भारत ने अग्नि-5 बैलिस्टिक मिसाइल का सफल परीक्षण कर रक्षा क्षमता दिखाई मजबूत

Jitendra Kumar Sinha
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आज भारत ने अपनी रक्षा ताकत को और मजबूत करते हुए स्वदेशी तौर पर विकसित अग्नि-5 मध्य-दूरी की बैलिस्टिक मिसाइल का सफल परीक्षण किया। यह परीक्षण ओडिशा के चांदीपुर में स्थित इंटीग्रेटेड टेस्ट रेंज (आइटीआर) से किया गया, और यह कदम भारत के सामरिक बल कमान की निगरानी में संपन्न हुआ। रक्षा मंत्रालय ने स्पष्ट किया कि परीक्षण में मरम्मत रहे सभी आपरational और तकनीकी मापदंड पूरे साबित हुए।


परीक्षण से पहले एक नोटिस टू एयरमैन (NOTAM) जारी किया गया था, जिसके द्वारा पृथ्वी के हवाई और समुद्री क्षेत्रों में कुछ निर्दिष्ट क्षेत्र को अस्थायी रूप से प्रतिबंधित किया गया था—ताकि मिसाइल का परीक्षण पूरे सुरक्षा मानकों के साथ हो सके। बाद में उस प्रतिबंधित क्षेत्र को और बढ़ाकर सुनिश्चित किया गया कि मिसाइल की 5,000 किलोमीटर से भी ज्यादा मारक क्षमता का ठीक तरीके से परीक्षण हो सके।


अग्नि-5 एक इंटरकॉन्टिनेंटल बैलिस्टिक मिसाइल (ICBM) है जिसे DRDO ने डिज़ाइन और विकसित किया है। यह तीन-चरण वाली, ठोस ईंधन आधारित मिसाइल लगभग 17 मीटर लंबी, 2 मीटर चौड़ी, और लगभग 50 टन वजनी है। इसकी ताकत इतनी है कि यह 1.5 टन तक के परमाणु और पारंपरिक हथियार तक ले जा सकती है। इस मिसाइल का निर्माण रोड-मोबाइल और कैनिस्टराइज्ड लॉन्च सिस्टम के साथ हुआ है, जिससे इसे तेजी से और कहीं से भी तैनात किया जा सकता है। इसमें उन्नत नेविगेशन और गाइडेंस प्रणाली, जैसे कि रिंग लेजर जाइरोस्कोप और एक्सेलेरोमीटर लगे हैं, जो इसे बेहद सटीक लक्ष्य निर्धारण में सक्षम बनाते हैं।


इस परीक्षण की रणनीतिक अहमियत भी बहुत गहरी है। यह भारत की 'न्यूनतम विश्वसनीय निवारण' नीति—जिसमें 'नो फर्स्ट यूज़' प्रतिबद्धता का समर्थन शामिल है—के अनुरूप है। इतना ही नहीं, यह मिसाइल पूरे एशिया, चीन के उत्तरी हिस्सों और यूरोप के कुछ क्षेत्रों को हिट करने की क्षमता रखती है।


DRDO ने पहले एक माइलस्टोन हासिल किया था—11 मार्च 2024 को ‘अग्नि-5’ का पहला MIRV (Multiple Independently Targetable Re-entry Vehicle) संस्करण का सफल परीक्षण किया जा चुका है, जिससे यह तकनीक इस मिसाइल में पहले से मौजूद है।


2012 में 19 अप्रैल को चांदीपुर से पहला Agni-5 परीक्षण हुआ था, लेकिन आज का परीक्षण एक नए स्तर का हुनर दिखाता है। इस सफलता के साथ भारत अब उन चुनिंदा देशों में शामिल है—जैसे अमेरिका, रूस, चीन, फ्रांस, ब्रिटेन—जिनके पास ICBM क्षमता है।

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