भगवान शिव के द्वादश ज्योतिर्लिंगों में से एक है - “श्री ओंकारेश्वर - ममलेश्वर ज्योतिर्लिंग”

Jitendra Kumar Sinha
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भारतभूमि महादेव की आराधना से अभिसिंचित है। यहां कण-कण में ईश्वर का वास माना गया है और प्रत्येक दिशा में शिवमय आभा फैली हुई है। भगवान शिव के द्वादश ज्योतिर्लिंगों में से एक अत्यंत दिव्य, चमत्कारी और लोक-परलोक सुधारने वाला श्री ओंकारेश्वर-ममलेश्वर ज्योतिर्लिंग मध्यप्रदेश की पावन धरा पर स्थित है। 

मध्यप्रदेश के खंडवा जिला में पवित्र नर्मदा नदी की दो धाराओं के बीच स्थित एक द्वीपनुमा पर्वत है, जिसे मान्धाता-पर्वत या शिवपुरी कहा जाता है। यह द्वीप वास्तव में शिव का प्रतीक माना गया है। उत्तर और दक्षिण में बहती दो धाराएं मानो शिव और शक्ति की युगल उपस्थिति को दर्शाता है। यह वही स्थान है जहां श्री ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग का प्रतिष्ठान हुआ है।

इस पवित्र धाम में शिव के दो स्वरूपों की पूजा होती है,  एक हैं श्री ओंकारेश्वर, जो मान्धाता पर्वत पर स्थित हैं और दूसरे हैं श्री ममलेश्वर (जिसे अमलेश्वर भी कहते हैं), जो नर्मदा के दक्षिणी तट पर स्थित हैं। यद्यपि दोनों मंदिरों के स्थान पृथक हैं, परंतु इन दोनों को एक ही ज्योतिर्लिंग का रूप माना गया है। शिवपुराण में यह वर्णन मिलता है कि भगवान शिव ने स्वयं अपने ओंकारेश्वर लिंग को दो भागों में विभक्त किया था।

विन्ध्याचल पर्वत ने एक बार भगवान शिव की छह महीने तक कठोर तपस्या की। भगवान शिव तप से प्रसन्न होकर प्रकट हुए और उसे इच्छित वरदान दिया। वहां उपस्थित ऋषियों की प्रार्थना पर शिवजी ने अपना लिंग दो भागों में विभाजित किया, एक ओंकारेश्वर और दूसरा ममलेश्वर। इसी कारण इन दोनों को एक ही ज्योतिर्लिंग का स्वरूप माना जाता है।

मान्धाता पर्वत का नाम राजा मान्धाता के नाम पर पड़ा, जो सूर्यवंश के पराक्रमी और तपस्वी सम्राट थे। उन्होंने यहीं कठोर तप कर शिवजी को प्रसन्न किया था। शिवजी की कृपा से उन्होंने न केवल आध्यात्मिक सिद्धि प्राप्त की बल्कि धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष, सभी पुरुषार्थों को भी साकार किया।

ओंकारेश्वर लिंग मनुष्य द्वारा निर्मित नहीं है, यह स्वयंभू है। यह लिंग चारों ओर जल से घिरा हुआ है और इसकी आकृति ‘ॐ’ के समान दिखाई देता है। यही कारण है कि इसे ओंकारेश्वर कहा गया है। यह लिंग श्रद्धालुओं को तुरंत आध्यात्मिक ऊर्जा का अनुभव कराता है।

ओंकारेश्वर मंदिर की रचना प्राचीन शैली में हुई है। मंदिर के गर्भगृह तक पहुंचने के लिए श्रद्धालुओं को दो अंधेरी कोठरियों से होकर गुजरना पड़ता है। वहां सदैव दीप जलता रहता है। गर्भगृह का वातावरण अत्यंत पवित्र, रहस्यमय और ध्यानमग्नता को प्रेरित करने वाला है।

ममलेश्वर मंदिर, ओंकारेश्वर से थोड़ी दूरी पर स्थित है। यह भी अत्यंत प्राचीन मंदिर है। कई पुराणों में इसे अमलेश्वर कहा गया है। श्रद्धालु जब ओंकारेश्वर के दर्शन करते हैं, तब ममलेश्वर के दर्शन भी आवश्यक माना जाता है। दोनों मंदिरों का दर्शन एक साथ करने से ही पूर्ण पुण्य की प्राप्ति होती है।

