रक्षाबंधन भाई-बहन के रिश्ते का उत्सव है, जहाँ बहन राखी बाँधकर अपने भाई की लंबी उम्र और सुख-समृद्धि की कामना करती है, वहीं भाई जीवनभर उसकी रक्षा करने का वचन देता है। लेकिन रक्षाबंधन की महत्ता केवल प्रतीकात्मक नहीं है, यह एक ऐसा पर्व है जो भावनात्मक सुरक्षा, सामाजिक मर्यादा और प्रेम की परंपराओं को पुष्ट करता है।रक्षाबंधन सिखाता है कि स्नेह, आदर और कर्तव्यों की डोर से बंधे रहना जीवन की सबसे बड़ी उपलब्धि है।
रक्षाबंधन की परंपरा प्राचीन काल से चली आ रही है। इतिहास और पुराणों में कई घटनाएँ वर्णित हैं, जो इस पर्व की प्रासंगिकता को प्रमाणित करता है। भविष्य पुराण के अनुसार, जब देव-दानव युद्ध चल रहा था और इंद्र देव हार की स्थिति में थे, तब इंद्राणी ने एक रक्षासूत्र तैयार कर उनके दाहिने हाथ में बाँधा। इस सूत्र की शक्ति से इंद्र देव ने विजय प्राप्त किया। यह कथा दर्शाता है कि रक्षासूत्र केवल भाई-बहन के लिए ही नहीं है, बल्कि किसी भी प्रियजन की रक्षा का प्रतीक बन सकता है।
जब भगवान श्रीकृष्ण को युद्ध में चोट लगी थी और उनका हाथ से खून बहने लगा, तब द्रौपदी ने अपनी साड़ी का पल्लू फाड़कर उनके हाथ पर बाँध दिया। बदले में श्रीकृष्ण ने द्रौपदी को जीवनभर रक्षा का वचन दिया, जिसे उन्होंने चीरहरण के समय निभाया। यह घटना रक्षाबंधन के आदर्श स्वरूप को गहराई से प्रकट करती है।
इतिहास में दर्ज है कि मेवाड़ की रानी कर्णावती ने अपने राज्य की रक्षा के लिए मुग़ल सम्राट हुमायूँ को राखी भेजी थी। हुमायूँ ने इस राखी को स्वीकार करते हुए रानी और उनके राज्य की रक्षा की। यह उदाहरण दर्शाता है कि रक्षाबंधन केवल खून के रिश्तों तक सीमित नहीं है, बल्कि भावनात्मक और सांस्कृतिक बंधनों में भी प्रगाढ़ है।
भारत विविधताओं का देश है, और हर क्षेत्र में रक्षाबंधन का रूप अलग-अलग होते हुए भी भाव रहता है प्रेम, आदर और सुरक्षा। उत्तर भारत में रक्षाबंधन बड़े उल्लास से मनाया जाता है। बहन भाइयों को तिलक लगाकर मिठाई खिलाती हैं और राखी बाँधती हैं। भाई उपहार देकर बहनों को आशीर्वाद देते हैं। यह परंपरा एक गहरे सामाजिक बंधन को रेखांकित करता है। पश्चिम भारत में महाराष्ट्र में रक्षाबंधन के साथ 'नारळी पूर्णिमा' मनाई जाती है। इस दिन मछुआरे समुद्र को नारियल अर्पित कर उसकी कृपा की कामना करते हैं। गोवा और गुजरात में भी इस दिन को रक्षा और कृतज्ञता के रूप में मनाया जाता है। पूर्व और पूर्वोत्तर भारत के पश्चिम बंगाल में इसे झूलन पूर्णिमा कहते हैं, जहाँ राधा-कृष्ण की झाँकियाँ सजाई जाती हैं। ओडिशा और असम में भी यह पर्व को सामाजिक समरसता और सौहार्द के प्रतीक के रूप में मनाया जाता है। दक्षिण भारत में रक्षाबंधन का स्वरूप थोड़ा अलग होता है, लेकिन ‘अवनि अवित्तम’ के रूप में यह दिन ब्राह्मणों के लिए विशेष होता है, जब वह यज्ञोपवीत (जनेऊ) बदलते हैं और पवित्रता की शपथ लेते हैं।
