आभा सिन्हा, पटना,
दुनिया में भगवान शिव के लाखों मंदिर हैं, जहाँ अलग-अलग आकार, प्रकार और विशेषताओं वाले शिवलिंग स्थापित हैं। परंतु मध्यप्रदेश के श्योपुर जिले में स्थित गोविंदेश्वर महादेव शिवालय एक ऐसी अनूठी धरोहर है, जो न केवल आस्था का केंद्र है, बल्कि अपनी संरचना और रहस्यमय चमत्कारों के कारण विश्व में अद्वितीय है। यहाँ स्थित शिवलिंग अपनी धुरी पर चारों दिशाओं में घूम सकता है और भक्त अपनी इच्छा अनुसार इसे घुमाकर पूजा-अर्चना करते हैं।
श्योपुर के छार बाग मोहल्ले में स्थित यह मंदिर एक साधारण धार्मिक स्थल नहीं है, बल्कि एक अद्वितीय स्थापत्य और आस्था का संगम है। यहाँ स्थापित शिवलिंग का जलहरी मुख (जहाँ से जल बाहर निकलता है) किसी एक दिशा में स्थिर नहीं रहता है, बल्कि यह उत्तर, दक्षिण, पूर्व और पश्चिम, किसी भी दिशा की ओर किया जा सकता है। यह विशेषता दुनिया के किसी अन्य शिवलिंग में देखने को नहीं मिलती है।
श्योपुर का इतिहास समृद्ध और गौरवशाली रहा है। यहाँ के शासक गौड़ वंश से थे, जो धार्मिक प्रवृत्ति के होने के साथ-साथ कला और स्थापत्य के भी प्रेमी थे। राजा पुरूषोत्तम दास, जो भगवान शिव के परम भक्त थे, ने अपनी भक्ति को अद्वितीय स्वरूप देने के लिए इस अनोखे शिवलिंग का निर्माण कराया।
इतिहासकारों के अनुसार, यह शिवलिंग पहले महाराष्ट्र के सोलापुर में बाम्बेश्वर महादेव के रूप में स्थापित था। बाद में राजा पुरूषोत्तम दास ने इसे श्योपुर में स्थापित करवाया और नगर को शिवभक्ति के प्रतीक के रूप में बसाया।
यह शिवलिंग पूरी तरह लाल बलुआ पत्थर से निर्मित है। इसमें दो मुख्य भाग हैं। पिंड- भगवान शिव का प्रतीकात्मक लिंगाकार भाग, और जलहरी- पिंड के चारों ओर की संरचना, जहाँ से अभिषेक का जल बाहर निकलता है।
शिवलिंग को एक विशेष धुरी (Pivot) पर स्थापित किया गया है, जो घर्षण रहित और संतुलित आधार पर टिका है। इसी वजह से यह बिना ज्यादा प्रयास के चारों दिशाओं में घूम सकता है। संभवतः यह धुरी पत्थर और धातु के मिश्रण से बनी होगी, जो समय के साथ भी क्षतिग्रस्त नहीं हुई।
हिन्दू धर्म में पूजा में दिशा का विशेष महत्व है। शिवलिंग का मुख सामान्यतः उत्तर या दक्षिण की ओर होता है। लेकिन यहाँ, भक्त अपनी सुविधा के अनुसार मुख की दिशा बदल सकते हैं, जैसे कि उत्तर मुखी शिवलिंग धन-समृद्धि का, पूर्व मुखी संतान सुख का और दक्षिण मुखी मोक्ष का प्रतीक माना जाता है।
मान्यता के अनुसार, सर्पदोष निवारण, पितृदोष का शमन, गृहकलह का अंत, सभी प्रकार के मानसिक और शारीरिक कष्टों से मुक्ति यहां मिलता है।
स्थानीय जनश्रुति के अनुसार, साल में एक बार रात के समय मंदिर में बिना किसी के छुए घंटियाँ अपने आप बजने लगती हैं और शिवलिंग स्वतः घूमने लगता है। यह घटना अधिकतर महाशिवरात्रि या सावन के पवित्र माह में घटित होती है।
हर साल हजारों श्रद्धालु यहाँ आकर अपने जीवन की समस्याओं के समाधान की प्रार्थना करते हैं। सावन, महाशिवरात्रि और श्रावण सोमवार के दिनों में मंदिर में अपार भीड़ उमड़ती है।
यह मंदिर केवल धार्मिक ही नहीं बल्कि स्थापत्य और ऐतिहासिक दृष्टि से भी पर्यटकों को आकर्षित करता है। यहाँ के पास श्योपुर किला, कूनो नेशनल पार्क और स्थानीय हस्तशिल्प भी देखने लायक हैं।
इतना पुराना निर्माण समय के साथ प्राकृतिक क्षरण का शिकार हो सकता है। आवश्यकता है कि भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) इस मंदिर को सुरक्षित स्मारक घोषित करे, शिवलिंग के धुरी तंत्र की वैज्ञानिक जाँच और संरक्षण हो, मंदिर के आस-पास पर्यटन सुविधाओं का विकास हो।
भले ही शिवलिंग का घूमना एक धार्मिक चमत्कार माना जाता है, लेकिन इसके पीछे उन्नत शिल्पकला और इंजीनियरिंग का भी अद्भुत योगदान है। 18वीं सदी में इतनी सटीक यांत्रिक संरचना बनाना उस समय की शिल्पकला और तकनीकी ज्ञान का प्रमाण है।
गोविंदेश्वर महादेव शिवलिंग न केवल एक धार्मिक धरोहर है, बल्कि यह भारतीय कला, संस्कृति और इंजीनियरिंग कौशल का भी अद्वितीय उदाहरण है। यह मंदिर दर्शाता है कि परंपराएँ केवल आस्था पर नहीं, बल्कि गहन वैज्ञानिक और स्थापत्य ज्ञान पर भी आधारित रही हैं।
