लोकतंत्र में विपक्ष का होना ताकत है। विपक्ष सत्ता को सवालों के कटघरे में खड़ा करता है, नीतियों पर बहस करता है और गलतियों को सुधारने के लिए मजबूर करता है। लेकिन जब विपक्ष का नेता अपनी राजनीति को देशहित से ऊपर रख दे, जब उसका मकसद सिर्फ़ सत्ता पाने के लिए सत्ता को बदनाम करना रह जाए, तब यह लोकतांत्रिक भूमिका नहीं, बल्कि राष्ट्रीय हित के खिलाफ़ काम बन जाता है। राहुल गांधी आज इसी मोड़ पर खड़े हैं।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का विरोध करना उनका हक़ है, लेकिन उनका तरीका और मंच — खासकर विदेशों में — इस विरोध को सीधा-सीधा भारत विरोध में बदल देता है। यह सिर्फ़ बयानबाज़ी नहीं, बल्कि राष्ट्रीय सुरक्षा और अंतरराष्ट्रीय छवि पर चोट है।
विदेशी मंच से भारत की छवि को धक्का
राहुल गांधी ने बार-बार अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भारत के लोकतंत्र को “कमज़ोर” और “दमनकारी” बताया है।
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मार्च 2023, कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी (यूके)यहाँ राहुल गांधी ने कहा — “भारतीय लोकतंत्र पर हमला हो रहा है। मीडिया, न्यायपालिका और संसद पर नियंत्रण है। अल्पसंख्यकों को दबाया जा रहा है।”उन्होंने Pegasus स्पाइवेयर के ज़रिए फोन पर निगरानी का भी आरोप लगाया।यह बयान सिर्फ़ भारत के अंदर की बहस नहीं रहा — पाकिस्तान और चीन के सरकारी मीडिया ने इसे हेडलाइन बनाकर ऐसे पेश किया मानो भारत लोकतंत्र नहीं, बल्कि तानाशाही की ओर बढ़ चुका हो।
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अमेरिका, 2024 का दौराराहुल गांधी ने खुलेआम कहा — “भारत की प्रेस आज़ाद नहीं है, संस्थाएं मोदी के कब्ज़े में हैं।”यह बात अमेरिका और यूरोप के भारत-विरोधी लॉबी के हाथ में सीधा हथियार बन गई।
विदेशी मंचों पर इस तरह के बयान किसी विपक्षी रणनीति से ज़्यादा, विरोधी देशों के नैरेटिव से मेल खाते हैं।
डोकलाम विवाद के दौरान चीन से गुप्त मुलाकात
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पहले कांग्रेस ने इस मुलाकात से साफ़ इंकार किया।
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लेकिन कुछ घंटों बाद, दबाव बढ़ने पर कांग्रेस ने माना कि यह मुलाकात हुई थी।
भारतीय सेना और सुरक्षा संस्थाओं पर अविश्वास
राहुल गांधी ने कई बार भारतीय सेना के पराक्रम पर सवाल खड़े किए।
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बालाकोट एयरस्ट्राइक (2019) के बाद उन्होंने पूछा — “क्या सचमुच हमला हुआ था?”
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गलवान संघर्ष (2020) में जब भारतीय सेना ने चीन को करारा जवाब दिया, राहुल ने कहा — “मोदी ने चीन को हमारी ज़मीन दे दी।”
ऐसे बयान सिर्फ़ राजनीतिक हमला नहीं, बल्कि दुश्मन देशों के दावों को मजबूती देते हैं। यह सीधे-सीधे सेना के मनोबल को गिराने वाला रवैया है।
संसद में अराजकता और विकास विरोध
राहुल गांधी ने कई राष्ट्रीय नीतियों पर बेबुनियाद आरोप लगाए, और संसद को काम करने से रोका।
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राफेल डील पर झूठा प्रचार, जिस पर सुप्रीम कोर्ट ने साफ़ कहा कि कोई सबूत नहीं है।
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CAA (नागरिकता संशोधन अधिनियम) पर भड़काऊ बयान, जिससे कई जगह दंगे और हिंसा भड़की।
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कृषि कानून पर आंदोलन को राजनीतिक हथियार बना कर सरकार को “कॉर्पोरेट के गुलाम” कहा, जबकि कानून का उद्देश्य किसानों को नई बाज़ार स्वतंत्रता देना था।
इन सबका नतीजा — देश में नकारात्मक माहौल, विकास कार्यों में देरी और जनता में अनावश्यक भय।
पाकिस्तान और चीन के प्रोपेगैंडा का हिस्सा
राहुल गांधी के कई बयान पाकिस्तान और चीन के मीडिया में वैसे ही छपते हैं, जैसे किसी आधिकारिक प्रवक्ता के।
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2019 में, पाकिस्तान के मंत्री ने राहुल गांधी का ट्वीट शेयर किया, जिसमें उन्होंने बालाकोट स्ट्राइक पर सवाल उठाया था।
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चीन के सरकारी अख़बार “ग्लोबल टाइम्स” ने उनके CAA विरोधी बयान को अपने पहले पन्ने पर जगह दी।
दुश्मन देशों के मीडिया के लिए इससे बेहतर तोहफ़ा क्या होगा?
विरोध का अधिकार, लेकिन राष्ट्रहित पहले
अगर यह सिलसिला चलता रहा, तो इतिहास उन्हें विपक्षी नेता के रूप में नहीं, बल्कि ऐसे व्यक्ति के रूप में याद करेगा जिसने सत्ता पाने की भूख में अपने ही देश के खिलाफ़ मोर्चा खोल दिया — एक गद्दार के रूप में।
