भारत की धार्मिक संस्कृति में 12 ज्योतिर्लिंगों का विशेष महत्व है, जिनमें से प्रत्येक शिव के एक अद्वितीय रूप को दर्शाता है। यह ज्योतिर्लिंग न केवल आध्यात्मिक ऊर्जा का केंद्र हैं, बल्कि श्रद्धालुओं के लिए परम मोक्ष का द्वार भी माना जाता हैं। इन्हीं 12 ज्योतिर्लिंगों में ग्यारहवां स्थान माना जाता है “रामेश्वरम् ज्योतिर्लिंग”, जो तमिलनाडु राज्य के रामनाथपुरम जिला के पवित्र द्वीप पर स्थित है। यह वह स्थल है जहाँ भगवान श्रीराम ने भगवान शिव की आराधना किया था, और उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर शिव ने स्वयं को "राम के ईश्वर" यानि रामेश्वर के रूप में स्थापित किया था। यह स्थान न केवल उत्तर और दक्षिण भारत के धार्मिक संबंधों का प्रतीक है, बल्कि यह विष्णु और शिव भक्ति के अद्वितीय समन्वय को भी दर्शाता है।
रामेश्वरम्, तमिलनाडु के दक्षिण-पूर्वी तट पर स्थित एक द्वीप नगर है, जो पंबन पुल के माध्यम से मुख्यभूमि से जुड़ा हुआ है। यह क्षेत्र भारतीय उपमहाद्वीप के सबसे दक्षिणी सिरे पर स्थित चार धामों (बद्रीनाथ, द्वारका, पुरी और रामेश्वरम्) में से एक है। समुद्र के किनारे स्थित इस तीर्थस्थल को हिन्दू धर्म की दक्षिण की काशी भी कहा जाता है।
वाल्मीकि रामायण, श्रीरामचरितमानस और स्कंद पुराण समेत कई ग्रंथों में उल्लेख है कि जब रावण का वध करने के लिए भगवान श्रीराम अपनी वानर सेना के साथ लंका की ओर प्रस्थान करने लगे, तब उन्होंने समुद्र से मार्ग देने का अनुरोध किया था। परंतु समुद्र ने मार्ग नहीं दिया। क्रोधित होकर श्रीराम ने समुद्र को सुखाने के लिए बाण चढ़ाया, तब समुद्र देवता ने क्षमा माँगते हुए मार्ग देने का वादा किया।
इसी स्थान पर श्रीराम ने लंका यात्रा से पूर्व अपने अराध्य शिव की पूजा के लिए शिवलिंग की स्थापना किया था, जिसे स्वयं सीता माता ने बालू से बनाया था। इस शिवलिंग को आज “रामलिंगम” भी कहा जाता है। मान्यता है कि इसके बाद हनुमानजी कैलाश पर्वत से एक दूसरा शिवलिंग लेकर आए जिसे “विश्वलिंगम” कहा जाता है। राम ने दोनों लिंगों की स्थापना की और पहले बालू से बने रामलिंग की पूजा करने का आदेश दिया।
रामेश्वरम् एकमात्र ऐसा ज्योतिर्लिंग है जहाँ भगवान विष्णु के अवतार श्रीराम ने शिव की पूजा की और स्वयं शिव ने “राम के ईश्वर” के रूप में प्रतिष्ठा प्राप्त की। यह स्थान हिन्दू धर्म की दो सबसे प्रमुख धाराओं, वैष्णव और शैव परंपरा, के समन्वय का उत्कृष्ट उदाहरण है।
रामेश्वरम् मंदिर में दो मुख्य लिंग हैं – रामलिंगम और विश्वलिंगम। दोनों की पूजा विशेष विधि से किया जाता है और परंपरा अनुसार, पहले विश्वलिंगम का पूजा होता है।
मंदिर परिसर में 22 पवित्र कुंड (जलाशय) हैं। यह माना जाता है कि इन कुंडों में स्नान करने से सभी पापों का शुद्धिकरण हो जाता है। श्रद्धालु पहले इन सभी कुंडों में स्नान करते हैं, फिर शिवलिंग के दर्शन करते हैं।
