आधुनिक चिकित्सा विज्ञान ने एक और उपलब्धि हासिल की है। इंदिरा गांधी आयुर्विज्ञान संस्थान (IGIMS), पटना में बिना किसी चीरा लगाये हेपेटिकोजेजुनोस्टॉमी सर्जरी कर चिकित्सकों ने इतिहास रच दिया। यह तकनीक अब तक बहुत कम अस्पतालों में अपनायी गई है।
मरीज मनीषा कुमारी (25 वर्ष) का कुछ समय पहले मुजफ्फरपुर स्थित एसकेएमसीएच में कोलेडोकल सिस्ट का ऑपरेशन हुआ था। ऑपरेशन के बाद उन्हें कॉमन बाइल डक्ट (CBD) की दिक्कत होने लगी। इस कारण उन्हें आइजीआइएमएस के गैस्ट्रो सर्जरी विभाग में भर्ती किया गया, जहां उनका हेपेटिकोजेजुनोस्टॉमी ऑपरेशन किया गया।
लेकिन कुछ ही समय बाद मनीषा को दोबारा गंभीर समस्या का सामना करना पड़ा। उन्हें पीलिया (जॉन्डिस) होने लगा और जांच में पता चला कि ऑपरेशन साइट पर स्ट्रिक्चर (संकरी रुकावट) बन गई है, जिससे पित्त का प्रवाह रुक गया। यही रुकावट आगे चलकर कोलेंजाइटिस नामक बीमारी का कारण बनी।
स्थिति गंभीर थी। पारंपरिक तरीके से फिर से ऑपरेशन करना जोखिम भरा हो सकता था। ऐसे में आइजीआइएमएस के डॉक्टरों ने परक्यूटेनियस हेपेटिकोजेजुनोस्टॉमी तकनीक का सहारा लिया। इस प्रक्रिया में किसी बड़े चीरे की आवश्यकता नहीं होती।
अल्ट्रासाउंड और विशेष इंटरवेंशनल रेडियोलॉजी उपकरण की मदद से डॉक्टरों ने त्वचा के ऊपर से ही रास्ता बनाकर पित्त नली को आंत से जोड़ दिया। यह प्रक्रिया पूरी तरह से बिना चीरा लगाये की गई, जिससे मरीज को न ही ज्यादा दर्द हुआ और न ही ज्यादा खून बहा।
आइजीआइएमएस के चिकित्सा अधीक्षक डॉ. मनीष मंडल ने बताया कि “यह प्रक्रिया मरीजों के लिए बहुत ही सुरक्षित और लाभकारी है। जहां एक तरफ पारंपरिक सर्जरी में बड़ा चीरा लगाना पड़ता है, वहीं इस तकनीक से न तो बड़ा घाव होता है और न ही ज्यादा समय तक अस्पताल में भर्ती रहना पड़ता है।”
इस जटिल सर्जरी के बाद मनीषा कुमारी की हालत में तेजी से सुधार हुआ। पित्त का प्रवाह सामान्य हुआ और पीलिया जैसी समस्या खत्म हो गई। परिवारजन भी इस अनूठी उपलब्धि से बेहद खुश हैं।
यह सफलता बिहार और पूरे देश के लिए गर्व की बात है। परक्यूटेनियस हेपेटिकोजेजुनोस्टॉमी जैसी उन्नत तकनीक के जरिये अब उन मरीजों का भी इलाज संभव होगा, जिनके लिए बार-बार ऑपरेशन करना कठिन होता है।
