6 सितम्बर, 2025 को है- “अनंत चतुर्दशी”

Jitendra Kumar Sinha
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आभा सिन्हा, पटना

भारतीय संस्कृति में व्रत, उपवास और पर्व केवल धार्मिक अनुष्ठान मात्र नहीं हैं, बल्कि जीवन के गूढ़ दर्शन को समझने का माध्यम हैं। भाद्रपद शुक्ल चतुर्दशी को मनाया जाने वाला अनंत चतुर्दशी ऐसा ही एक विशेष पर्व है, जिसमें श्रद्धालु भगवान विष्णु के अनंत स्वरूप की पूजा करते हैं। इस दिन लोग चौदह गांठों वाला अनंत सूत्र धारण करते हैं, जिसे "अनंत डोर" कहा जाता है। इस सूत्र की प्रत्येक गांठ चौदह लोकों का प्रतीक है और भगवान विष्णु के नामों से जुड़ी है।

इस वर्ष अनंत चतुर्दशी 6 सितंबर 2025, शनिवार को पड़ रही है। रवियोग और धनिष्ठा नक्षत्र का शुभ संयोग इसे और भी पावन बना रहा है। इस दिन श्रद्धालु अनंत सूत्र बांधकर अपने जीवन में सुख, समृद्धि और कल्याण की कामना करेंगे।

अनंत चतुर्दशी केवल एक व्रत ही नहीं, बल्कि अनंत भगवान विष्णु के साथ आत्मा का बंधन है। इसका महत्व कई दृष्टियों से समझा जा सकता है। भगवान विष्णु के अनंत रूप की आराधना का दिन है। श्रद्धालु भगवान को पीले एव गुलाबी पुष्प, तुलसी और भृंगराज पत्र अर्पित करते हैं। चौदह गांठों वाला अनंत सूत्र इस बात का प्रतीक है कि संसार में जो कुछ भी है, वह विष्णु के अनंत स्वरूप का अंश है। परिवार के लोग मिलकर पूजा करते हैं, साथ बैठकर कथा सुनते हैं और सामूहिक रूप से अनंत सूत्र बांधते हैं। इससे सामाजिक बंधन मजबूत होते हैं। महाभारत कालीन कथा के अनुसार जब पांडव राज्यच्युत हुए तो युधिष्ठिर ने भगवान श्रीकृष्ण की आज्ञा से यह व्रत किया था। फलस्वरूप उन्हें हस्तिनापुर का राज्य पुनः प्राप्त हुआ।

अनंत चतुर्दशी का सबसे प्रसिद्ध प्रसंग महाभारत से जुड़ा है। पांडवों के वनवास और राज्य हरण की पीड़ा से दुखी युधिष्ठिर ने जब श्रीकृष्ण से समाधान पूछा, तो उन्होंने अनंत व्रत करने का उपदेश दिया। युधिष्ठिर ने चौदह वर्षों तक इस व्रत को पूरी निष्ठा से किया। इसके फलस्वरूप उन्हें हस्तिनापुर का राज्य पुनः मिला। यह कथा इस बात को दर्शाता है कि श्रद्धा, धैर्य और व्रत का पालन कठिन परिस्थितियों को भी बदल सकता है।



एक अन्य कथा के अनुसार, राजा सुमंत की पुत्री सुशीला ने अपने पति से अलग होकर अनंत चतुर्दशी का व्रत किया। उसने चौदह गांठों वाला सूत्र बांधा और विष्णुजी की उपासना की। फलस्वरूप उसका जीवन सुख, समृद्धि और सौभाग्य से भर गया। यह कथा इस बात का प्रतीक है कि अनंत व्रत स्त्रियों के लिए भी उतना ही कल्याणकारी है जितना पुरुषों के लिए।

एक पौराणिक मान्यता यह भी है कि भगवान विष्णु का अनंत स्वरूप शेषनाग के रूप में समुद्र के गर्भ में स्थित है। इस दिन समुद्र की पूजा भी की जाती है और इसे जल तत्व से जुड़े अनंत स्वरूप की आराधना माना जाता है।

