फोटोग्राफी एक ऐसा माध्यम है जो भावनाओं, संवेदनाओं और कहानियों को बिना शब्दों के बयां कर देता है। कैमरे की नजर से कैद की गई तस्वीरें न केवल समय को रोक देती हैं बल्कि आने वाली पीढ़ियों के लिए इतिहास भी रचती हैं। 19 अगस्त को हर वर्ष विश्व फोटोग्राफी दिवस मनाया जाता है। यह दिन उन तमाम फोटोग्राफरों के जुनून, मेहनत और कला को सम्मानित करता है जिन्होंने अपने कैमरे के जरिए दुनिया को देखने का नजरिया बदल दिया।
आज फोटोग्राफी केवल शौक तक सीमित नहीं है, बल्कि यह एक बड़ा और मजबूत करियर विकल्प बन चुका है। खासकर युवा वर्ग इसे अपनाकर अपनी पहचान बना रहे हैं। और सबसे बड़ी बात यह है कि अब महिलाएं भी इस क्षेत्र में परंपरागत धारणाओं को तोड़ते हुए अपनी अलग छाप छोड़ रही हैं।
इन्हीं महिलाओं में से एक नाम है खंडवा की मनीषा सकनेर, जिन्होंने सामाजिक रूढ़ियों को चुनौती देते हुए अपने हुनर और जुनून से फोटोग्राफी में नया मुकाम हासिल किया।
मनीषा का जन्म साधारण परिवार में हुआ है। वह गुण समाज सोडवा की बालिका हैं और खंडवा जिले के सठनेर क्षेत्र से ताल्लुक रखती हैं। बचपन से ही उन्हें कैमरे और तस्वीरों का आकर्षण था। स्कूल के दिनों में जब सहपाठी चित्रकला या खेलों में व्यस्त रहते, मनीषा अक्सर कैमरा लेकर हर छोटे-बड़े पल को कैद करने की कोशिश करतीं।
लेकिन उनके इस शौक को समाज ने आसान रास्ता नहीं माना। अक्सर लोग कहते “ये लड़कियों का काम नहीं है, फोटोग्राफी में घूमना-फिरना पड़ता है।” लेकिन मनीषा ने इन तानों को कभी अपने रास्ते की रुकावट नहीं बनने दिया।
हर सफलता के पीछे परिवार का योगदान अहम होता है। मनीषा की कहानी भी इससे अलग नहीं है। जब समाज सवाल उठाता था, तब उनके माता-पिता उनके साथ खड़े रहे। पिता मरत सकनेर ने साफ कहा कि
“हमारे घर में बेटा-बेटी में कोई फर्क नहीं है। अगर बेटा अपने सपनों का पीछा कर सकता है, तो बेटी क्यों नहीं?”
यही हौसला मनीषा को आगे बढ़ने की ताकत देता गया। शुरुआत छोटे-छोटे आयोजनों की फोटोग्राफी से हुई, लेकिन धीरे-धीरे उन्होंने वेडिंग फोटोग्राफी, कैंडिड और आउटडोर-इंडोर फोटोग्राफी में अपनी जगह बना ली।
मनीषा के गुरव समाज के वरिष्ठ सदस्य हेमंत मोटाने बताते हैं कि उन्होंने पूरे एक साल तक बिना शुल्क लिए कड़ी मेहनत की। इस दौरान उन्होंने कैमरे की तकनीक, लाइटिंग, एंगल, एडिटिंग और ग्राहकों से संवाद करने की कला सीखी।
शुरुआत में यह सफर आसान नहीं था। कई बार आर्थिक तंगी आई, कई बार समाज का विरोध सहना पड़ा। लेकिन जुनून और लगन से मनीषा ने सभी चुनौतियों को पार कर लिया। आज वह खंडवा और आसपास के इलाकों में एक नामचीन महिला फोटोग्राफर के रूप में पहचानी जाती हैं।
