मेघालय का अनोखा गांव कोंगथोंग - यहां नाम नहीं, धुन होती है पहचान

Jitendra Kumar Sinha
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भारत विविधताओं और सांस्कृतिक विरासतों का देश है। यहां हर क्षेत्र, हर गांव की अपनी एक अलग और दिलचस्प कहानी होती है। जहां एक ओर तकनीकी विकास की ओर बढ़ते शहर हैं, वहीं दूसरी ओर आज भी कई ऐसे गांव हैं जो अपनी विशिष्ट परंपराओं के कारण अनोखा है। ऐसा ही एक गांव है मेघालय का “कोंगथोंग (Kongthong)”, जिसे 'सीटी गांव' (Whistling Village) कहा जाता है। इस गांव की सबसे बड़ी खासियत यह है कि यहां लोग एक-दूसरे को नाम से नहीं, बल्कि सीटी बजाकर बुलाते हैं।

कोंगथोंग गांव भारत के उत्तर-पूर्वी राज्य मेघालय के ईस्ट खासी हिल्स जिला में स्थित है। यह गांव शिलॉंग से लगभग 55 किलोमीटर की दूरी पर है। चारों ओर हरियाली, बादलों से ढके पहाड़, और प्राकृतिक सौंदर्य से घिरे इस गांव की आबादी लगभग 600 लोगों की है। लेकिन इस छोटे से गांव जो वैश्विक स्तर पर प्रसिद्ध है, वह है – 'जिंगराई सिएवबाई' या संगीतमय पहचान।

यह परंपरा हजारों सालों से गांव में जीवित है। यहां हर व्यक्ति के नाम के साथ एक अलग संगीतात्मक धुन (tune) जुड़ी होती है, जो उस व्यक्ति की पहचान बनती है। इसे स्थानीय खासी भाषा में "जिंगराई लाबाई" कहते हैं, जिसका शाब्दिक अर्थ है – “प्रेमपूर्वक बुलाने की धुन”।

कोंगथोंग गांव में इस अद्भुत परंपरा की शुरुआत कब और कैसे हुई, इसके कोई ऐतिहासिक प्रमाण नहीं हैं। किंतु गांव के बुजुर्गों का मानना है कि यह परंपरा पीढ़ियों से चली आ रही है, और इसका संबंध प्रकृति से गहरे जुड़ाव से है।

स्थानीय लोककथाओं के अनुसार, पहाड़ी और जंगलों से घिरे इस गांव में पहले आवाजों का दूर तक पहुंचना मुश्किल होता था। ऐसे में लोग एक-दूसरे को पुकारने के लिए सीटी जैसी धुनों का प्रयोग करने लगे। धीरे-धीरे यह संस्कृति में ढल गई और अब यह कोंगथोंग की पहचान बन चुकी है।

कोंगथोंग में जब किसी बच्चे का जन्म होता है, तो उसकी मां उसे एक विशेष लोरी (lullaby) देती है, जिसमें वह खुद एक अनूठी धुन बनाती है। यह धुन ही बच्चे की पहचान बनती है।

यह लोरी आमतौर पर प्राकृतिक ध्वनियों, पक्षियों की आवाजों और पेड़-पौधों से प्रेरित होती है। इसे गुनगुनाना मां और बच्चे के बीच भावनात्मक जुड़ाव का प्रतीक होता है। यही लोरी बाद में उस बच्चे का नाम बन जाती है, यानि जब कोई उसे पुकारना चाहता है, तो वह उसका नाम नहीं, बल्कि उसकी सीटी बजाकर बुलाता है।

