बिहार के ग्रामीण इलाकों में अब विकास की रफ्तार सड़कों के जरिए तेजी से दौड़ रही है। राज्य में नाबार्ड ऋण संपोषित राज्य योजना (RIDF) के तहत अब तक 1854 सड़कों का निर्माण कार्य पूरा हो चुका है, जिससे प्रदेश की 4820.50 किलोमीटर लंबाई की सड़कें अब गांवों को शहरों से जोड़ रही हैं।
ग्रामीण परिवहन नेटवर्क को मजबूत करने की यह कोशिश राज्य सरकार की एक बड़ी उपलब्धि माना जा रहा है। योजना के तहत कुल 2024 सड़कों को मंजूरी मिली थी, जिनकी कुल लंबाई 5251.29 किलोमीटर है। यानि अब तक 88% निर्माण कार्य पूरा हो चुका है।
यदि जिलावार आंकड़ों पर नजर डालें, तो नालंदा जिला इस योजना में सबसे आगे है। यहां कुल 370.71 किलोमीटर लंबाई की सड़कों का निर्माण पूरा हो चुका है। दूसरे स्थान पर गया जिला है, जहां 365.78 किमी सड़कों का निर्माण हुआ है, जबकि तीसरे स्थान पर राजधानी पटना है, जहां 328.21 किमी की सड़कें बन चुकी हैं।
इन जिलों में सड़क निर्माण की तेज रफ्तार न केवल प्रशासनिक तत्परता को दर्शाती है, बल्कि ग्रामीण जनता को बेहतर कनेक्टिविटी से जोड़ने की प्रतिबद्धता भी साबित करती है।
सड़कें किसी भी राज्य की जीवनरेखा होती हैं। बिहार जैसे राज्य में जहां आज भी बड़ी आबादी गांवों में रहती है, वहां सड़क निर्माण का महत्व कई गुना बढ़ जाता है। इन सड़कों के निर्माण से अब किसानों को अपनी उपज बाजार तक पहुंचाने में आसानी होगी, बच्चों को स्कूल जाने का बेहतर रास्ता मिलेगा, और बीमारों को अस्पताल तक पहुंचने में कम समय लगेगा।
इन सड़कों से न केवल आवागमन आसान हुआ है, बल्कि रोजगार के अवसर भी बढ़े हैं। निर्माण कार्यों में स्थानीय मजदूरों को काम मिला और सड़कों के बन जाने के बाद स्थानीय व्यापारियों को नए बाजारों तक पहुंच मिली है।
साथ ही, यह पहल राज्य सरकार की ग्रामीण विकास के प्रति गंभीरता को भी दर्शाता है। भविष्य में बाकी स्वीकृत सड़कों का कार्य भी पूरा होते ही राज्य में एक सुदृढ़ ग्रामीण नेटवर्क तैयार हो जाएगा, जो बिहार के विकास में मील का पत्थर साबित होगा।
बिहार में नाबार्ड की मदद से चल रही सड़क परियोजना राज्य की ग्रामीण संरचना को नया आयाम दे रही है। नालंदा, गया और पटना जैसे जिलों का प्रदर्शन यह दिखाता है कि यदि नियोजन, संसाधन और इच्छाशक्ति हो तो विकास की राह ज्यादा दूर नहीं। आने वाले समय में यह सड़कें बिहार की अर्थव्यवस्था, शिक्षा और स्वास्थ्य को नई दिशा देने का काम करेगी।
