इक्कीस मुखी रुद्राक्ष

Jitendra Kumar Sinha
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आभा सिन्हा, पटना

भारतीय संस्कृति में रुद्राक्ष को केवल एक बीज या माला नहीं माना गया है, बल्कि यह भगवान शिव की कृपा का मूर्त स्वरूप है। प्रत्येक रुद्राक्ष की मुख संख्या उसके विशेष प्रभाव और दिव्यता का संकेत देती है। इन्हीं में सबसे दुर्लभ और चमत्कारिक रुद्राक्षों में से एक है “इक्कीस मुखी रुद्राक्ष”। यह रुद्राक्ष अपने अंदर वह शक्ति समेटे हुए है, जिसे पाने के लिए ऋषि-मुनि सदियों तक तप करते रहे हैं।

इक्कीस मुखी रुद्राक्ष में 21 प्राकृतिक रेखाएं (मुख) होती हैं, जो इसके ऊपरी भाग से नीचे तक स्पष्ट रूप से उकेरी जाती हैं। यह अत्यंत दुर्लभ रुद्राक्ष नेपाल, इंडोनेशिया और कुछ विशेष हिमालयी क्षेत्रों में पाया जाता है। आकार में यह अपेक्षाकृत बड़ा, कठोर तथा गहरे भूरे से लाल रंग का होता है।

इक्कीस मुखी रुद्राक्ष की उत्पत्ति स्वर्ग के देवताओं की कृपा से माना जाता है। इसे “कुबेर रुद्राक्ष” भी कहा जाता है। इसे धारण करने वालों को राजाओं जैसा वैभव मिलता है।

इक्कीस मुखी रुद्राक्ष को कुबेर (धन और ऐश्वर्य के देवता) और भगवान शिव की कृपा का संयुक्त फल माना गया है। इसे धारण करने से साधक को अध्यात्मिक उन्नति, चित्त की स्थिरता, सात्त्विक विचारों की वृत्ति, भूत-भविष्य-दृष्टि की प्राप्ति, मृत्यु के भय से मुक्ति प्राप्त होता है। यह रुद्राक्ष साधक को सच्चे अर्थों में आध्यात्मिक सम्राट बना देता है।

शिव पुराण, देवी भागवत, और पद्म पुराण जैसे ग्रंथों में रुद्राक्ष के प्रभावों का उल्लेख विस्तार से मिलता है। इन ग्रंथों के अनुसार, "जो साधक इक्कीस मुखी रुद्राक्ष धारण करता है, वह भगवान शिव की सबसे कृपापात्र आत्मा बनता है और देवताओं में भी उसका गिनती होता है।"

कुछ मान्यताएं यह भी है कि इसे धारण करने से पुण्य के समान 21 यज्ञों का फल प्राप्त होता है। 21 जन्मों के पाप क्षय हो जाता हैं। साधक को “कुबेर तुल्य” ऐश्वर्य का प्राप्ति होता है।

ज्योतिष शास्त्र में माना गया है कि इक्कीस मुखी रुद्राक्ष विशेषतः शनि, राहु, और केतु जैसे अशुभ ग्रहों के दुष्प्रभावों को समाप्त करता है। यह रुद्राक्ष ग्रहों की विपरीत चाल से उत्पन्न अकस्मात हानि, राजदोष, कोर्ट केस, स्वास्थ्य हानि, व्यापारिक विफलता जैसी समस्याओं से मुक्ति दिलाता है। विशेषकर जिन लोगों की कुंडली में शनि की साढ़ेसाती या ढैय्या चल रहा हो, उनके लिए यह रुद्राक्ष बेहद लाभकारी होता है।

आधुनिक विज्ञान ने भी यह माना है कि रुद्राक्ष एक विशेष प्रकार का विद्युत-चुंबकीय ऊर्जा को ग्रहण और संप्रेषण करता है। इक्कीस मुखी रुद्राक्ष का कंपन-स्तर अत्यधिक ऊर्जावान होता है, जो मस्तिष्क की तरंगों को संतुलित करता है, चित्त को शांति प्रदान करता है, नकारात्मक ऊर्जा को हटाता है और हार्मोनल असंतुलन को सुधारता है। इसलिए आजकल वैज्ञानिक भी इसे ध्यान, योग और ध्यान चिकित्सा (Meditation Therapy) में प्रयोग करने लगे हैं।

