हिन्दू धर्म के अठारह महापुराणों में से एक शिव पुराण केवल भगवान शिव की महिमा का वर्णन नहीं करता, बल्कि यह मानव जीवन के उत्थान, उन्नति और मुक्ति का मार्ग भी दिखाता है। इसमें कही गई शिक्षाएं व्यक्ति को यह सिखाता है कि जीवन में भौतिक सुख और आध्यात्मिक शांति दोनों कैसे प्राप्त किया जा सकता है।
शिव पुराण यह स्पष्ट करता है कि अगर इंसान मोह, क्रोध, लोभ, अहंकार जैसी कमजोरियों पर विजय पा ले तो वह निश्चित ही सफल, सुखी और संतुष्ट जीवन जी सकता है।
शिव पुराण की सबसे महत्वपूर्ण शिक्षा है – मोह का त्याग। देवी सती जब अग्निकुंड में समा गईं, तब शिव उनके पार्थिव शरीर को लेकर व्याकुल होकर धरती पर विचरण करने लगे। समस्त ब्रह्मांड अस्त-व्यस्त हो गया। अंततः विष्णु भगवान ने अपने सुदर्शन चक्र से सती के शरीर को खंड-खंड कर दिया, ताकि शिव का मोह टूटे और सृष्टि पुनः संतुलित हो।
संसार में किसी भी वस्तु या व्यक्ति के प्रति अत्यधिक मोह जीवन में पीड़ा लाता है। सफलता पाने के लिए मनुष्य को आसक्ति से ऊपर उठकर अपने कर्तव्य पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए। मोह का त्याग ही मनुष्य को आत्मिक शांति और मानसिक दृढ़ता देता है।
शिव पुराण बताता है कि देवी पार्वती ने शिव को पाने के लिए वर्षों तक कठोर तपस्या की। उनके इरादे अडिग थे। न कठिनाइयों ने उन्हें रोका और न ही भौतिक प्रलोभनों ने विचलित किया।
लक्ष्य चाहे कितना भी कठिन क्यों न हो, तप और धैर्य से उसे अवश्य पाया जा सकता है। सफलता पाने वाले वही होते हैं, जो निरंतर प्रयास करते हैं और हार नहीं मानते। तपस्या का अर्थ केवल जंगल में ध्यान लगाना नहीं है, बल्कि अपने लक्ष्य के प्रति समर्पण भी है।
शिव पुराण में कहा गया है कि यदि कोई शिव को प्रसन्न करना चाहता है, तो उसे क्रोध और अहंकार छोड़ना होगा। क्योंकि क्रोध से विवेक नष्ट होता है और अहंकार से संबंध टूटता है। ये दोनों ही व्यक्ति के जीवन में सबसे बड़ी बाधाएं हैं।
शांत मन से लिया गया निर्णय ही सही साबित होता है। अहंकार से मनुष्य पतन की ओर जाता है। नम्रता और विनम्रता से ही वास्तविक सम्मान प्राप्त होता है।
शिव पुराण के अनुसार, प्रदोषकाल (सूर्यास्त के बाद का समय) शिव की पूजा के लिए अत्यंत श्रेष्ठ माना गया है। शिव श्मशानवासी हैं, यानि वे भौतिकता से परे हैं। उनका संदेश है कि मनुष्य को अस्थायी वस्तुओं से नहीं, बल्कि शाश्वत आत्मज्ञान से जुड़ना चाहिए।
प्रदोषकाल में की गई साधना से मनुष्य की बाधाएं दूर होती हैं। मृत्यु और जीवन के रहस्य को समझकर ही वास्तविक ज्ञान प्राप्त होता है। सांसारिक मोह से ऊपर उठना ही शिवभक्ति का सार है।
शिव पुराण में बताया गया है कि सुबह और शाम के समय किसी को कटु वचन नहीं बोलना चाहिए। कठोर शब्द दूसरों के हृदय को चोट पहुँचाता है और यह पाप का कारण बनता है।
