बिहार में इस समय मतदाता सूची का “विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR)” चल रहा है। लोकतंत्र के इस सबसे अहम अभ्यास में नागरिकों के नाम दर्ज करने, मृतकों या फर्जी मतदाताओं को हटाने तथा गलत प्रविष्टियों को सुधारने की प्रक्रिया शामिल होती है। इस बीच, एक चौंकाने वाली तस्वीर सामने आई है, राज्य के 12 मान्यता प्राप्त राजनीतिक दलों में से सिर्फ भाकपा (माले) ने ही दावा-आपत्ति दर्ज कराई है।
बिहार जैसे राजनीतिक रूप से सजग राज्य में यह आश्चर्यजनक है कि केवल एक ही पार्टी ने मतदाता सूची में गड़बड़ियों पर ध्यान दिया। माले ने कुल नौ मतदाताओं की आपत्तियां दर्ज कराई हैं। वहीं, बाकी 11 दल चुप्पी साधे हुए हैं। यह स्थिति कई सवाल खड़ा करता है कि क्या दलों को अपने कैडर पर भरोसा है कि उनके नाम स्वतः सही दर्ज रहेंगे? या फिर वे मतदाता सूची जैसे बुनियादी लोकतांत्रिक कार्य में रुचि नहीं ले रहे?
राजनीतिक दलों की निष्क्रियता के विपरीत, आम नागरिकों ने इस प्रक्रिया में खासा उत्साह दिखाया है। अब तक 99,656 दावा-आपत्तियां व्यक्तिगत स्तर पर दर्ज कराई जा चुकी हैं। इनमें से 7,367 मामलों का निपटारा किया जा चुका है। यह आंकड़ा दर्शाता है कि मतदाता खुद अपनी सूची को सही और अद्यतन रखने के लिए सजग हैं।
लोकतंत्र की सबसे बड़ी ताकत नए मतदाता होते हैं। इस बार भी बिहार में बड़ी संख्या में नए नाम जुड़ने जा रहे हैं। दो लाख 83 हजार से अधिक पात्र नागरिकों ने फॉर्म-6 के तहत मतदाता सूची में नाम जुड़वाने का आवेदन किया है। यह युवाओं की राजनीतिक भागीदारी और लोकतंत्र में आस्था का प्रमाण है।
भारत जैसे विशाल लोकतंत्र में चुनाव की निष्पक्षता काफी हद तक मतदाता सूची की शुद्धता पर निर्भर करती है। यदि सूची में मृतकों या फर्जी नाम बने रहें, तो न केवल चुनावी प्रक्रिया प्रभावित होती है बल्कि मतदाता का विश्वास भी डगमगाता है। यही कारण है कि चुनाव आयोग लगातार विशेष पुनरीक्षण की प्रक्रिया चलाता है।
यह स्थिति लोकतंत्र की सेहत को परखने वाली है। आम जनता जहां पूरी तत्परता से अपने अधिकारों को लेकर जागरूक हो रही है, वहीं बड़े राजनीतिक दलों का उदासीन रवैया सवाल खड़ा करता है। मतदाता सूची केवल चुनाव का औपचारिक दस्तावेज नहीं है, बल्कि यह लोकतंत्र का आधार स्तंभ है। ऐसे में सभी राजनीतिक दलों को आगे आकर इस प्रक्रिया में सक्रिय भूमिका निभानी चाहिए, ताकि हर नागरिक का वोट सुरक्षित और मान्य हो सके।
