लोकतंत्र की साख बचाने वाला ऐतिहासिक कदम: हिरासत में नेताओं की कुर्सी पर लगेगी रोक

Jitendra Kumar Sinha
0

 




लोकसभा में 20 अगस्त 2025 को गृहमंत्री अमित शाह ने जो तीन महत्वपूर्ण विधेयक पेश किए, उनमें सबसे ज़्यादा चर्चा संविधान (130वाँ संशोधन) विधेयक 2025 की हो रही है। इस विधेयक का मूल उद्देश्य सत्ता की गरिमा को बचाना और यह सुनिश्चित करना है कि जिन पदों पर जनता का सर्वोच्च भरोसा टिका है, वे कभी भी अपराध के संदेह या न्यायिक हिरासत की छाया में न आएं। अब तक हमारे लोकतंत्र में एक विचित्र स्थिति यह थी कि कोई प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री या मंत्री अगर गंभीर अपराध में फँसकर महीनों तक जेल में रहे, तब भी वह अपने पद पर बना रह सकता था। इससे शासन की साख पर सवाल उठते थे और जनता के मन में यह भावना पैदा होती थी कि सत्ता को विशेषाधिकार प्राप्त है। लेकिन इस नए संशोधन के बाद यह स्थिति बदल जाएगी।


विधेयक के मुताबिक यदि प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री या कोई मंत्री ऐसे अपराध में न्यायिक हिरासत में जाता है जिसमें कम से कम पाँच साल की सज़ा का प्रावधान है और वह लगातार तीस दिन तक जेल में रहता है, तो उसे पद छोड़ना अनिवार्य होगा। यदि 31वें दिन तक वह इस्तीफा नहीं देता, तो राष्ट्रपति (प्रधानमंत्री और मंत्रियों के मामले में) और राज्यपाल (मुख्यमंत्री और मंत्रियों के मामले में) को यह अधिकार होगा कि वे उसे पद से हटा दें। यह प्रावधान केवल उस अवधि तक लागू रहेगा जब तक व्यक्ति हिरासत में है। जैसे ही अदालत से रिहा होता है, सरकार चाहे तो उसे पुनः पद पर बहाल कर सकती है। यानी यह किसी के राजनीतिक जीवन को स्थायी तौर पर खत्म करने का कानून नहीं है, बल्कि जनता और सत्ता की गरिमा को सुरक्षित रखने का उपाय है।


बिल का सबसे बड़ा गुण यह है कि यह नेताओं और नौकरशाही के बीच समानता की स्थापना करता है। आज तक सरकारी अफसरों पर यह नियम लागू था कि यदि वे तीस दिन से अधिक जेल में रहे, तो उनकी नौकरी स्वतः चली जाएगी। ऐसे में सवाल उठता था कि जब एक अफसर पद गंवा सकता है तो एक मंत्री या मुख्यमंत्री क्यों नहीं? नया संशोधन इस असमानता को समाप्त करता है और यह संदेश देता है कि कानून सबके लिए बराबर है।


इस कदम के आलोचक इसे राजनीतिक हथियार बताते हैं और डर जताते हैं कि विपक्षी नेताओं को जेल में डालकर सत्ता से बाहर किया जा सकता है। लेकिन असलियत यह है कि कानून केवल उन्हीं पर लागू होगा जो गंभीर अपराधों में फँसकर न्यायिक हिरासत में होंगे। निर्दोष व्यक्ति अदालत से रिहा होते ही पद पर दोबारा आ सकता है। इसलिए यह कोई स्थायी दंड नहीं, बल्कि जनता के विश्वास की रक्षा का अस्थायी उपाय है।


यह विधेयक दरअसल लोकतंत्र की साख बचाने का साहसिक प्रयास है। पिछले कुछ वर्षों में ऐसे कई मामले सामने आए हैं जब मुख्यमंत्री या मंत्री भ्रष्टाचार, मनी लॉन्ड्रिंग या अन्य गंभीर आरोपों में जेल में रहते हुए भी पद पर बने रहे। इससे न केवल लोकतंत्र की छवि धूमिल हुई बल्कि प्रशासनिक मशीनरी भी ठप पड़ी। नए प्रावधान से यह सुनिश्चित होगा कि जेल में रहने वाला कोई भी व्यक्ति जनता का प्रतिनिधि बनकर शासन नहीं चला सकेगा। इससे सरकार और सिस्टम दोनों पर जनता का भरोसा और मज़बूत होगा।


विपक्ष का विरोध समझा जा सकता है क्योंकि सत्ता छिनने का डर हमेशा बेचैन करता है, लेकिन लोकतंत्र केवल सत्ता की भूख से नहीं चलता बल्कि नैतिक जिम्मेदारियों से चलता है। यह बिल नेताओं को जवाबदेह बनाएगा और जनता को यह एहसास दिलाएगा कि देश में अब “सबके लिए बराबरी का कानून” सचमुच लागू है।


संक्षेप में, संविधान संशोधन विधेयक 2025 भारतीय लोकतंत्र को और परिपक्व बनाएगा। यह भ्रष्टाचार और अपराधीकरण के खिलाफ एक ठोस कदम है, और यह दिखाता है कि अब जनता का धैर्य टूटा है—वह सत्ता को केवल निष्कलंक ही देखना चाहती है।


एक टिप्पणी भेजें

0टिप्पणियाँ

एक टिप्पणी भेजें (0)

#buttons=(Ok, Go it!) #days=(20)

Our website uses cookies to enhance your experience. Learn More
Ok, Go it!
To Top