बुद्धि, विवेक और समृद्धि दाता हैं- “गणेश जी”

Jitendra Kumar Sinha
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आभा सिन्हा, पटना,

"श्री गणेशाय नमः"  यह वह दिव्य मंत्र है जिससे हर शुभ कार्य का प्रारंभ होता है। गणेश जी, जिन्हें विघ्नहर्ता, बुद्धिदाता, मंगलकर्ता, प्रथम पूज्य और सिद्धि-विनायक कहा जाता है, हिन्दू धर्म में अद्वितीय स्थान रखते हैं। वे शिव-पार्वती के पुत्र और कार्तिकेय के बड़े भाई हैं। उनका स्वरूप सरल, भावुक और अत्यंत करुणामय है। उनका वाहन एक मूसा (चूहा) है और उन्हें मोदक अत्यंत प्रिय है।

गणेश चतुर्थी एक ऐसा पर्व है जब भक्त पूरे भक्ति भाव से गणपति बप्पा का स्वागत करते हैं, उन्हें घरों में विराजमान करते हैं और 10 दिनों तक विधिवत पूजा कर विसर्जन करते हैं। 

गणेश चतुर्थी भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि को मनाई जाती है। पुराणों के अनुसार, इसी दिन भगवान गणेश का प्राकट्य हुआ था। माता पार्वती ने अपने शरीर के उबटन से गणेश जी की मूर्ति बनाई और उसमें प्राण प्रतिष्ठा कर उन्हें द्वार पर पहरेदारी हेतु नियुक्त कर दिया। जब भगवान शिव घर लौटे, तो गणेश जी ने उन्हें रोक दिया, जिससे क्रोधित होकर शिव ने उनका सिर काट दिया। बाद में माता पार्वती के दुख को देखकर शिव ने गणेश जी का सिर पुनः जोड़ने का वचन दिया और हाथी का सिर लगाकर उन्हें पुनर्जीवित किया। तब से गणेश जी को "गजानन" कहा जाता है।

कहा जाता है कि गणेश चतुर्थी के दिन चंद्रमा का दर्शन करने से मिथ्या दोष लगता है। यह मिथ्या दोष व्यक्ति को बिना अपराध के दोषी बना सकता है। इसलिए इस दिन चंद्रमा का दर्शन वर्जित माना गया है। यदि अनजाने में दर्शन हो जाए, तो एक विशेष मंत्र का जप कर इस दोष से मुक्ति पाई जा सकती है।

गणेश चतुर्थी पर गणपति बप्पा को घर में विराजमान करना अत्यंत शुभ माना जाता है। एक साफ चौकी पर लाल या पीले रंग का आसन बिछा कर, चौकी पर रोली से स्वस्तिक बना कर, गणेश जी की मूर्ति को बीच में विराजमान करना चाहिए और मूर्ति के नीचे चांदी या तांबे का सिक्का रख सकते हैं।

पूजा प्रारंभ करने से पहले स्नान कर, शुद्ध वस्त्र धारण कर, दाहिने हाथ में जल लेकर संकल्प  “मैं (अपना नाम) भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी के दिन भगवान गणेश की पूजा कर रहा/रही हूं…” करना चाहिए। “ॐ गण गणपतये नमः” मंत्र से शुरुआत करना चाहिए ।

गणपति को पंचामृत (दूध, दही, शहद, घी, शक्कर) से फिर शुद्ध जल से स्नान करा कर, पीला या लाल वस्त्र पहना कर पीले चंदन से तिलक करना चाहिए।

गणेश जी को दूर्वा अत्यंत प्रिय है। इसलिए 21 दूर्वाओं के जोड़े अर्पित करना चाहिए, यह संकटों को दूर करता है और सौभाग्य लाता है। हल्दी मिश्रित सिंदूर गणेश जी को अर्पित करने से सौभाग्य और समृद्धि की प्राप्ति होती है। गणेश जी को अक्षत (भीगे हुए चावल) अर्पित करना शुभ माना जाता है। यह पूर्णता और स्थिरता का प्रतीक है। गणेश जी को पीला रंग विशेष प्रिय है। इसलिए उन्हें पीले चंदन का तिलक लगाना और अर्पित करना चाहिए। मोदक गणपति का सबसे प्रिय भोग है। पूजा के बाद मोदक सबसे पहले किसी बालक को खिला कर, फिर प्रसाद रूप में स्वयं ग्रहण करना चाहिए। गणेश जी को लाल गुड़हल, चमेली और पारिजात के फूल अत्यंत प्रिय हैं। लाल गुड़हल की माला गणेश जी को अर्पित करने से वे शीघ्र प्रसन्न होते हैं।



गणेश जी की पूजा में मंत्रों का विशेष महत्व होता है। सही उच्चारण और श्रद्धा से किए गए मंत्र-जप से गणपति शीघ्र प्रसन्न होते हैं। “ॐ गण गणपतये नमः” यह गणपति जी का मूल बीज मंत्र है। प्रतिदिन 108 बार जप करने से विघ्न दूर होते हैं और जीवन में मंगल कार्य संपन्न होते हैं। “ॐ एकदंताय विद्यहे वक्रतुण्डाय धीमहि, तन्नो दंती प्रचोदयात” यह मंत्र बुद्धि, विवेक और ज्ञान प्रदान करता है। इस मंत्र का 108 बार जप करने से रिद्धि-सिद्धि की प्राप्ति होती है।

