अमेरिका ने एक बार फिर भारत पर आरोप लगाया कि वह रूस–यूक्रेन युद्ध को लंबा खींचने में अहम भूमिका निभा रहा है। व्हाइट हाउस के पूर्व व्यापार सलाहकार पीटर नवारो ने कहा कि भारत रूस से सस्ता कच्चा तेल खरीदता है, उसे रिफाइन करके बेचता है और इससे होने वाला मुनाफा सीधे रूस के हथियार उद्योग को मजबूत करता है। उनके अनुसार यह एक तरह की रिफाइनिंग प्रॉफिटियरिंग स्कीम है जो अंततः रूस को यूक्रेनियों के खिलाफ और हिंसक बनने का मौका देती है। उन्होंने यहां तक कहा कि शांति का रास्ता भारत से होकर जाता है, लेकिन भारत का मौजूदा रवैया इस युद्ध को और बढ़ावा दे रहा है, जिसे उन्होंने पागलपन करार दिया।
लेकिन जैसे ही सवाल चीन की ओर गया, जिसने रूस से भारत की तुलना में कहीं अधिक तेल खरीदा है, अमेरिकी विशेषज्ञ और मीडिया खामोश हो गए। न चीन पर कोई तीखी टिप्पणी की गई, न उस पर आरोप लगाए गए। आलोचकों का कहना है कि अमेरिका का यह रवैया उसकी दोहरी नीति को उजागर करता है, क्योंकि एक तरफ भारत पर दबाव बनाया जा रहा है और दूसरी ओर चीन पर चुप्पी साध ली गई है। यही विरोधाभास अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सवाल खड़े कर रहा है कि आखिर क्यों भारत को दोषी ठहराया जा रहा है जबकि चीन को छोड़ दिया गया है।
