आभा सिन्हा, पटना
उत्तराखंड, जिसे "देवभूमि" कहा जाता है, केवल अपनी मनमोहक प्राकृतिक सुंदरता के लिए ही नहीं, बल्कि अपने अद्भुत और रहस्यमयी मंदिरों के लिए भी विश्वभर में प्रसिद्ध है। यहां के पर्वत, नदियां, झरने और घाटियां केवल प्रकृति का सौंदर्य ही नहीं, बल्कि आस्था का केंद्र भी हैं। इन्हीं आस्था स्थलों के बीच चमोली जिला के उर्गम घाटी में स्थित वंसीनारायण मंदिर एक ऐसा अद्भुत स्थान है, जो वर्ष में केवल एक बार, रक्षाबंधन के दिन ही खुलता है।
"वंसीनारायण" नाम सुनकर अधिकांश लोग यह मान लेते हैं कि यह मंदिर भगवान कृष्ण को समर्पित होगा, लेकिन वास्तविकता इससे अलग है। यहां चतुर्भुज रूप में भगवान विष्णु की मूर्ति स्थापित है, साथ ही भगवान शिव के पुत्र गणेश और वन की रक्षा करने वाली वन देवियों की प्रतिमाएं भी हैं। कहा जाता है कि इस मंदिर में शिव और विष्णु दोनों की मूर्तियां होने के कारण इसका नाम "वंसीनारायण" पड़ा। यहां "वंसी" का अर्थ है वन और "नारायण" का अर्थ है भगवान विष्णु।
स्थानीय लोककथाओं के अनुसार, महाभारत युद्ध के बाद पांडव अपने पापों का प्रायश्चित कर रहे थे। इसी दौरान उन्होंने एक भव्य मंदिर बनाने का संकल्प लिया, जो इतना विशाल हो कि बद्रीनाथ और केदारनाथ की एक साथ पूजा संभव हो सके। मगर एक अजीब शर्त थी- मंदिर का निर्माण केवल रात में ही हो सकता था। निर्माण कार्य शुरू हुआ, भीम द्वारा लाए गए विशाल शिलाखंड आज भी यहां मौजूद हैं, जो उस युग की गवाही देता है। हालांकि निर्माण अधूरा रह गया और आज यह मंदिर अपने अधूरेपन के बावजूद अद्वितीय है।
यह मंदिर वर्ष में केवल रक्षाबंधन के दिन ही खुलता है। इस दिन दूर-दूर से महिलाएं और कन्याएं यहां पहुंचती हैं, भगवान वंसीनारायण के दर्शन करती हैं और राखी बांधकर परिवार की सुख-शांति की कामना करती हैं। मान्यता के अनुसार, रक्षाबंधन का इस मंदिर से गहरा संबंध है, जिसकी कहानी भगवान विष्णु के वामन अवतार से जुड़ी है।
पुराणों में वर्णन है कि राजा बलि के अहंकार को समाप्त करने के लिए भगवान विष्णु ने वामन अवतार लिया। उन्होंने तीन पग भूमि मांगी, एक पग में आकाश, दूसरे में पृथ्वी और तीसरे में राजा बलि को पाताल लोक भेज दिया। राजा बलि ने भगवान विष्णु से अपने साथ सदैव रहने का वचन लिया और वे पाताल लोक में उनके द्वारपाल बन गए। पति से दूर होने पर मां लक्ष्मी चिंतित हो गईं। नारद मुनि की सलाह पर वे पाताल लोक गईं और राजा बलि को रक्षा सूत्र बांध दिया। जब राजा बलि ने वचन मांगने को कहा, तो लक्ष्मी ने अपने पति की स्वतंत्रता मांगी। राजा बलि ने उनकी इच्छा पूरी की और भगवान विष्णु को मुक्त कर दिया। इसी घटना के बाद रक्षाबंधन के दिन भगवान वंसीनारायण की पूजा प्रारंभ हुई, और आज भी केवल इसी दिन मंदिर के कपाट खुलते हैं।
