिंग यहां वायु तत्व का प्रतीक है, और यहां दीपक की लौ बिना हवा के भी हिलती रहती है, जो एक चमत्कार माना जाता है।

मंदिर में शैव पंथ के सभी नियमों का पालन किया जाता है। पूजा दिन में चार बार होता है। कलासंथी पूजा- सुबह 6 बजे, उचिकलम पूजा-  सुबह 11 बजे, सयाराक्शाई पूजा-  शाम 5 बजे, रात्रि सयाराक्शाई पूजा-  रात 7:45 बजे से 8 बजे तक। इनमें अभिषेक, मंत्रोच्चारण, दीपाराधना और आरती शामिल हैं।

सूत्रों के अनुसार, कालाहस्ती मंदिर की वार्षिक आय 100 करोड़ रुपये से भी अधिक है। यहां से होने वाली आय का उपयोग मंदिर के रखरखाव, सामाजिक सेवा, और धार्मिक आयोजनों में किया जाता है। मंदिर परिसर में अनेक दूकानें, भोजनालय और अतिथि गृह भी हैं, जिससे स्थानीय लोगों को रोजगार मिलता है।

कालाहस्ती मंदिर केवल पूजा-अर्चना का स्थल नहीं है, बल्कि यह आत्मिक शांति, सकारात्मक ऊर्जा और भक्ति की अनुभूति का स्थान है। कालाहस्ती मंदिर आस्था, इतिहास, कला और आध्यात्मिकता का अद्वितीय संगम है। यहां की राहु-कालसर्प दोष निवारण पूजा ने लाखों लोगों के जीवन में परिवर्तन लाया है। यहां आने वाला हर भक्त महसूस करता है कि मानो उसके जीवन की नकारात्मक शक्तियां धीरे-धीरे दूर हो रही हैं।

—--------------


एक टिप्पणी भेजें

0टिप्पणियाँ

एक टिप्पणी भेजें (0)

#buttons=(Ok, Go it!) #days=(20)

Our website uses cookies to enhance your experience. Learn More
Ok, Go it!
To Top