अमेज़न-वॉलमार्ट ने रोके भारत से ऑर्डर, ट्रम्प के टैरिफ फैसले से वस्त्र उद्योग में हड़कंप

Jitendra Kumar Sinha
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अचानक अमेरिकी कंपनियों जैसे अमेज़न, वॉलमार्ट, टारगेट और गैप ने भारतीय वस्त्र और टेक्सटाइल उद्योग से ऑर्डर लेना बंद कर दिया है। वजह है अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प का फैसला, जिसके तहत भारत से आने वाले कई सामानों पर कस्टम टैरिफ दोगुना कर दिया गया है। पहले 25 प्रतिशत टैरिफ लागू था, अब इसे 50 प्रतिशत कर दिया गया है, जिसमें शेष 25 प्रतिशत अगस्त के अंत से लागू होगा।


अमेरिकी कंपनियों ने भारतीय सप्लायर्स को ईमेल और फोन के ज़रिये साफ़ बता दिया कि अगर बढ़ा हुआ टैरिफ कीमत में शामिल नहीं किया गया तो वे ऑर्डर नहीं लेंगी। कई भारतीय निर्यातकों का कहना है कि यह फैसला एकदम रातों-रात लागू हो गया, जिससे उद्योग में हड़कंप मच गया है। पर्ल ग्लोबल जैसी कंपनियों के प्रबंध निदेशकों ने बताया कि अमेरिकी समयानुसार सुबह उनके पास कॉल आईं कि तुरंत माल की डिलीवरी रोक दी जाए।


इस झटके ने भारतीय निर्यातकों को वैकल्पिक रास्ते सोचने पर मजबूर कर दिया है। कई कंपनियाँ अब बांग्लादेश, वियतनाम, इंडोनेशिया और ग्वाटेमाला जैसे देशों में उत्पादन शिफ्ट करने पर विचार कर रही हैं। उद्योग विशेषज्ञों के अनुसार बढ़े हुए टैरिफ से लागत 30 से 35 प्रतिशत तक बढ़ सकती है और अमेरिकी ऑर्डरों में 40 से 50 प्रतिशत तक की गिरावट आ सकती है। इसका सीधा मतलब है कि भारत को सालाना लगभग 4 से 5 अरब डॉलर का नुकसान झेलना पड़ सकता है।


अमेरिका, भारत के लिए वस्त्र निर्यात का सबसे बड़ा बाजार है। वित्त वर्ष 2024-25 में भारत का कुल वस्त्र निर्यात 36.61 अरब डॉलर का रहा, जिसमें से लगभग 28 प्रतिशत हिस्सा अमेरिका को गया। वेल्सपुन लिविंग, गोकलदास एक्सपोर्ट्स, इंडो काउंट और ट्राइडेंट जैसी कंपनियाँ अपने अमेरिकी कारोबार पर 40 से 70 प्रतिशत तक निर्भर हैं, इसलिए यह टैरिफ का झटका उनके लिए बेहद गंभीर है।


निर्यातकों के लिए यह एक हैरान कर देने वाली रात साबित हुई। फोन लगातार बजते रहे, ऑर्डर रद्द होते रहे और कई सौदे अचानक रोक दिए गए। जिन कंपनियों ने महीनों पहले से उत्पादन की तैयारी की थी, उनके सामने अब माल बेचने का संकट खड़ा हो गया है।


संक्षेप में, ट्रम्प का यह टैरिफ फैसला भारतीय वस्त्र उद्योग के लिए एक बड़ा झटका है, जिसने न सिर्फ मौजूदा कारोबार को खतरे में डाल दिया है, बल्कि भविष्य की संभावनाओं पर भी गहरी चोट की है। अब चुनौती यह है कि इस संकट से उबरने के लिए भारतीय कंपनियाँ कितनी जल्दी नए बाज़ार ढूँढ पाती हैं और अपनी रणनीति बदल पाती हैं।

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