पाकिस्तान के लिए हाल ही में एक अप्रत्याशित मोड़ सामने आया है, जिसमें अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और बलूचिस्तान की आज़ादी की मांग करने वाले बलूच नेता मीर यार मुहम्मद बलोच के बीच कथित तेल समझौते की चर्चा जोरों पर है। इस मुद्दे ने पाकिस्तान की राजनीति और सेना दोनों को हिला कर रख दिया है, खासतौर पर सेना प्रमुख जनरल आसिम मुनीर के लिए यह एक गंभीर चुनौती बनता जा रहा है।
मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, अमेरिका के साथ बलूचिस्तान से तेल आपूर्ति का एक संभावित सौदा चर्चा में है, जिसे मीर यार मुहम्मद बलोच के नेतृत्व में आगे बढ़ाया जा रहा है। यह सौदा बलूचिस्तान को एक स्वतंत्र राष्ट्र के रूप में स्थापित करने की कोशिश का हिस्सा माना जा रहा है, जिससे पाकिस्तान के संघीय ढांचे पर सीधा प्रहार हो सकता है।
पाकिस्तान की सेना, खासतौर पर पंजाब से आने वाले नेतृत्व के लिए यह स्थिति बेहद संवेदनशील है। बलूचिस्तान लंबे समय से उपेक्षा और शोषण का शिकार रहा है, और वहां के लोगों की स्वतंत्रता की मांग समय-समय पर उठती रही है। लेकिन पहली बार ऐसा प्रतीत हो रहा है कि अंतरराष्ट्रीय ताकतें इस आंदोलन को समर्थन दे सकती हैं।
डोनाल्ड ट्रंप द्वारा इस सौदे का समर्थन करना पाकिस्तान के लिए एक कूटनीतिक सिरदर्द बन गया है। हालांकि यह स्पष्ट नहीं है कि यह सौदा अभी प्रारंभिक बातचीत तक ही सीमित है या इसके कोई ठोस परिणाम निकलने वाले हैं, लेकिन इस खबर ने पाकिस्तान के राजनीतिक गलियारों में हलचल मचा दी है।
इस बीच, पाकिस्तानी मीडिया और सरकार इस मुद्दे पर चुप्पी साधे हुए हैं। सेना की ओर से भी कोई आधिकारिक प्रतिक्रिया नहीं आई है, लेकिन माना जा रहा है कि जनरल मुनीर की अगुवाई में आंतरिक स्तर पर इस पर विचार-विमर्श तेज़ हो गया है।
बलूच नेताओं का यह दावा कि वे तेल के बदले वैश्विक मान्यता की मांग कर रहे हैं, एक बड़ा संकेत है कि वे केवल आत्मनिर्भरता ही नहीं, बल्कि पूर्ण स्वतंत्रता की दिशा में कदम बढ़ा चुके हैं। यदि अमेरिका इस दिशा में कोई समर्थन देता है, तो यह दक्षिण एशिया की स्थिरता के लिए एक बड़ा खतरा बन सकता है।
इस घटनाक्रम ने एक बार फिर यह स्पष्ट कर दिया है कि पाकिस्तान की आंतरिक एकता केवल सैन्य बल से नहीं, बल्कि राजनीतिक समावेशिता और न्यायपूर्ण शासन से ही सुरक्षित रह सकती है। बलूचिस्तान की आवाज़ को दबाने के बजाय समझने और सम्मान देने की ज़रूरत है, अन्यथा आने वाले समय में यह मुद्दा और विस्फोटक रूप ले सकता है।
संक्षेप में, यह मामला केवल एक तेल सौदे से जुड़ा नहीं है, बल्कि यह पाकिस्तान के अस्तित्व, उसकी क्षेत्रीय अखंडता और अंतरराष्ट्रीय राजनीति में उसके स्थान को लेकर एक गंभीर प्रश्न उठाता है।
