उत्तर प्रदेश के शाहजहांपुर जिले का ऐतिहासिक कस्बा जलालाबाद अब जल्द ही एक नए नाम से पहचाना जाएगा। केंद्र सरकार ने राज्य सरकार को जलालाबाद का नाम बदलकर ‘परशुरामपुरी’ रखने की अनुमति दे दी है। इस फैसले के साथ ही लंबे समय से चली आ रही मांग को पूरा कर दिया गया है, जिससे स्थानीय नागरिकों और हिन्दू संगठनों में हर्ष की लहर दौड़ गई है।
बुधवार को केंद्र सरकार के सचिव कुंदन कुमार ने उत्तर प्रदेश के मुख्य सचिव को पत्र भेजकर नाम परिवर्तन को लेकर कोई आपत्ति न होने की पुष्टि की। साथ ही, यह भी कहा गया है कि राज्य सरकार को नए नाम की अधिसूचना जारी करते समय उसकी वर्तनी देवनागरी, रोमन और अन्य क्षेत्रीय भाषाओं में सुनिश्चित करनी होगी। विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय की सिफारिश को ध्यान में रखते हुए यह स्वीकृति प्रदान की गई है।
जलालाबाद का नाम बदलने की मांग कोई नई नहीं है। हिन्दू संगठन और स्थानीय लोग लंबे समय से यह कहते आ रहे हैं कि यह क्षेत्र भगवान परशुराम की जन्मस्थली है। यहां भगवान परशुराम का एक प्राचीन और ऐतिहासिक मंदिर भी स्थित है, जिससे धार्मिक आस्था जुड़ी हुई है।
इसी कारण, जून 2025 में उत्तर प्रदेश के प्रमुख सचिव ने केंद्रीय गृह मंत्रालय को पत्र लिखकर नाम बदलने की आधिकारिक स्वीकृति देने का आग्रह किया था। अब जाकर केंद्र सरकार ने इस मांग पर सकारात्मक निर्णय लिया है।
जलालाबाद कस्बा सांस्कृतिक और धार्मिक दृष्टि से बेहद महत्वपूर्ण रहा है। स्थानीय इतिहासकारों और नागरिकों के अनुसार, यहां का जुड़ाव भगवान परशुराम से है, जिन्हें विष्णु के छठे अवतार के रूप में पूजा जाता है। उनका नाम आते ही पराक्रम, न्याय और धर्म की रक्षा की छवि मन में उभरती है। जलालाबाद का नाम बदलकर ‘परशुरामपुरी’ रखा जाना सिर्फ नाम परिवर्तन नहीं, बल्कि एक ऐतिहासिक और धार्मिक पहचान की पुनर्स्थापना के रूप में देखा जा रहा है।
नाम बदलने का यह कदम न केवल धार्मिक भावनाओं को सम्मान देने वाला है, बल्कि इससे क्षेत्रीय पहचान को भी नया स्वरूप मिलेगा। स्थानीय नागरिकों का मानना है कि इससे पर्यटन को बढ़ावा मिलेगा और परशुराम मंदिर सहित अन्य धार्मिक स्थलों पर आने वाले श्रद्धालुओं की संख्या भी बढ़ेगी। वहीं, राजनीतिक स्तर पर भी इस निर्णय को महत्वपूर्ण माना जा रहा है, क्योंकि उत्तर प्रदेश में चुनावी समीकरणों में धार्मिक और सांस्कृतिक मुद्दों की अहम भूमिका रहती है।
अब उत्तर प्रदेश सरकार को राजपत्र अधिसूचना जारी करनी होगी, जिसमें नए नाम ‘परशुरामपुरी’ को सभी भाषाओं में औपचारिक रूप से प्रकाशित किया जाएगा। इसके बाद ही शासकीय और प्रशासनिक स्तर पर जलालाबाद का नया नाम लागू होगा।
जलालाबाद का नाम बदलकर ‘परशुरामपुरी’ रखना सिर्फ एक प्रशासनिक निर्णय नहीं, बल्कि आस्था और इतिहास से जुड़ा एक बड़ा कदम है। यह निर्णय न केवल स्थानीय नागरिकों की लंबे समय से चली आ रही मांग को पूरा करता है, बल्कि भगवान परशुराम की धरती को उसका धार्मिक गौरव भी लौटाता है।
