आभा सिन्हा, पटना
भारतीय संस्कृति में रुद्राक्ष का अत्यंत पावन स्थान है। शिवपुराण, पद्मपुराण और देवीभागवत जैसे ग्रंथों में रुद्राक्ष की उत्पत्ति, उसका महत्व तथा उसकी शक्ति का विशद वर्णन मिलता है। रुद्राक्ष केवल एक बीज नहीं है, बल्कि एक दिव्य ऊर्जा का वाहक है जो साधक को आध्यात्मिक और भौतिक दोनों स्तरों पर उन्नति प्रदान करता है।
उन्नीस मुखी रुद्राक्ष में उन्नीस प्राकृतिक रेखाएं (मुख) होती हैं, जो उसके ऊपरी सिरे से निचले सिरे तक जाती हैं। यह रुद्राक्ष आमतौर पर गोल या अंडाकार होता है और इसका रंग हल्का भूरा से गहरा भूरा तक हो सकता है।
उन्नीस मुखी रुद्राक्ष को भगवान विष्णु का स्वरूप माना गया है। यह रुद्राक्ष स्वयं सृष्टि के पालनकर्ता की ऊर्जा से युक्त होता है। यह विशेष रूप से उन लोगों के लिए अनुशंसित है जो जीवन में संतुलन, सौभाग्य, वैभव, स्वास्थ्य और मानसिक शांति की कामना करते हैं।
शास्त्रों में वर्णन है कि जब शिवजी ने सृष्टि के कल्याण हेतु अपने नेत्र बंद किए और गहन ध्यान में लीन हुए, तब उनकी आंखों से जो अश्रु पृथ्वी पर गिरा, उनसे रुद्राक्ष उत्पन्न हुआ।
उन्नीस मुखी रुद्राक्ष को भगवान विष्णु के साथ-साथ ‘नरायण कवच’ के रूप में भी माना जाता है। इसे धारण करने वाला व्यक्ति जीवन के संकटों से सुरक्षित रहता है और धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष चारों पुरुषार्थों की सिद्धि करता है।
उन्नीस मुखी रुद्राक्ष का विशेष रूप से विष्णु उपासकों, भागवत साधकों, योगियों और तांत्रिकों द्वारा प्रयोग किया जाता है। इसे धारण करने से "सप्त चक्रों" (मूलाधार से सहस्रार तक) में ऊर्जा का संचार होता है। ध्यान और मंत्र जाप के समय इसका स्पर्श साधना को तीव्र बनाता है। मूल मंत्र :-
"ॐ वं विष्णवे नमः"
या
"ॐ नमो भगवते वासुदेवाय"
इन मंत्रों का 108 बार जाप कर रुद्राक्ष को सिद्ध किया जाता है।
उन्नीस मुखी रुद्राक्ष से तनाव, चिंता, भय और मानसिक अशांति से मुक्ति मिलता है। स्मरण शक्ति और ध्यान केंद्रित करने की क्षमता में वृद्धि होता है। व्यवसाय, नौकरी, राजनीति, शिक्षा, प्रतियोगिता, निवेश जैसे क्षेत्रों में सफलता प्राप्त होता है। पैतृक संपत्ति, कोर्ट-कचहरी, टैक्स और कानून संबंधी विवादों में विजय मिलता है। साधक में धर्म, दया, क्षमा और सत्य का भाव जागृत होता है। आत्मा की शुद्धि और मोक्ष की दिशा में गति मिलता है। लीवर, हृदय, ब्लड प्रेशर, थायरॉइड जैसे रोगों में सहायक होता है। रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाता है और शरीर को ऊर्जावान बनाए रखता है।
उन्नीस मुखी रुद्राक्ष विद्यार्थी को एकाग्रता, स्मृति शक्ति और परीक्षा में सफलता के लिए, व्यापारी को आर्थिक समृद्धि, नए अवसरों की प्राप्ति के लिए, आध्यात्मिक साधक को ध्यान में सफलता, दिव्यता की अनुभूति के लिए, नेता/प्रशासक को प्रभावशीलता, निर्णय क्षमता, जनसमर्थन के लिए, रोगी को स्वास्थ्य में सुधार, रोगों से राहत के लिए धारण करना चाहिए ।
