प्रकृति का मांसाहारी चमत्कार - “नेपेंथेस अटेनबरोई”

Jitendra Kumar Sinha
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प्रकृति ने जीव-जंतुओं और पौधों की दुनिया को इतने रहस्यमय ढंग से रचा है कि हर खोज मानव को विस्मित कर देती है। सामान्यतः पौधों को पोषण के लिए सूर्य के प्रकाश, जल और मिट्टी से मिलने वाले खनिजों की आवश्यकता होती है, लेकिन कुछ पौधे ऐसे भी हैं जो जीवित रहने के लिए असाधारण उपाय अपनाते हैं। इन्हीं अद्भुत पौधों में से एक है “नेपेंथेस अटेनबरोई”, जिसे अटेनबरो पिचर प्लांट के नाम से भी जाना जाता है। यह पौधा मांसाहारी पौधों की दुनिया में एक दुर्लभ और आकर्षक उदाहरण है।

यह पौधा फिलीपींस के पालावान द्वीप के माउंट विक्टोरिया की ऊँची चोटियों पर पाया जाता है। 2007 में ब्रिटिश प्रकृतिविद सर डेविड अटेनबरो के सम्मान में इसका नाम अटेनबरोई रखा गया। यह पौधा अपनी असामान्य बनावट और शिकार पकड़ने की क्षमता के कारण विश्व के सबसे अनोखे पौधों में गिना जाता है।

“नेपेंथेस अटेनबरोई” लगभग 1.5 मीटर तक ऊँचा हो सकता है। इसकी सबसे खास संरचना है इसका पिचर (घट आकार का पात्र), जो 30 सेंटीमीटर तक लंबा और 16 सेंटीमीटर चौड़ा हो सकता है। इन पिचरों में लगभग 1.5 लीटर तरल संग्रहित करने की क्षमता होती है। यही तरल इसे एक प्रभावी "शिकारी" बनाता है।

इस पौधे के पिचर मीठी सुगंध छोड़ते हैं, जो कीटों, छोटे चूहों और छिपकलियों को आकर्षित करती है। पिचर का किनारा अत्यंत फिसलन भरा होता है। जैसे ही कोई शिकार इसके मुहाने पर बैठता है, वह अंदर फिसलकर तरल में गिर जाता है। इस तरल में मौजूद पाचक एंजाइम शिकार को धीरे-धीरे पचा देता हैं और पौधे को आवश्यक पोषक तत्व प्रदान करता है।

“नेपेंथेस अटेनबरोई” की सबसे बड़ी विशेषता है इसके पिचरों की दोहरी संरचना। इसमें पौधा शिकार को पचाता है। इसमें शिकार को अंदर गिराने की व्यवस्था होती है। यह दोहरी व्यवस्था इसे अन्य पिचर प्लांट्स से अलग और विशेष बनाती है।

यह पौधा चट्टानी और अल्ट्रामाफिक मिट्टी में पाया जाता है। यह समुद्र तल से 1450 से 1726 मीटर की ऊँचाई पर उगता है। इसके लिए उच्च आर्द्रता और ठंडी जलवायु आवश्यक है। यही कारण है कि यह केवल सीमित क्षेत्रों में ही उग पाता है और इसकी दुर्लभता बढ़ जाती है।

“नेपेंथेस अटेनबरोई” की विशिष्टता के कारण यह पौधा वैज्ञानिकों, पर्यावरण प्रेमियों और पर्यटकों का ध्यान आकर्षित करता है। लेकिन जलवायु परिवर्तन और मानव हस्तक्षेप इसके अस्तित्व के लिए खतरा बन सकता हैं। ऐसे दुर्लभ पौधों का संरक्षण करना हमारी जिम्मेदारी है, क्योंकि ये प्रकृति के संतुलन और विविधता के प्रतीक हैं।



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