मधुर वाणी ही मित्रता और सम्मान का कारण बनता है। कटु वचन से रिश्ते टूटते हैं और शत्रुता बढ़ती है। जो व्यक्ति अपनी वाणी पर नियंत्रण कर लेता है, वह हर परिस्थिति में सफल होता है।
शिव पुराण में गुरु और माता-पिता के आदर को सर्वोच्च स्थान दिया गया है। गुरु बिना शिष्य का उद्धार नहीं हो सकता है। माता-पिता के आशीर्वाद के बिना तरक्की के मार्ग कठिन हो जाता है।
जीवन में सफलता पाने के लिए गुरु का मार्गदर्शन अनिवार्य है। माता-पिता के चरणों में ही सच्चा स्वर्ग है। सम्मान करने वाला व्यक्ति ही सच्चा सम्मान पाता है।
शिव पुराण कहता है कि स्वयं के सम्मान से कभी समझौता नहीं करना चाहिए। दूसरों का आदर करें, पर अपने आत्मसम्मान को भी सर्वोपरि रखें।
आत्मसम्मान खो देने वाला व्यक्ति समाज में टिक नहीं सकता। सफलता के साथ गरिमा बनाए रखना ही जीवन का उद्देश्य होना चाहिए।
शिव पुराण का एक और महत्वपूर्ण उपदेश है, धन का उपयोग धर्म और सेवा में करें। धन को तीन भागों में बाँटना चाहिए, निवेश के लिए, उपभोग के लिए, धर्म और सेवा कार्यों के लिए।
केवल भौतिक सुख के लिए धन संचय करना व्यर्थ है। धर्म में लगाया गया धन कभी व्यर्थ नहीं जाता, यह आने वाली पीढ़ियों को भी लाभ देता है।
शिवजी का व्यक्तित्व सिखाता है कि संसार में रहकर भी अलिप्त रहा जा सकता है। वे कैलाश पर रहते हैं, परंतु सृष्टि के पालनकर्ता भी हैं। वे भस्म का लेप करते हैं, परंतु त्रिपुरासुर का संहार भी करते हैं।
जीवन में संतुलन जरूरी है। भोग और योग, दोनों का समन्वय ही आदर्श जीवन है। सफलता के साथ वैराग्य का भाव रखना ही वास्तविक उन्नति है।
शिव ‘आशुतोष’ हैं, यानि वे शीघ्र प्रसन्न हो जाते हैं। वे दीन-दुखियों, पापियों और असुरों पर भी दया करते हैं।
दया और करुणा ही मनुष्य को महान बनाता है। कठोर हृदय वाला कभी वास्तविक सफलता नहीं पा सकता। दूसरों की मदद करना ही शिव की आराधना है।
आज के प्रतिस्पर्धात्मक जीवन में भी शिव पुराण की शिक्षाएं अत्यंत प्रासंगिक हैं। तनाव से मुक्ति के लिए ध्यान और तपस्या, रिश्तों को मजबूत बनाने के लिए वाणी का संयम, करियर में आगे बढ़ने के लिए गुरु का मार्गदर्शन और आत्मसम्मान और धन प्रबंधन के लिए उचित वितरण और धर्म में योगदान आवश्यक है।
शिव पुराण केवल एक धार्मिक ग्रंथ नहीं है, बल्कि यह जीवन प्रबंधन का शास्त्र है। इसमें वर्णित उपदेश बताता है कि कैसे मोह, क्रोध, लोभ और अहंकार से मुक्त होकर अपने लक्ष्य को प्राप्त कर सकते हैं। जो व्यक्ति शिव पुराण की इन अनमोल बातों को जीवन में अपनाता है, वह निश्चित ही सुख, समृद्धि और शांति प्राप्त करता है। यही शिवभक्ति का वास्तविक फल होता है।