उन्नीस मुखी रुद्राक्ष सोमवार, गुरुवार या एकादशी के दिन विष्णु या शिव पूजा के दिन गंगाजल, कच्चा दूध, शुद्ध घी, मधु, पंचामृत, पीतवस्त्र, तुलसी पत्ते, स्फटिक माला में सुबह स्नान कर स्वच्छ पीले वस्त्र धारण कर, पूजन स्थान को गंगाजल से शुद्ध कर, रुद्राक्ष को पंचामृत से शुद्ध कर और गंगाजल से धो कर, दीपक जला कर, भगवान विष्णु की प्रतिमा या चित्र के सामने रुद्राक्ष रख दें। “ॐ नमो भगवते वासुदेवाय” मंत्र का 108 बार जाप करने के बाद रुद्राक्ष को दाहिने हाथ में या गले में रुद्राक्ष की माला में धारण करना चाहिए ।
वर्तमान समय में रुद्राक्ष की भारी मांग के कारण बाजार में नकली रुद्राक्ष की भरमार है। इसलिए रुद्राक्ष खरीदते समय प्रमाणिक विक्रेता से ही खरीदना चाहिए ।
उन्नीस मुखी रुद्राक्ष को जल में डालने पर डूब जाता है। हर मुख स्पष्ट, गहरे और पृथक होता हैं। X-ray या C.T. स्कैन से इसकी संरचना जांचा जा सकता है। लैब सर्टिफिकेट (Govt. approved) अवश्य लेना चाहिए।
वैज्ञानिक अनुसंधानों से भी यह सिद्ध हुआ है कि रुद्राक्ष के बीज में विद्युत चुम्बकीय शक्ति होता है जो हृदय गति, रक्तचाप और मस्तिष्क की तरंगों को संतुलित करता है। यह रुद्राक्ष "bio-electric impulses" को स्थिर करता है। मस्तिष्क के बाएं और दाएं गोलार्द्ध के बीच संतुलन बनाता है। इससे ध्यान, संतुलन और मानसिक शांति में वृद्धि होता है।
तांत्रिकों के अनुसार, उन्नीस मुखी रुद्राक्ष को विशेष यंत्रों में स्थापित किया जाता है ताकि देवी लक्ष्मी और विष्णु की कृपा प्राप्त हो। यह लक्ष्मी तंत्र, श्रीविद्या साधना और नवनाथ परंपरा में भी उपयोग किया जाता है। "धनाकर्षण यंत्र" में इसे मध्य बिंदु में स्थापित किया जाता है। इसे जल में प्रवाहित कर व्यापारी अपने दुकानों में छिड़कते हैं। रक्षा कवच और तांत्रिक बंधन तोड़ने में भी सहायक है।
महाराष्ट्र के एक संत रामदास जी ने जब उन्नीस मुखी रुद्राक्ष धारण किया, तो उनके भक्तों के बीच एक दिव्य आभा फैल गई। उनकी वाणी में ऐसी शक्ति आई कि हजारों लोग उनके प्रवचन से आत्मज्ञान प्राप्त करने लगे।
गुजरात के एक युवा व्यापारी ने उन्नीस मुखी रुद्राक्ष धारण करने के बाद अपने छोटे कारोबार को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहुंचाया। उन्होंने यह अनुभव किया कि निर्णय लेने की शक्ति और आत्मविश्वास में जबरदस्त वृद्धि हुई।
उन्नीस मुखी रुद्राक्ष धारक को शराब, मांस, झूठ, व्यभिचार आदि से दूरी बनाकर रखना चाहिए। रुद्राक्ष को शौचालय या अपवित्र स्थान पर नही रखना चाहिए। सोते समय, स्नान करते समय या यौन संबंध के दौरान इसे उतार देना चाहिए। रुद्राक्ष को नियमित रूप से गंगाजल या तुलसीजल से शुद्ध करना चाहिए।
उन्नीस मुखी रुद्राक्ष केवल एक धार्मिक आभूषण नहीं है, यह एक ऐसा जीवंत ऊर्जा स्रोत है जो जीवन के हर पहलू भौतिक, मानसिक, आध्यात्मिक को समृद्ध बनाता है। यह रुद्राक्ष भगवान विष्णु की कृपा का प्रत्यक्ष माध्यम है जो साधक को सौभाग्य, सफलता, संतुलन और शांति की दिशा में अग्रसर करता है।
