“वैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग”

Jitendra Kumar Sinha
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आभा सिन्हा, पटना 

भारतवर्ष की पावन भूमि पर फैले बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक अत्यंत चमत्कारी और श्रद्धा का केंद्र है “बाबा वैद्यनाथ धाम”, जिसे बाबा धाम, वैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग और देवघर के नाम से जाना जाता है। यह तीर्थस्थल न केवल एक प्रमुख ज्योतिर्लिंग है बल्कि यहां स्थित हृदय शक्तिपीठ इसे और भी विशिष्ट बना देता है। यही एकमात्र स्थल है जहां भगवान शिव और मां शक्ति एक ही प्रांगण में पूजित हैं। झारखंड राज्य के देवघर में स्थित यह स्थल भक्तों की अनंत आस्था, भक्ति और चमत्कारिक अनुभवों का साक्षी है।

वैद्यनाथ शब्द का अर्थ है "वैद्य" अर्थात् चिकित्सक और "नाथ" अर्थात् स्वामी। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, यह वही स्थान है जहां भगवान शिव ने रावण की तपस्या से प्रसन्न होकर उसे अमरता का वरदान स्वरूप अपना लिंग रूप प्रदान किया था, लेकिन कुछ शर्तों के साथ। यह माना जाता है कि बाबा बैद्यनाथ स्वयं रोगनाशक हैं। यह स्थल उन श्रद्धालुओं के लिए भी एक विशेष स्थान है जो शारीरिक या मानसिक पीड़ा से मुक्ति की कामना करते हैं। कई भक्त वर्षों से कहानियां सुनाते आ रहे हैं कि उन्होंने यहां दर्शन करने के बाद असाध्य रोगों से मुक्ति पाई।

इस ज्योतिर्लिंग की उत्पत्ति की कथा लंकेश रावण से जुड़ी है। रावण एक महान शिवभक्त था और चाहता था कि भगवान शिव लंका में निवास करें। उसने घोर तपस्या किया, अपने सिर एक-एक कर काट कर चढ़ाए। जब नौ सिर चढ़ा दिया गया, और दसवां चढ़ाने जा रहा था, तभी भगवान शिव प्रसन्न होकर प्रकट हुए और वरदान मांगने को कहा। 

रावण ने मांगा- “हे प्रभु, आप लंका में मेरे साथ चलें”। शिव ने शर्त रखी कि वे एक शिवलिंग के रूप में उसके साथ चलेंगे लेकिन रास्ते में उसे कहीं रखेगा नहीं, नहीं तो वहीं पर वे स्थापित हो जाएंगे।

रावण लिंग लेकर लंका की ओर चला, लेकिन देवताओं की चाल के चलते उसे रास्ते में देवघर नामक स्थान पर लघुशंका (पेशाब करने के लिए) के लिए रुकना पड़ा। वहां एक बालक (वास्तव में विष्णु के अवतार) को शिवलिंग थामने की जिम्मेदारी दी और लघुशंका करने लगा। लघुशंका करने में देर होने और शिवलिंग भारी लगने पर शिवलिंग को भूमि पर रख दिया। लिंग वहीं स्थापित हो गया और रावण लाख प्रयत्नों के बावजूद उसे हिला न सका। तब से यह स्थल बैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग के रूप में प्रसिद्ध हुआ।

बाबा वैद्यनाथ धाम को और अधिक दिव्य बनाता है यहां स्थित हृदय शक्तिपीठ। यह माना जाता है कि जब भगवान शिव मां सती के मृत शरीर को लेकर विक्षिप्त अवस्था में घूम रहे थे, तब भगवान विष्णु ने सुदर्शन चक्र से सती के शरीर को 51 भागों में विभाजित कर दिया था। इन 51 शक्तिपीठों में से एक देवघर में स्थित है, जहां मां सती का हृदय गिरा था। इसलिए इसे हृदय पीठ या हृदय शक्तिपीठ कहा जाता है। इस शक्तिपीठ में मां दुर्गा को पूजा जाता है और यह शिव एवं शक्ति की संयुक्त उपासना का दुर्लभ स्थान बनाता है।