नर्मदा, जो स्वयं शिव के जटा से प्रवाहित माना जाता हैं, इस क्षेत्र को अत्यंत पवित्र बना देता है। शिवपुराण, स्कंदपुराण और नर्मदा महात्म्य में इस नदी को गंगा से भी अधिक पवित्र कहा गया है। यहां नर्मदा स्नान करना मोक्षदायक माना गया है।

हर वर्ष कार्तिक पूर्णिमा पर यहां विशाल मेला लगता है, जिसमें लाखों श्रद्धालु भाग लेते हैं। महाशिवरात्रि, श्रावण मास, नवरात्रि आदि अवसरों पर भी यहां विशेष पूजा और रात्रि आरती का आयोजन होता है। भक्त रात्रि को शिवभक्ति में तल्लीन होकर भजन, कीर्तन करते हैं।

श्रद्धालु पूरे मान्धाता-पर्वत की परिक्रमा करते हैं, जिसे ओंकार पर्वत परिक्रमा कहा जाता है। यह लगभग 7 किलोमीटर लंबी होती है और भक्त इसे भक्तिभाव से पूर्ण करते हैं। परिक्रमा मार्ग में अनेक प्राचीन मंदिर, गुफाएं और शिवलिंग स्थित हैं, जो तीर्थ को और भी दिव्य बना देता है।

जो श्रद्धालु श्री ओंकारेश्वर और ममलेश्वर के दर्शन कर नर्मदा में स्नान करते हैं, उन्हें अर्थ, धर्म, काम और मोक्ष, चारों पुरुषार्थ सहज ही प्राप्त होता है। यहाँ की ऊर्जा साधकों को ध्यान, भक्ति, तप और आत्मसाक्षात्कार की ओर प्रेरित करता है।

यहां आने वाले तीर्थयात्री सर्वप्रथम नर्मदा स्नान करते हैं, फिर ओंकारेश्वर और ममलेश्वर मंदिर के दर्शन करते हैं। लोग चने की दाल, बेलपत्र, जल और दूध शिवलिंग पर अर्पित करते हैं। शाम की आरती में भाग लेना अत्यंत पुण्यदायक माना गया है।

हजारों श्रद्धालुओं ने यहां शिव की कृपा से रोगमुक्ति, मानसिक शांति, संतान सुख और आर्थिक समृद्धि प्राप्त की है। अनेक भक्त कहते हैं कि यहां आकर शिव स्वयं उनके मन की बात सुनते हैं और बिना कहे ही समाधान कर देते हैं।

आसपास के दर्शनीय स्थल में श्री गोमुख- जहां से नर्मदा धारा बहती प्रतीत होती है। सिद्धनाथ मंदिर - पुरातन वास्तुकला का अनमोल उदाहरण। केशव नागर घाट, अष्टमातृका मंदिर, आदि है। 

अनेक संतों, तपस्वियों और योगियों ने यहां साधना की है। अद्वैत वेदांत के प्रवर्तक श्री आदि शंकराचार्य ने यहीं पर गुरु गोविंदपादाचार्य से दीक्षा ली थी। यह स्थान शंकराचार्य की आध्यात्मिक यात्रा का प्रारंभ बिंदु भी है।

शिवपुराण, स्कंदपुराण और नर्मदा महात्म्य ग्रंथों में ओंकारेश्वर-ममलेश्वर की महिमा का विस्तार से वर्णन है। इन ग्रंथों में यह तीर्थ पंचक्रोशी तीर्थ के रूप में वर्णित है, जहां जाने मात्र से मनुष्य को मोक्ष प्राप्त हो जाता है।

नर्मदा नदी पर बना ओंकारेश्वर बांध इस क्षेत्र का एक और महत्वपूर्ण पक्ष है। यह नर्मदा की जलविद्युत क्षमता का उपयोग कर देश की ऊर्जा जरूरतों को पूरा करता है। परंतु ध्यान रखा गया है कि धार्मिक भावना और पर्यावरण संतुलन प्रभावित न हो।

श्री ओंकारेश्वर-ममलेश्वर ज्योतिर्लिंग न केवल एक तीर्थ है, बल्कि यह आत्मा के पुनर्जन्म का प्रवेश द्वार है। यहां की यात्रा हमें शिवत्व की ओर ले जाता है, जहां हर श्वास ओंकार में विलीन हो जाता है। यह धरती परम शांति, पुण्य और मोक्ष की प्रदायिनी है।



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