तेजस्वी यादव ने हाल ही में दावा किया कि बिहार की ड्राफ्ट वोटर लिस्ट में उनका नाम गायब है। उन्होंने प्रेस कॉन्फ्रेंस में अपने मोबाइल स्क्रीन से EPIC नंबर (RAB2916120) दर्ज किया, जिस पर ‘नो रिकॉर्ड्स फाउंड’ का मैसेज आया। उनके इस दावे ने चुनाव आयोग और राजनीतिक गलियारों में तूफान मचा दिया
लेकिन चुनाव आयोग ने इस दावे को तुरंत खारिज कर दिया। आयोग ने बताया कि तेजस्वी का नाम EPIC नंबर RAB0456228 के साथ ड्राफ्ट लिस्ट में मौजूद है और यह वही नंबर है जो उन्होंने 2020 के विधानसभा चुनाव और 2015 की सूची में इस्तेमाल किया था। वहीं उनका दूसरा दिखाया गया EPIC नंबर (RAB2916120) पिछले दस वर्षों में किसी आधिकारिक रिकॉर्ड में नहीं मिला, जिसके आधार पर आयोग ने फर्जी दस्तावेज़ होने की आशंका जताई और इसकी जांच शुरू कर दी है।
तेजस्वी ने आरोप लगाया कि लगभग 65 लाख नाम वोटर लिस्ट से हटाए गए हैं, जो चुनाव आयोग की प्रक्रिया को निष्पक्ष होने से बनावटी बना देते हैं। उन्होंने इसे जातिगत सत्ता-दमन की एक योजना बताया । भाजपा ने इन आरोपों को अफवाह करार देते हुए इसे हास्यास्पद और भ्रम फैलाने वाला कदम बताया ।
चुनाव आयोग ने स्पष्ट किया कि बिहार में 24 जून 2025 से शुरू हुए विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) के दौरान मतदाता नामों का सत्यापन अत्यंत सख्ती से हो रहा है, और नाम कटने वालों को दावा व आपत्ति दर्ज कराने का पूरा अवसर दिया गया है। आयोग ने कहा कि व्यापक सुधार और पारदर्शिता के उद्देश्य से यह कार्रवाई की गई है ।
सुप्रीम कोर्ट ने बीसवीं सदी की इस प्रक्रिया को चुनौती देने वाली याचिकाओं को सुनने का निर्देश दिया है, लेकिन फिलहाल SIR प्रक्रिया को तत्काल रोकने से इंकार कर दिया गया है । विपक्षी दलों ने इस कदम को गरीब, मजदूर और प्रवासी मतदाताओं को छूटने का प्रयास बताते हुए भारी नाराजगी जतायी है ।
बदलते समय और राजनीतिक तापमान के बीच, यह मामला सिर्फ एक नेता के नाम न होने का नहीं—बल्कि लोकतंत्र की नींव, मतदान की निष्पक्षता और वोटर सूची की विश्वसनीयता पर भरोसा रखने का सवाल है।