देवघर में एक विशेष परंपरा प्रचलित है जिसे “शिखर बंधन” कहते हैं। यहां जो भक्त अपनी मनोकामनाओं की पूर्ति के लिए बाबा धाम आते हैं, वे दोनों मंदिरों के शिखर को सिंदूर व मौली (धागा) से जोड़ते हैं। यह प्रतीक होता है कि भक्त ने शिव और शक्ति दोनों को साक्षी मानकर अपनी इच्छा व्यक्त की और उसके पूर्ण होने पर वह कृतज्ञता स्वरूप यह अनुष्ठान करता है। यह परंपरा बताता है कि यहां ईश्वर और प्रकृति, शिव और शक्ति, ब्रह्म और माया का अद्भुत संगम है। यही देवघर को अन्य ज्योतिर्लिंगों से विशिष्ट बनाता है।

हर वर्ष श्रावण मास में यहां भारत ही नहीं, पूरे एशिया का सबसे बड़ा धार्मिक मेला लगता है। इसे श्रावणी मेला कहा जाता है। 120 किलोमीटर लंबी कांवड़ यात्रा सुल्तानगंज से शुरू होता है, जहां गंगा बहती है। वहां से कांवड़िया गंगा जल लेकर देवघर तक पैदल यात्रा करते हैं। इस मेले में करोड़ों श्रद्धालु शामिल होते हैं, जो "बोल बम" के जयकारे के साथ जलाभिषेक के लिए पहुंचते हैं। यह मेला केवल एक धार्मिक आयोजन नहीं है, बल्कि सामूहिक भक्ति और अनुशासन का अद्भुत उदाहरण होता है।

बाबा बैद्यनाथ मंदिर की स्थापत्य कला नागर शैली पर आधारित है। मंदिर का मुख्य शिखर लगभग 72 फीट ऊंचा है। शिखर के शीर्ष पर सोने की कलश और ध्वज फहराते हैं। मंदिर परिसर में 21 छोटे-बड़े मंदिर और भी हैं, जिनमें मां पार्वती, गणेश, कार्तिकेय, काली और नंदी की प्रतिमाएं हैं।

गर्भगृह में शिवलिंग स्थापित है और जलाभिषेक के लिए विशेष प्रबंध हैं। मंदिर का गर्भगृह हमेशा गीला रहता है, क्योंकि यहां जलाभिषेक निरंतर होता है। यह भारत का वह दुर्लभ मंदिर है जहां कोई भी भक्त शिवलिंग को छू सकता है और जलाभिषेक कर सकता है।

यहां शिव को वैद्य रूप में पूजा जाता है, और यह विश्वास है कि यहां आने वाले रोगों से मुक्ति पाते हैं। शिखर बंधन के साथ की गई प्रार्थना शीघ्र फलदायी होता है। इस मंदिर में आने वाले भक्तों को बुरी शक्तियों से भी रक्षा होता है। बिना विश्राम के पैदल 120 किलोमीटर की यात्रा यह दर्शाती है कि श्रद्धा में कितनी शक्ति है।

देवघर में बाबा धाम के अतिरिक्त और भी कई धार्मिक व प्राकृतिक स्थल हैं। नंदन पहाड़ी- हरे-भरे जंगलों के बीच स्थित एक सुंदर प्राकृतिक स्थल है। टावर चौक बाजार- यहां से भक्त पूजा सामग्री और धार्मिक स्मृति चिह्न खरीद सकते हैं। त्रिकुट पर्वत- यहां रोपवे की सुविधा है और ऊपर से दृश्य मनोहारी होता है। सत्संग आश्रम- ठाकुर अनुकूलचंद्र द्वारा स्थापित यह आश्रम ध्यान और साधना के लिए प्रसिद्ध है।

देवघर केवल एक धार्मिक स्थल ही नहीं है, बल्कि एक आध्यात्मिक ऊर्जा केंद्र है। यहां भक्तों को केवल पूजा का अनुभव नहीं होता है, बल्कि आत्मा की गहराइयों तक शांति मिलती है। हजारों वर्षों से यहां अनवरत पूजा होते आ रहा है, जिससे यह स्थल तीर्थों का तीर्थ बन चुका है।

बाबा बैद्यनाथ धाम एक ऐसा तीर्थस्थल है जहां शिव और शक्ति, दोनों की एक साथ उपासना होती है। यह भारत के धार्मिक और सांस्कृतिक वैभव का अद्वितीय प्रतीक है। यहां की पौराणिकता, वास्तुकला, परंपरा और आस्था का संगम इसे सनातन संस्कृति की जीवंत धरोहर बनाता है। श्रद्धालु जब “जय बाबा बैद्यनाथ” के उद्घोष के साथ शिवलिंग का अभिषेक करते हैं, तब उनका रोम-रोम पवित्रता से भर उठता है। 



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