रक्षाबंधन एक मनोवैज्ञानिक क्रिया है जो भाई-बहन के रिश्ते को गहराई देता है। बहनों के लिए भावनात्मक संबल देता है। एक बहन जब भाई को राखी बाँधती है, तो वह केवल उसकी लंबी उम्र नहीं माँगती, बल्कि यह विश्वास भी जताती है कि कोई है जो हर कठिनाई में उसके साथ खड़ा रहेगा। यह भावनात्मक सुरक्षा बहन के आत्मबल को बढ़ाती है। भाई के लिए कर्तव्य का स्मरण दिलाता है रक्षाबंधन। राखी बाँधने के बाद भाई को यह स्मरण होता है कि वह सिर्फ एक संरक्षक नहीं, बल्कि एक मित्र, मार्गदर्शक और सहयोगी भी है। यह पर्व उसे अपने कर्तव्यों की याद दिलाता है। दूरियों को मिटाने वाला पर्व होता है रक्षाबंधन। रक्षाबंधन ऐसे परिवारों में भी नजदीकियाँ लाता है जहाँ संवाद की कमी हो। एक राखी पुराने रिश्तों को नया जीवन देती है।
डिजिटल युग में जब कई भाई-बहन भौगोलिक रूप से दूर हो गए हैं, तब रक्षाबंधन ने भी डिजिटल रूप ले लिया है। बहनें ऑनलाइन राखियाँ भेजती हैं, वीडियो कॉल पर तिलक करती हैं और उपहार डिलीवरी एप्स से भेजे जाते हैं। यह पर्व बदलते समय के साथ खुद को ढालने की अद्भुत क्षमता रखता है। आज रक्षाबंधन के माध्यम से कई संस्थाएँ महिला सुरक्षा, शिक्षा और समानता के संदेश भी दे रही हैं। कई जेलों, थानों और स्कूलों में रक्षाबंधन पर कार्यक्रम आयोजित होते हैं जहाँ महिलाएँ पुलिसकर्मियों या सैनिकों को राखी बाँधती हैं। हाल के वर्षों में राखियों को इको-फ्रेंडली और बीजयुक्त बनाया जा रहा है, जिससे राखी बाँधने के बाद उसे मिट्टी में बोया जा सकता है और वह पौधा बन जाता है। यह पर्व अब न केवल मानव की रक्षा का बल्कि प्रकृति की रक्षा का प्रतीक भी बन रहा है।
रक्षाबंधन की परिभाषा अब केवल भाई-बहन तक सीमित नहीं रही। यह पर्व अब एक व्यापक सामाजिक भावना का प्रतिनिधित्व कर रहा है। देशभर की महिलाएँ और स्कूली छात्राएँ सीमाओं पर तैनात सैनिकों को राखी भेजती हैं। यह केवल एक औपचारिकता नहीं है, बल्कि कृतज्ञता का भाव है। यह राखियाँ एक सैनिक को यह आभास कराती हैं कि पूरा देश उनके साथ है। कई बहनें जो किसी कारणवश अपने भाई से दूर हैं या जिनका भाई नहीं है, वह रक्षाबंधन पर अपने आत्मबल को रक्षासूत्र मानती हैं और खुद को मजबूत बनाने का संकल्प लेती हैं। यह पर्व अब आत्मरक्षा और आत्मसम्मान का प्रतीक भी बन गया है।
भारतीय साहित्य, फिल्म और कला में रक्षाबंधन का विशेष स्थान है। रक्षाबंधन पर अनगिनत कविताएँ लिखी गई हैं जिनमें भाई-बहन के स्नेह को सुंदर शब्दों में पिरोया गया है। "बहना ने भाई की कलाई पे प्यार बाँधा है,
प्यार के दो तार से संसार बाँधा है…"। यह गीत रक्षाबंधन की आत्मा को अभिव्यक्त करता है। बॉलीवुड ने भी इस रिश्ते को संजोया है, 'हरे रामा हरे कृष्णा', 'राखी', 'बंधन', 'रक्षाबंधन' जैसी फिल्मों ने भाई-बहन के रिश्तों को सिनेमाई परदे पर जीवंत कर दिया है।
रक्षाबंधन केवल एक धागा नहीं है, बल्कि यह विश्वास का मजबूत गाँठ है। यह प्रेम, संरक्षण, कर्तव्य और संस्कृति का उत्सव है। यह पर्व सिखाता है कि केवल खून के रिश्ते ही नहीं, भावनात्मक रिश्ते भी उतना ही सशक्त हो सकता है। आज जब समाज में रिश्ते कमजोर पड़ता जा रहा हैं, संवाद कम होता जा रहा है और स्वार्थ हावी होता जा रहा है, तब रक्षाबंधन एक ऐसा अवसर बनकर आता है जो फिर से जोड़ता है दिलों से, भावनाओं से और परंपराओं से।
