शिक्षक दिवस - भारतीय संस्कृति में शिक्षक को ईश्वर के समकक्ष माना जाता है

Jitendra Kumar Sinha
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भारत में 5 सितम्बर का दिन “शिक्षक दिवस (Teacher’s Day)” के रूप में मनाया जाता है। यह दिन महान दार्शनिक, विद्वान, शिक्षक और भारत के दूसरे राष्ट्रपति डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन के जन्मदिवस पर मनाया जाता है। उनका जीवन शिक्षा और ज्ञान का अद्भुत प्रतीक है। जब उनसे उनके जन्मदिन पर भव्य आयोजन करने की इच्छा जताई गई, तो उन्होंने कहा कि यदि यह दिन शिक्षक दिवस के रूप में मनाया जाए, तो उन्हें सबसे अधिक खुशी होगी। तभी से 5 सितम्बर भारतीय समाज में शिक्षा, शिक्षक और गुरुत्व की गरिमा को याद करने का अवसर बन गया।

भारतीय संस्कृति में शिक्षक को ईश्वर के समकक्ष माना गया है। “गुरु ब्रह्मा, गुरु विष्णु, गुरु देवो महेश्वरः”  इस श्लोक से स्पष्ट है कि गुरु को सृष्टि के रचयिता, पालनकर्ता और संहारकर्ता के रूप में पूजा गया है। शिक्षक केवल ज्ञान नहीं देते हैं, बल्कि मूल्य, आदर्श और संस्कार भी प्रदान करते हैं।

गुरुकुल प्रणाली में विद्यार्थी गुरु के आश्रम में रहकर शिक्षा प्राप्त करते थे। गुरु अपने शिष्य को जीवन के हर क्षेत्र में दक्ष बनाते थे,  युद्ध कौशल से लेकर वेद, गणित, खगोलशास्त्र और नीति शास्त्र तक। शिक्षा केवल पुस्तकीय ज्ञान तक सीमित नहीं थी, बल्कि जीवन जीने की कला का प्रशिक्षण था।

मुस्लिम शासन और फिर अंग्रेजों के आगमन के बाद शिक्षा व्यवस्था में बदलाव आया। अंग्रेजों ने औपनिवेशिक शासन को सुदृढ़ करने के लिए आधुनिक शिक्षा पद्धति लागू की। इसके बावजूद कई महान शिक्षक और समाज सुधारक उभरे,  राजा राममोहन राय, ईश्वरचंद्र विद्यासागर, महात्मा ज्योतिबा फुले, सावित्रीबाई फुले, स्वामी विवेकानंद आदि।

आज शिक्षा प्रणाली ने डिजिटल, तकनीकी और वैश्विक दृष्टिकोण अपना लिया है। अब शिक्षक का दायरा केवल कक्षा तक सीमित नहीं है, बल्कि ऑनलाइन शिक्षा, वर्चुअल कक्षाओं और आधुनिक संसाधनों के साथ विस्तृत हो गया है।

डॉ. राधाकृष्णन न केवल एक महान शिक्षक थे, बल्कि दार्शनिक, लेखक और राजनेता भी थे। उनका मानना था कि शिक्षा का उद्देश्य केवल रोजगार प्राप्त करना नहीं है, बल्कि जीवन को बेहतर बनाना और समाज में सकारात्मक बदलाव लाना है। उन्होंने भारतीय संस्कृति को पश्चिमी जगत में प्रतिष्ठा दिलाई। वे हमेशा छात्रों को प्रश्न पूछने, सोचने और तर्क करने के लिए प्रेरित करते थे। उनके विचार आज भी प्रासंगिक हैं, शिक्षा का उद्देश्य व्यक्ति के अंदर मानवीय मूल्यों को जगाना है। शिक्षक वह दीपक है जो दूसरों को रोशनी देने के लिए स्वयं जलता है।

शिक्षक समाज का दर्पण होते हैं। वे आने वाली पीढ़ियों को आकार देते हैं। राजनीति में हम चाणक्य जैसे आचार्य को देखते हैं, जिन्होंने चंद्रगुप्त मौर्य को प्रशिक्षित कर अखंड भारत की नींव रखी। विज्ञान में ए.पी.जे. अब्दुल कलाम जैसे वैज्ञानिक और शिक्षक ने देश को मिसाइल तकनीक और राष्ट्रपति पद तक गौरवान्वित किया। साहित्य में रामधारी सिंह दिनकर, प्रेमचंद जैसे साहित्यकारों ने शिक्षा और समाज को नई दिशा दी।