एक अन्य मान्यता है कि वर्ष के 364 दिन स्वयं नारद मुनि इस मंदिर में पूजा करते हैं। केवल रक्षाबंधन के दिन कलगोठ गांव के जाख देवता के पुजारी भगवान की पूजा करते हैं। इसी कारण इस मंदिर में सदियों से कलगोठ गांव के पुजारियों की ही नियुक्ति होती है।
रक्षाबंधन के दिन मंदिर परिसर में एक अद्भुत दृश्य देखने को मिलता है। सुबह से ही श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ पड़ती है। महिलाएं रंग-बिरंगे परिधानों में, हाथों में थाल सजाकर, भगवान को राखी बांधती हैं और अपनी मनोकामनाएं व्यक्त करती हैं। यहां कोई लिंग भेद नहीं है, लेकिन महिलाओं की संख्या इतनी अधिक होती है कि पूरा वातावरण भक्ति और भाईचारे से सराबोर हो जाता है।
वंसीनारायण मंदिर तक पहुंचना भी एक साहसिक अनुभव है। पहला पड़ाव- “ऋषिकेश से जोशीमठ”
ऋषिकेश से लगभग 255 किलोमीटर की यात्रा करके जोशीमठ पहुंचते हैं। दूसरा पड़ाव- “हेलंग से उर्गम घाटी” जोशीमठ से 10 किलोमीटर की दूरी पर हेलंग घाटी स्थित है। यहां से जीप द्वारा उर्गम घाटी जाया जा सकता है। अंतिम पड़ाव- “पैदल ट्रैकिंग” उर्गम घाटी से लगभग 12 किलोमीटर की ट्रैकिंग करके मंदिर तक पहुंचा जाता है। रास्ते में बर्फ से ढके पहाड़, हरे-भरे जंगल और झरनों की मधुर ध्वनि थकान मिटा देता है।
मंदिर का निर्माण प्राचीन पहाड़ी शैली में हुआ है। लकड़ी और पत्थर से बने गर्भगृह में भगवान विष्णु की चतुर्भुज प्रतिमा है। पास ही गणेश और वन देवियों की प्रतिमाएं स्थापित हैं। मंदिर के चारों ओर फैली हरी-भरी घाटी, ऊंचे देवदार के पेड़ और बर्फीले शिखर इसकी सुंदरता को कई गुना बढ़ा देता है।
स्थानीय लोग इस मंदिर को केवल धार्मिक स्थल ही नहीं, बल्कि अपनी सांस्कृतिक धरोहर मानते हैं। यहां की लोककथाएं, गीत और त्योहार वंसीनारायण मंदिर के इर्द-गिर्द ही बुने गए हैं। रक्षाबंधन से एक दिन पहले ही आसपास के गांवों में मेले जैसा माहौल बन जाता है।
भीम के शिलाखंड- मंदिर के पास पड़े विशाल पत्थर इस बात के प्रमाण हैं कि यह स्थान महाभारत काल से जुड़ा है। 364 दिन की अदृश्य पूजा- यह विश्वास कि नारद मुनि स्वयं यहां पूजा करते हैं, श्रद्धालुओं को एक अद्भुत आस्था से जोड़ता है। मनोकामना पूर्ण होने की मान्यता- रक्षाबंधन के दिन यहां राखी बांधने वाली बहनों की इच्छाएं शीघ्र पूरी होती हैं, ऐसा कहा जाता है।
वंसीनारायण मंदिर न केवल धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह साहसिक और आध्यात्मिक पर्यटन का भी केंद्र है। यहां आने वाले यात्रियों को देवभूमि के प्राकृतिक वैभव के साथ-साथ गहरी आध्यात्मिक अनुभूति भी होती है।
वंसीनारायण मंदिर एक ऐसा स्थल है, जहां हर पत्थर, हर पेड़, हर हवा का झोंका पौराणिक कथाओं और आस्था की गूंज से भरा है। वर्ष में केवल एक दिन खुलने वाला यह मंदिर यह सिखाता है कि आस्था का मूल्य समय की सीमा से कहीं अधिक होता है। चाहे धार्मिक भाव से आएं या प्राकृतिक सुंदरता के आकर्षण में, वंसीनारायण मंदिर आत्मा को एक अद्भुत शांति और ऊर्जा प्रदान करेगा।