कोंगथोंग गांव में हर व्यक्ति के दो नाम होते हैं। जिंगराई लाबाई (Jingrwai Lawbei)-  यह वह मीठी, मधुर लोरी होती है जिसे मां अपने बच्चे के लिए बनाती है। यह सिर्फ प्यार और घर के सदस्यों के लिए होती है। दूसरा जिंगराई ओईक (Jingrwai Oik)- यह थोड़ी छोटी और व्यावहारिक धुन होती है, जिसे सार्वजनिक रूप से प्रयोग किया जाता है। जैसे कोई किसी को जंगल में बुला रहा हो या दूर से संदेश देना हो।
इन दोनों धुनों को आम तौर पर केवल गांव के लोग ही समझ सकते हैं। बाहरी लोग इन्हें संगीत का टुकड़ा या मनोरंजन समझ सकते हैं, लेकिन गांव वालों के लिए यह पहचान और भावनाओं का स्रोत है।

कोंगथोंग केवल अपनी परंपरा के कारण नहीं, बल्कि अपने प्राकृतिक सौंदर्य के लिए भी प्रसिद्ध है। यहां के निवासी ज्यादातर खेती-किसानी पर निर्भर हैं। गांव के चारों ओर हरियाली से ढकी पहाड़ियां, छोटे झरने और पक्षियों की चहचहाहट इस स्थान को और भी मनमोहक बनाते हैं।

यहां के लोग आज भी आदिवासी खासी संस्कृति से जुड़े हुए हैं। वे बांस, लकड़ी और मिट्टी से बने घरों में रहते हैं। गांव में बहुत ही सरल जीवनशैली है – न इंटरनेट, न मोबाइल की लत, न कोई शहरी भागदौड़।

कोंगथोंग गांव में एक धारणा है कि नाम लेकर पुकारना आत्माओं और भूत-प्रेतों को आकर्षित कर सकता है। इसलिए लोग एक-दूसरे को ध्वनि या सीटी से पुकारते हैं ताकि नकारात्मक शक्तियां उस नाम को पहचान न सकें। यह विश्वास गांव की रक्षा प्रणाली का हिस्सा बन गया है।

आज जब भारत और पूरी दुनिया में आधुनिकता की बयार बह रही है, ऐसे में कोंगथोंग जैसे गांव में इस परंपरा का जीवित रहना बहुत बड़ी बात है। हालांकि, अब कुछ हद तक मोबाइल और सोशल मीडिया की पैठ यहां भी हुई है। युवा वर्ग पढ़ाई के लिए शिलॉंग या गुवाहाटी जाता है, लेकिन वे अपनी जड़ों से जुड़ाव नहीं भूलते।

सरकार और कुछ गैर सरकारी संस्थाएं अब इस परंपरा को युनेस्को की विश्व सांस्कृतिक धरोहर में शामिल कराने के लिए प्रयासरत हैं।

कोंगथोंग अब धीरे-धीरे एक वैकल्पिक पर्यटन स्थल के रूप में उभर रहा है। यहां आने वाले पर्यटक स्थानीय लोगों की सीटी संस्कृति को समझते हैं। लोकल फूड का स्वाद लेते हैं। बांस और बुनाई की कारीगरी देखते हैं और सबसे खास है प्रकृति के साथ शांत समय बिताते हैं।

कोंगथोंग गांव को 2021 में भारत सरकार के बेस्ट टूरिज्म विलेज प्रतियोगिता में पुरस्कार मिला था। इसके बाद से यह राष्ट्रीय मीडिया और विदेशों में भी चर्चित हुआ। कई डॉक्युमेंट्री, यूट्यूब चैनल और ट्रैवल ब्लॉगर यहां आ चुके हैं। UNWTO (United Nations World Tourism Organization) ने भी कोंगथोंग को "Best Tourism Village" की सूची में शामिल किया है।

कोंगथोंग गांव यह दर्शाता है कि परंपरा और संस्कृति केवल इतिहास की बातें नहीं होती है, वे जीवित अनुभव होती हैं। जब पूरी दुनिया तकनीक के सहारे नाम और पहचान दर्ज कर रही है, वहां यह छोटा-सा गांव यह बताता है कि भावनाएं और संबंधों की गहराई शब्दों से कहीं ऊपर होती है।



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