5 सितम्बर को पूरे भारत में स्कूलों, कॉलेजों और विश्वविद्यालयों में शिक्षक दिवस बड़े उत्साह से मनाया जाता है। छात्र अपने शिक्षकों के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करते हैं। शिक्षकों का सम्मान किया जाता है, सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं। कहीं छात्र स्वयं शिक्षक की भूमिका निभाकर “शिक्षण का अनुभव” प्राप्त करते हैं। यह दिन गुरु-शिष्य परंपरा को मजबूत करता है।

आज शिक्षा का स्वरूप तेजी से बदल रहा है। डिजिटल क्रांति के तहत ऑनलाइन कक्षाएं, स्मार्ट क्लास और ई-लर्निंग प्लेटफॉर्म मिला है। नई शिक्षा नीति (NEP 2020) के अंतर्गत कौशल आधारित शिक्षा, बहुभाषी शिक्षण और शोध पर जोर दिया गया है। वैश्विक दृष्टिकोण से भारतीय छात्र अब विश्व स्तर पर प्रतिस्पर्धा कर रहे हैं। इन बदलावों में भी शिक्षक की भूमिका सबसे महत्वपूर्ण है। वे तकनीक के साथ कदम मिलाकर शिक्षा को सरल और रोचक बना रहे हैं।

एक आदर्श शिक्षक में कुछ गुण होने चाहिए, धैर्य- हर छात्र अलग है, उनकी गति को समझना जरूरी। सहानुभूति- छात्रों की समस्याओं को समझकर समाधान देना। नवाचार- शिक्षण पद्धति में नए प्रयोग करना। और प्रेरणा का स्रोत- केवल पढ़ाना नहीं, बल्कि प्रेरित करना।

भारतीय इतिहास और पौराणिक कथाएँ गुरु-शिष्य की महानता से भरी हैं। एकलव्य-  जिन्होंने द्रोणाचार्य की मूर्ति बनाकर धनुर्विद्या सीखी और गुरु दक्षिणा में अपना अंगूठा अर्पित कर दिया। राम और विश्वामित्र- गुरु ने राम और लक्ष्मण को दिव्य अस्त्र-शस्त्रों का ज्ञान दिया। कृष्ण और संदीपनी- भगवान कृष्ण ने अपने गुरु संदीपनी से शिक्षा पाई और गुरु दक्षिणा में उनके पुत्र को यमलोक से वापस लाए। यह उदाहरण बताता है कि शिक्षा केवल पुस्तकों से नहीं, बल्कि श्रद्धा, समर्पण और अनुशासन से मिलती है।

आज के शिक्षकों के सामने कई चुनौतियाँ हैं। प्रौद्योगिकी का दबाव- ऑनलाइन शिक्षा में विद्यार्थियों की रुचि बनाए रखना। पढ़ाई का व्यावसायीकरण- शिक्षा संस्थानों का मुनाफा आधारित होना। छात्रों का तनाव- प्रतियोगिता और कैरियर की दौड़ से मानसिक दबाव। मूल्य शिक्षा का अभाव- केवल अंक और डिग्री पर जोर।

शिक्षा को केवल परीक्षा और अंक तक सीमित न रखना चाहिए। शिक्षकों को निरंतर प्रशिक्षण मिले ताकि वे नई तकनीक और तरीकों से लैस रहें। शिक्षा में नैतिकता, पर्यावरण और सामाजिक जिम्मेदारी को शामिल किया जाना चाहिए। माता-पिता और समाज को भी शिक्षा में शिक्षक का सहयोग करना चाहिए।

शिक्षक दिवस केवल एक औपचारिक दिन नहीं है, बल्कि शिक्षा और ज्ञान की महत्ता को समझने का अवसर है। डॉ. राधाकृष्णन की तरह यह मानना होगा कि शिक्षा केवल रोजगार का साधन नहीं है, बल्कि जीवन का प्रकाश है। शिक्षक उस दीपक की तरह हैं जो खुद जलकर दूसरों का मार्ग प्रकाशित करते हैं।


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