मराठा आरक्षण की मांग - मराठा आरक्षण आंदोलन के नेता मनोज जरांगे का शुरु हुआ अनिश्चितकालीन अनशन

Jitendra Kumar Sinha
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महाराष्ट्र की राजनीति एक बार फिर आरक्षण के मुद्दे पर गरमा गई है। मराठा आरक्षण आंदोलन के अगुवा मनोज जरांगे ने शुक्रवार को मुंबई के आजाद मैदान में अनिश्चितकालीन अनशन शुरू कर दिया। उनके इस कदम से यह साफ हो गया है कि मराठा समाज अब पीछे हटने को तैयार नहीं है।

मराठा समुदाय लंबे समय से शिक्षा और नौकरियों में आरक्षण की मांग करता आ रहा है। यह समुदाय राज्य की आबादी का बड़ा हिस्सा है और राजनीति पर भी गहरी पकड़ रखता है। हालांकि, आरक्षण देने के प्रयासों को अदालतों में कानूनी बाधाओं का सामना करना पड़ा है। 2021 में सुप्रीम कोर्ट ने मराठा आरक्षण कानून को खारिज कर दिया था, जिससे आंदोलन और तेज हो गया।

आजाद मैदान में हजारों समर्थकों के बीच मनोज जरांगे ने अपने संबोधन में कहा है कि "जब तक हमारी मांग पूरी नहीं होती, मैं पीछे नहीं हटूंगा। चाहे मुझे गोली मार दी जाए, लेकिन आंदोलन रुकने वाला नहीं है।" उनका यह बयान साफ संकेत देता है कि आंदोलन लंबे समय तक चलने वाला है और सरकार पर दबाव बढ़ने वाला है।

राज्य सरकार पहले ही इस मुद्दे को लेकर दबाव में है। भाजपा-शिवसेना-एनसीपी गठबंधन सरकार जानती है कि मराठा आरक्षण का सवाल सीधे वोट बैंक से जुड़ा हुआ है। मनोज जरांगे का अनशन इस समय सरकार के लिए एक राजनीतिक संकट बनकर उभर सकता है। यदि आंदोलन लंबा खिंचता है, तो सरकार को या तो ठोस कदम उठाने होंगे या जनता के असंतोष का सामना करना पड़ेगा।

मनोज जरांगे के नेतृत्व में हो रहे इस आंदोलन ने ग्रामीण इलाकों से लेकर शहरी केंद्रों तक हलचल मचा दी है। बड़ी संख्या में लोग मुंबई पहुंचे और अनशन स्थल पर जुटे। इससे साफ है कि मराठा समाज की भावनाओं को नजरअंदाज करना किसी भी राजनीतिक दल के लिए आसान नहीं होगा।

सरकार के सामने अब दो विकल्प हैं- कानूनी दायरे में रहते हुए मराठा समाज को आरक्षण का कोई ठोस फार्मूला देना। या फिर आंदोलन को शांत करने के लिए लंबी बातचीत और समझौते का रास्ता अपनाना। लेकिन यह भी सच है कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद संवैधानिक रूप से आरक्षण का रास्ता आसान नहीं है। ऐसे में मनोज जरांगे का यह अनशन आने वाले दिनों में राज्य की राजनीति और सामाजिक समीकरणों पर गहरा असर डालेगा।

मराठा आरक्षण की मांग सिर्फ एक सामाजिक-आर्थिक सवाल नहीं है, बल्कि महाराष्ट्र की राजनीति का निर्णायक मुद्दा बन चुका है। मनोज जरांगे का यह अनिश्चितकालीन अनशन आंदोलन को नई ऊर्जा दे रहा है। अब देखना होगा कि सरकार इस बार आंदोलन को किस तरह संभालती है, क्या कोई ठोस समाधान सामने आता है या फिर यह संघर्ष और लंबा खिंचता है।



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