भारत के अंदरूनी गद्दारों से जंग: अब राष्ट्रवाद से समझौता नहीं

Jitendra Kumar Sinha
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भारत की ताक़त हमेशा उसकी एकता और संकल्प में रही है। लेकिन जितने खतरे हमें बाहर से हैं, उससे कहीं ज़्यादा ख़तरनाक वे लोग हैं जो अंदर बैठकर देश की जड़ों को कमजोर करने की कोशिश करते हैं। ये लोग राजनीति के नाम पर देश को बदनाम करते हैं, विदेशों में जाकर भारत की छवि पर कीचड़ उछालते हैं, और जनता के भरोसे को तोड़ते हैं।


आज जब देश 79 साल की आज़ादी के बाद आत्मनिर्भरता, रक्षा शक्ति और आर्थिक उन्नति की नई ऊंचाइयों को छू रहा है, तब कुछ नेता — जिनमें राहुल गांधी जैसे बड़े नाम भी शामिल हैं — बार-बार ऐसे बयान दे रहे हैं जो दुश्मनों को ताक़त और अपने देशवासियों को निराशा देते हैं। ये वही लोग हैं जो अंतरराष्ट्रीय मंचों पर जाकर अपने ही देश की सरकार और संस्थाओं को बदनाम करते हैं, जैसे यह कोई सस्ती पब्लिसिटी स्टंट हो।


ये क्यों खतरनाक है?

  • जब कोई भारतीय नेता विदेशी मंच से अपनी ही सेना, न्यायपालिका या लोकतंत्र पर सवाल उठाता है, तो यह सीधे-सीधे दुश्मनों के प्रोपेगेंडा को बल देता है।

  • आंतरिक असंतोष को हवा देकर ये लोग देश में अस्थिरता और अविश्वास का माहौल बनाते हैं।

  • जनता का ध्यान वास्तविक मुद्दों से हटाकर निजी राजनीतिक एजेंडे को आगे बढ़ाते हैं।


सरकार और जनता का जवाब

  • कानून और संवैधानिक संस्थाएं अब ऐसे बयानों और कृत्यों पर सख़्ती बरत रही हैं।

  • सोशल मीडिया और ग्राउंड स्तर पर जनता का विरोध अब खुलकर सामने आ रहा है।

  • देशभक्ति का भाव अब इतना प्रबल है कि गद्दारी के संकेत मिलते ही लोग खुलकर सवाल करने लगे हैं।


भारत के लिए सबसे बड़ा खतरा सीमा पर नहीं, बल्कि भीतर छिपे उन चेहरों से है जो निजी महत्वाकांक्षा के लिए देशहित से समझौता कर लेते हैं। यह वक्त है जब हर नागरिक को तय करना होगा कि वह किसके साथ खड़ा है — भारत के साथ, या भारत को तोड़ने वालों के साथ।

देश की जनता ने इतिहास में बार-बार ऐसे गद्दारों को किनारे लगाया है, और यकीन मानिए, इस बार भी अंजाम अलग नहीं होगा। भारत की आवाज़ एक है, और अब यह आवाज़ कह रही है — राष्ट्रहित सर्वोपरि, बाकी सब बाद में।


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