फोटोग्राफी का क्षेत्र लंबे समय तक पुरुष-प्रधान माना जाता था। शादी-ब्याह के मंच पर, खेल आयोजनों में या फिर वन्यजीवन की कठिन परिस्थितियों में कैमरे के साथ पुरुषों की उपस्थिति आम बात थी। लेकिन मनीषा ने यह धारणा तोड़ दी कि महिलाएं इस पेशे में सफल नहीं हो सकतीं।
आज वे न केवल वेडिंग फोटोग्राफी करती हैं, बल्कि कैंडिड शॉट्स, आउटडोर शूट, स्पोर्ट्स फोटोग्राफी और क्रिएटिव एडिटिंग में भी महारत रखती हैं। उनकी तस्वीरों में न केवल तकनीकी खूबियां दिखती है, बल्कि भावनाओं की गहराई भी साफ झलकती है।
फोटोग्राफी के साथ-साथ मनीषा का खेल और फिटनेस की दुनिया से भी गहरा नाता है। उन्होंने बास्केटबॉल और बैडमिंटन में मेडल जीते हैं। यही नहीं, वह एक प्रशिक्षित जिम ट्रेनर भी हैं।
खेलों से मिले अनुशासन और फिटनेस से मिली ऊर्जा ने उन्हें कठिन परिस्थितियों में भी बेहतर काम करने की ताकत दी।
बहुत से लोग फोटोग्राफी को केवल कैमरा क्लिक करने तक सीमित मानते हैं। लेकिन असलियत यह है कि एक बेहतरीन तस्वीर के लिए तकनीकी समझ, धैर्य और संवेदनशीलता की जरूरत होती है। मनीषा बताती हैं कि “एक तस्वीर तभी दिल को छूती है जब उसमें भावनाएं हों। इसके लिए केवल कैमरे की समझ नहीं, बल्कि विषय को महसूस करने की क्षमता भी जरूरी है।”
वे लाइटिंग, बैकग्राउंड और एंगल का खास ध्यान रखती हैं। शादी की हलचल हो या वन्यजीवन का धैर्यपूर्ण इंतजार, हर जगह मनीषा का जुनून और फोकस साफ झलकता है।
आज मनीषा न केवल अपने माता-पिता का नाम रोशन कर रही हैं, बल्कि परिवार की आर्थिक मदद भी कर रही हैं। उनकी मेहनत से घर की स्थिति मजबूत हुई है और सबसे बड़ी बात यह कि पूरे खंडवा शहर को उन पर गर्व है।
विश्व फोटोग्राफी दिवस 2025 पर जब शहर में चर्चाएं हो रही हैं, तो मनीषा का नाम प्रेरणा की मिसाल बनकर सामने आता है।
आज मनीषा जैसी लड़कियां केवल खंडवा ही नहीं, बल्कि पूरे देश में नई राह बना रही हैं। वाइल्डलाइफ फोटोग्राफी, फैशन फोटोग्राफी, डॉक्यूमेंट्री और पत्रकारिता, हर क्षेत्र में महिलाएं अपनी जगह बना रही हैं। यह बदलाव न केवल पेशेवर दुनिया में महिलाओं की उपस्थिति को मजबूत कर रहा है, बल्कि समाज में फैली रूढ़ियों को भी तोड़ रहा है।
मनीषा का मानना है कि “सपने तभी सच होते हैं जब उन्हें पूरा करने की हिम्मत रखते हैं। कठिनाइयाँ हर क्षेत्र में आती हैं, लेकिन जुनून और मेहनत से हर बाधा पार की जा सकती है।” उनका संदेश खासकर युवतियों के लिए है – अगर दिल में जुनून है तो समाज की परवाह किए बिना अपने सपनों की राह पर चलो।
मनीषा की कहानी यह साबित करती है कि अगर इरादा मजबूत हो तो कोई भी क्षेत्र महिलाओं के लिए कठिन नहीं है। आज वह खंडवा की पहली महिला प्रोफेशनल फोटोग्राफर के रूप में जानी जाती हैं और आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा हैं।