प्रतिदिन सुबह गणेश जी को दूर्वा अर्पित करने से मानसिक शांति, आर्थिक समृद्धि और पारिवारिक सुख के लिए अत्यंत लाभकारी होता है। प्रतिदिन या विशेष अवसरों पर 21 मोदक बना कर और गणेश जी को अर्पित करने से रिद्धि-सिद्धि का वास होता है। संकष्टी चतुर्थी या गणेश चतुर्थी के दिन घर में गणेश यंत्र स्थापित कर, इसे पूजा स्थल पर रख कर प्रतिदिन “ॐ गण गणपतये नमः” का 11 बार जप करना चाहिए।  21 दिनों तक प्रतिदिन 108 बार “ॐ गण गणपतये नमः” मंत्र का जप करने से जीवन के सभी विघ्नों का निवारण होता है।

गणेश जी को प्रसन्न करने के लिए कुछ बातें विशेष रूप से वर्जित मानी गई हैं। मांस, मदिरा और तामसिक भोजन का सेवन नही करना चाहिए। क्रोध, ईर्ष्या, अपमान और झूठ से दूर रहना चाहिए। किसी का अपमान नही करना चाहिए क्योंकि गणेश जी करुणा और विनम्रता के प्रतीक हैं। चतुर्थी की रात चंद्रमा का दर्शन नही करना चाहिए क्योंकि दर्शन करने से मिथ्या दोष लगता है।

ज्योतिष के अनुसार, चंद्रमा मन और चित्त का कारक ग्रह है। यदि कुंडली में चंद्र दोष है, तो गणेश चतुर्थी के दिन चंद्रमा की शांति के लिए विशेष पूजन करना चाहिए। गणेश जी की पूजा के बाद शुद्ध जल से चंद्रमा को अर्घ्य देकर “ॐ सोमाय नमः” मंत्र का 11 बार जप करना चाहिए । ऐसा करने से मानसिक शांति और स्थिरता प्रदान करता है।

गणेश जी केवल पूजा के देवता नहीं हैं, बल्कि एक जीवन-दर्शन भी हैं। उनका बड़ा मस्तक ज्ञान का प्रतीक है, लंबा सूंड विवेक का, छोटे नेत्र ध्यान का और बड़ा पेट धैर्य का। गणेश जी को “बुद्धिदाता” कहा जाता है। उनकी आराधना से स्मरण शक्ति और निर्णय क्षमता बढ़ती है। गणेश जी रिद्धि-सिद्धि के स्वामी हैं। उनकी कृपा से व्यापार में उन्नति होती है और धन-धान्य की प्राप्ति होती है। गणेश भक्ति से मानसिक विकार, तनाव और चिंता का नाश होता है। गणेश जी को “गृहस्थ जीवन के रक्षक” माना गया है। उनकी कृपा से परिवार में प्रेम और एकता बनी रहती है।

संकष्टी चतुर्थी हर माह की कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को आती है। इस दिन गणेश जी का व्रत अत्यंत फलदायी माना जाता है। सूर्योदय से पहले उठकर स्नान कर, व्रत का संकल्प लेकर दिन भर उपवास रखना चाहिए। रात को चंद्रमा को अर्घ्य देने के बाद ही व्रत खोलना चाहिए और गणेश जी को दूर्वा, मोदक और सिंदूर अर्पित करना चाहिए।

गणेश जी के विषय में अनेक पुराणों और ग्रंथों में विस्तृत विवरण मिलता है। गणेश पुराण में गणेश जी की उत्पत्ति, स्वरूप, लीलाएं और भक्ति की महिमा का वर्णन है। मुद्गल पुराण में गणेश जी के आठ रूपों- वक्रतुंड, एकदंत, महोदर, गजवक्त्र, लम्बोदर, विकट, विघ्नराज, धूम्रवर्ण,  का उल्लेख है।

भारत में गणेश जी के अनेक प्रसिद्ध मंदिर हैं जो उनकी अद्भुत शक्ति और भक्ति का प्रतीक हैं। मुंबई में सिद्धिविनायक मंदिर, महाराष्ट्र में अष्टविनायक मंदिर, आंध्र प्रदेश में कनिपक्कम विनायक मंदिर, पुणे में रांझंगाों गणपति मंदिर। इन मंदिरों की यात्रा करने से गणेश जी की कृपा शीघ्र प्राप्त होती है।

गणेश जी की भक्ति और पूजा से जीवन में आने वाले विघ्न दूर होते हैं, मन को शांति मिलती है और घर-परिवार में सुख-समृद्धि का वास होता है। चाहे गणेश चतुर्थी हो, संकष्टी चतुर्थी हो या कोई भी शुभ अवसर।  गणेश जी का स्मरण और पूजन हर परिस्थिति में शुभ फल प्रदान करता है।



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