मराठा साम्राज्य के शौर्य का प्रतीक - “सैन्य किले”

Jitendra Kumar Sinha
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भारत का इतिहास वीरता, संघर्ष और रणनीतिक कुशलता के अनगिनत अध्यायों से भरा हुआ है। 17वीं से 19वीं शताब्दी के बीच मराठा साम्राज्य ने अपने पराक्रम और संगठन से पूरे भारतीय उपमहाद्वीप में अपनी छाप छोड़ी। इस साम्राज्य की सैन्य शक्ति और राजनीतिक दृढ़ता को सबसे प्रभावशाली रूप से प्रदर्शित करने वाले साक्ष्य हैं “मराठों द्वारा निर्मित भव्य किले”

हाल ही में यूनेस्को ने मराठा साम्राज्य के 12 ऐतिहासिक किलों को विश्व धरोहर स्थल के रूप में मान्यता प्रदान की है। इनमें से 11 किले महाराष्ट्र की धरती पर और 1 किला तमिलनाडु में स्थित है। ये किले न केवल स्थापत्य कला के अद्वितीय उदाहरण हैं बल्कि मराठों के अदम्य साहस और दूरदर्शिता के भी प्रतीक हैं।

मराठों ने किलों को केवल शाही निवास या सत्ता केंद्र के रूप में नहीं बनाया, बल्कि इन्हें रणनीतिक दृष्टि से इस तरह गढ़ा कि वे युद्ध में दुश्मनों के लिए अभेद्य साबित हों। इन किलों की वास्तुकला प्राकृतिक भूगोल का अद्भुत उपयोग करती है, कहीं ऊँचे पहाड़ों पर, तो कहीं समुद्र के बीच स्थित दुर्ग।

सल्हेर किला- यह महाराष्ट्र का एक महत्वपूर्ण किला है जहाँ 1672 में मराठों और मुगलों के बीच ऐतिहासिक युद्ध हुआ था। शिवनेरी किला-  मराठा साम्राज्य के संस्थापक छत्रपति शिवाजी महाराज का जन्मस्थान। लोहगढ़ किला-  अपनी अभेद्य सुरक्षा और सामरिक स्थिति के लिए प्रसिद्ध। खांदेरी (कुलाबा किला)- अरब सागर के बीच स्थित यह किला मराठा नौसेना की शक्ति का प्रमाण है। रायगढ़ किला-  मराठा साम्राज्य की राजधानी और शिवाजी महाराज के राज्याभिषेक का गवाह। राजगढ़ किला-  जहाँ शिवाजी महाराज ने अपनी प्रारंभिक राजधानी स्थापित की थी। प्रतापगढ़ किला-  अफजल खान के साथ हुए युद्ध का ऐतिहासिक स्थल। सुवर्णदुर्ग-  समुद्र में स्थित यह किला मराठा नौसैनिक शक्ति की अद्भुत मिसाल है। पन्हाला किला- दक्षिण भारत की ओर जाने वाले मार्ग पर नियंत्रण के लिए महत्वपूर्ण। विजयदुर्ग- ‘पूर्व का जिब्राल्टर’ कहलाने वाला यह किला नौसैनिक सुरक्षा का आधार। सिंधुदुर्ग किला- समुद्र के भीतर निर्मित, शिवाजी महाराज की नौसैनिक दूरदर्शिता का प्रतीक। जिंजी किला (तमिलनाडु)- दक्षिण भारत में मराठों की उपस्थिति और सामरिक प्रभाव को दर्शाता है।

इन किलों का महत्व केवल वास्तुकला या सामरिक दृष्टिकोण तक सीमित नहीं है। यह किला उस कालखंड की स्मृतियों को जीवित रखता है जब मराठा साम्राज्य ने मुगलों और अन्य विदेशी शक्तियों के विरुद्ध भारतीय गौरव की रक्षा की। शिवाजी महाराज और उनके उत्तराधिकारियों की युद्धनीति, प्रशासनिक कौशल और स्वराज्य की संकल्पना इन किलों की दीवारों में आज भी गूंजती है।

यूनेस्को द्वारा मराठा किलों को विश्व धरोहर स्थल घोषित किया जाना भारत की गौरवशाली धरोहर को वैश्विक पहचान दिलाने वाला कदम है। यह किला न केवल भारत के पर्यटक मानचित्र को समृद्ध करेंगे बल्कि आने वाली पीढ़ियों को अपने इतिहास, संस्कृति और स्वाभिमान की गाथा से जोड़ेंगे।



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