रामेश्वरम् ज्योतिर्लिंग जिस मंदिर में स्थित है, वह रामनाथस्वामी मंदिर के नाम से प्रसिद्ध है। यह मंदिर द्रविड़ स्थापत्य शैली में निर्मित है और इसकी लंबी गलियारा और कलात्मक स्तंभ वास्तुकला का अद्वितीय उदाहरण हैं। विशेष रूप से प्रमुख गलियारा (Corridor) 1220 मीटर लंबा है और इसे दुनिया का सबसे लंबा मंदिर गलियारा माना जाता है। इसमें 4000 से अधिक कलात्मक स्तंभ हैं जिनकी ऊँचाई लगभग 30 फीट तक जाता है। यह मंदिर समुद्र के किनारे बना है और इसका मुख्य प्रवेश द्वार पूरब की ओर है, जिससे सुबह की सूर्य रश्मियाँ गर्भगृह में प्रवेश करती हैं।
रामेश्वरम् से कुछ ही दूरी पर स्थित है धनुषकोडी, जहाँ से रामसेतु का प्रारंभ माना जाता है। यह वही सेतु है जिसे श्रीराम की वानर सेना ने लंका पहुँचने के लिए समुद्र पर बनाया था। आधुनिक भूगर्भीय शोधों से भी इसकी पुष्टि होता है कि रामेश्वरम् से श्रीलंका तक एक पत्थर की शृंखला समुद्र में विद्यमान है। आज भी वहाँ के समुद्र में तैरते पत्थर देखा जा सकता हैं, जो स्थानीय किंवंदंतियों के अनुसार उसी सेतु के अवशेष हैं।
रामेश्वरम् चार धामों में से एक है। अद्भुत बात यह है कि उत्तर भारत में काशी के समान ही दक्षिण भारत में रामेश्वरम् को मोक्ष प्राप्ति का द्वार माना गया है। मान्यता है कि काशी में मृत्यु और रामेश्वरम् में पूजा करने से आत्मा को मोक्ष प्राप्त होता है।
रामेश्वरम् में वर्ष भर धार्मिक गतिविधियाँ होती रहती हैं। विशेष रूप से महाशिवरात्रि के दिन लाखों श्रद्धालु भगवान शिव की रात्रि भर पूजा करते हैं। रामनवमी में श्रीराम के जन्मदिवस पर विशेष आयोजन होता है। आरती और अभिषेकम प्रतिदिन 4 बार होता है, जिसमें विशेष अभिषेक, फूलों की सजावट और घंटों की ध्वनि वातावरण को दिव्यता से भर देता है।
रामेश्वरम् केवल एक धार्मिक स्थल नहीं है, बल्कि एक प्राकृतिक चमत्कार भी है। यहाँ के समुद्र, तट, चूना-पत्थर की पहाड़ियाँ और वन्यजीवन इसे एक सुंदर पर्यटन स्थल भी बनाता है। सरकार द्वारा इसे “धार्मिक पर्यटन” के रूप में विकसित किया जा रहा है।
रामेश्वरम् ज्योतिर्लिंग केवल एक शिवलिंग नहीं है, यह एक संकल्प है, धर्म के मार्ग पर चलने का, भक्ति से शक्ति प्राप्त करने का, और अपने कर्मों से मोक्ष पाने का। यहाँ आकर भक्त न केवल अपने पापों से मुक्त होते हैं, बल्कि उन्हें यह अनुभव होता है कि जब श्रीराम जैसे परम मर्यादा पुरुषोत्तम भी शिव की आराधना करते हैं, तो भक्ति में कितनी शक्ति होती है।
रामेश्वरम् न केवल एक तीर्थ है, बल्कि यह अद्वैत का प्रतीक है जहाँ श्रीराम और शिव अलग नहीं रहते हैं, बल्कि एक-दूसरे के पूरक बन जाते हैं। यह स्थल सिखाता है कि आस्था, भक्ति, विनम्रता और सेवा के मार्ग पर चलकर ही ईश्वर की प्राप्ति संभव है। जो भी श्रद्धालु इस पावन धाम में आकर रामलिंगम के दर्शन करता है, उसके भीतर एक दिव्य ऊर्जा का संचार होता है। रामेश्वरम् केवल शरीर का नहीं, आत्मा का भी स्नान है, जहाँ जीवन की नकारात्मकता धोकर, शुद्धता और शांति की अनुभूति होता है।
