प्रकृति और विज्ञान जब एक साथ कदम बढ़ाते हैं, तो परिणाम अद्भुत होता है। इसका बेहतरीन उदाहरण है मलेशिया का “सेलांगोर फॉरेस्ट पार्क”, जिसे दुनिया का सबसे पुराना और सबसे बड़ा पुनर्जनन (Regenerated) उष्णकटिबंधीय वर्षावन माना जाता है। यह पार्क न केवल पर्यावरण संरक्षण की कहानी कहता है, बल्कि यह बताता है कि इंसान जब चाहे, तो नष्ट हुई प्रकृति को फिर से जीवंत बना सकता है।
20वीं शताब्दी की शुरुआत में मलेशिया के कई हिस्सों में टिन खनन (Tin Mining) का दौर चला। सेलांगोर की भूमि भी खनन से बुरी तरह प्रभावित हुई और जंगल का अस्तित्व लगभग खत्म हो गया। लेकिन 1920 के दशक में फॉरेस्ट रिसर्च इंस्टीट्यूट मलेशिया (FRIM) ने इस भूमि को पुनर्जीवित करने का संकल्प लिया। वैज्ञानिकों और पर्यावरणविदों ने यहां वृक्षारोपण कर, नहरें और जल निकाय बनाकर इसे फिर से जीवन दिया।
आज यह पार्क सैकड़ों हेक्टेयर क्षेत्र में फैला हुआ है और इसे पूरी दुनिया का सबसे बड़ा पुनर्जनन उष्णकटिबंधीय वर्षावन कहा जाता है। यहां पौधों और जानवरों की सैकड़ों प्रजातियाँ पाई जाती हैं, जिनमें कई दुर्लभ भी हैं। यह वन इस बात का सजीव प्रमाण है कि यदि वैज्ञानिक दृष्टिकोण और समर्पण हो तो प्रकृति को फिर से संवारा जा सकता है।
“सेलांगोर फॉरेस्ट पार्क” की सबसे बड़ी खूबी है कि यह केवल एक जंगल नहीं है, बल्कि एक वैज्ञानिक प्रयोगशाला भी है। यहां फॉरेस्ट रिसर्च इंस्टीट्यूट मलेशिया के वैज्ञानिक भवन और अनुसंधान केंद्र बने हैं। कई शोधकर्ता यहां जंगल के पारिस्थितिकी तंत्र, मिट्टी, जल और पौधों पर अध्ययन करते हैं। पार्क के भीतर आवासीय भवन भी हैं, ताकि शोधकर्ता लंबे समय तक रहकर अपना कार्य कर सकें। इस कारण यूनेस्को ने इसे प्रकृति और विज्ञान के सामंजस्य का अनोखा उदाहरण माना है।
यह पार्क न केवल वैज्ञानिकों के लिए, बल्कि आम पर्यटकों के लिए भी बेहद खास है। यहां नेचर ट्रेल्स (जंगल की सैर के रास्ते) बनाए गए हैं, जहां चलते हुए पर्यटक असली वर्षावन का अनुभव कर सकते हैं। विभिन्न जल निकाय और झीलें इस पार्क को और भी आकर्षक बनाती हैं। पर्यटक यहां न केवल प्राकृतिक सुंदरता का आनंद लेते हैं, बल्कि यह भी जान पाते हैं कि कैसे वैज्ञानिक प्रयासों से पर्यावरण को बचाया जा सकता है।
“सेलांगोर फॉरेस्ट पार्क” केवल एक पर्यटन स्थल नहीं है, बल्कि यह दुनिया के लिए एक प्रेरणा का स्रोत है। यह दिखाता है कि यदि प्रकृति को नुकसान पहुंचाते हैं, तो उसे बचाने की जिम्मेदारी भी होती है। मलेशिया ने अपने इस प्रयोग से साबित किया है कि मानव और प्रकृति साथ मिलकर एक बेहतर भविष्य गढ़ सकते हैं।