इक्कीस मुखी रुद्राक्ष अत्यंत शक्तिशाली होने के कारण इसे धारण करने के लिए कुछ विशेष नियमों का पालन करना आवश्यक होता है। इक्कीस मुखी रुद्राक्ष धारण करने का शुभ दिन सोमवार, पूर्णिमा या महाशिवरात्रि होता है। इसे गले या दाहिने हाथ में (सोने या पंचधातु में) धारण करना चाहिए। इक्कीस मुखी रुद्राक्ष का मंत्र है :- 

“ॐ ह्रीं हूम नमः।”

“ॐ श्रीं क्लीं कुबेराय नमः।”

इक्कीस मुखी रुद्राक्ष धारण करने से पहले  प्रातः स्नान कर, स्वच्छ वस्त्र धारण कर, शिवलिंग को जल से अभिषेक कर, रुद्राक्ष को गंगाजल या दूध से शुद्ध कर, गाय के घी का दीपक और चंदन, फूल, अक्षत चढ़ा कर
मंत्र जप कर रुद्राक्ष धारण करना चाहिए ।

इक्कीस मुखी रुद्राक्ष व्यापारी- धन लाभ, स्थिरता, निवेश में सफलता के लिए, राजनेता- पद, प्रतिष्ठा, जनस्वीकृति के लिए, साधक- सिद्धि प्राप्ति, चित्त स्थिरता के लिए, चिकित्सक/हीलर- रोगनाशक ऊर्जा, आभामंडल की शुद्धता के लिए, विद्यार्थी- उच्च स्मरण शक्ति, एकाग्रता के लिए धारण करता है।

इक्कीस मुखी रुद्राक्ष को गृह लक्ष्मी और सौभाग्यवती स्त्रियों के लिए भी अत्यंत लाभकारी माना गया है। यह गृह क्लेश को समाप्त करता है, वैवाहिक जीवन में प्रेम बढ़ाता है, संतान सुख देता है, स्त्रियों की मानसिक स्थिरता और hormonal संतुलन बनाए रखता है। 

इक्कीस मुखी रुद्राक्ष को कुबेर का प्रतीक माना जाता है, इसलिए इसे धारण करने से अचानक धन प्राप्ति होता है, स्थायी धन स्रोत बनता है, बैंकर, रियल एस्टेट डीलर, उद्योगपति और शेयर बाजार से जुड़े लोगों के लिए यह अत्यंत लाभकारी होता है। विदेश यात्रा और अप्रत्याशित आय के मार्ग खुलता है।

रुद्राक्ष को कभी भी जूठे हाथों से न छुना चाहिए। शराब, मांस, तामसिक भोजन से दूरी बनाए रखना चाहिए। रुद्राक्ष पहन कर श्मशान, शौचालय आदि में न जाना चाहिए। नियमित रूप से जल और पंचामृत से शुद्ध करना चाहिए। दूसरों को अपना रुद्राक्ष पहनने के लिए नहीं देना चाहिए। 

आजकल बाजार में नकली रुद्राक्ष की भरमार है। असली रुद्राक्ष की पहचान करने के लिए रुद्राक्ष को जल में डुबोने पर रुद्राक्ष जल में डूब जायेगा। रुद्राक्ष के सभी 21 मुख स्पष्ट होना चाहिए। छेद प्राकृतिक होना चाहिए, कृत्रिम नहीं। विशेषज्ञ प्रमाणपत्र (Authenticity Certificate) के साथ रुद्राक्ष लेना चाहिए। रुद्राक्ष को जलाने पर इससे कोई दुर्गंध नहीं आता है।

इक्कीस मुखी रुद्राक्ष मात्र एक धार्मिक प्रतीक नहीं है, बल्कि यह मानव चेतना को दिव्यत्व के उच्चतम शिखर तक पहुंचाने का एक साधन है। यह उन लोगों के लिए है, जो जीवन को केवल सांस लेने की प्रक्रिया नहीं, बल्कि ध्यान, ऊर्जा, साधना और जागरण का योग मानते हैं।

भारतीय संस्कृति में कहा गया है कि "रुद्राक्ष धारयेत् यो वै शिवस्यानुग्रहं लभेत्।" अर्थात जो रुद्राक्ष को श्रद्धा और विधिपूर्वक धारण करता है, उसे भगवान शिव की कृपा अवश्य प्राप्त होता है।



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