अनंत सूत्र केवल एक डोर नहीं है, बल्कि गहन प्रतीकवाद का द्योतक है। चौदह गांठें चौदह लोकों का प्रतीक हैं भूर्, भुवः, स्वः, महः, जनः, तपः, सत्यं, अतल, वितल, सुतल, तलातल, महातल, रसातल और पाताल। 

ज्योतिषीय मान्यता है कि राशि के अनुसार रंग चुनने से अधिक फल की प्राप्ति होती है। जैसे- मेष और सिंह  वाले लोग के लिए लाल, वृष और तुला वाले लोग के लिए सफेद, मिथुन और कन्या वाले लोग के लिए हरा, वृश्चिक वाले लोग के लिए गहरा लाल, धनु और मीन राशि वाले लोग के लिए पीला, मकर और कुंभ राशि वाले लोग के लिए नीला।  पुरुष दाहिने हाथ पर और महिलाएं बाएं हाथ पर यह सूत्र बांधती हैं। यह सूत्र हर दिन स्मरण कराता है कि जीवन के हर पहलू में भगवान विष्णु का अनंत आशीर्वाद साथ है।

अनंत चतुर्दशी की पूजा विधि अत्यंत सरल, किन्तु पूर्ण श्रद्धा और निष्ठा से करने योग्य है। चौदह गांठों वाला अनंत सूत्र, भगवान विष्णु की मूर्ति या चित्र, गुलाबी और पीले पुष्प, तुलसी पत्र और भृंगराज पत्र, दीपक, धूप, नैवेद्य, पंचामृत और प्रसाद। प्रातः स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण कर, पूजा स्थल पर भगवान विष्णु की प्रतिमा या चित्र स्थापित कर, दीपक, धूप और नैवेद्य अर्पित कर, गुलाबी-पीले पुष्प और तुलसी पत्र अर्पित कर, अनंत सूत्र को चौदह गांठों सहित भगवान को अर्पित कर फिर अपने हाथ पर धारण करना चाहिए। अनंत कथा का श्रवण कर, प्रसाद ग्रहण कर व्रत को पूरा करना चाहिए।

इस वर्ष अनंत चतुर्दशी का पर्व और भी पावन इसलिए है क्योंकि  चतुर्दशी तिथि 6 सितंबर को रात 12:57 बजे तक रहेगा। रवियोग रात 11:17 बजे तक रहेगा और अभिजीत मुहूर्त दोपहर 11:23 से 12:13 बजे तक होगा। इन संयोगों में पूजा करने से व्रती को विशेष फल प्राप्त होता है।

अनंत चतुर्दशी का पर्व केवल व्यक्तिगत साधना ही नहीं है, बल्कि सामाजिक एकता का भी प्रतीक है। गाँव-गाँव और शहरों में लोग सामूहिक रूप से पूजा करते हैं। महिलाएं घर-घर जाकर अनंत कथा सुनाती हैं। कहीं-कहीं मेले और भजन संध्या का आयोजन होता है।

इस पर्व का एक विशेष पक्ष यह भी है कि गणेश विसर्जन भी कई स्थानों पर इसी दिन किया जाता है। महाराष्ट्र और मध्यप्रदेश में अनंत चतुर्दशी गणेशोत्सव के समापन के रूप में विख्यात है। इस दिन गणपति बप्पा को विसर्जित कर लोग "अगले बरस तू जल्दी आ" का आह्वान करते हैं।

आज के आधुनिक जीवन में भी अनंत चतुर्दशी का महत्व उतना ही है। व्यस्तता और भाग-दौड़ के बीच यह व्रत धैर्य, संयम और आस्था की याद दिलाता है। जब अनंत सूत्र बांधते हैं, तो यह जीवन में सकारात्मकता और आत्मविश्वास को बढ़ाता है। पूजा और कथा से तनाव कम होता है। परिवार एक साथ बैठकर व्रत करता है। समाज में एकजुटता और धार्मिक सौहार्द बढ़ता है।

अनंत चतुर्दशी का व्रत केवल धार्मिक अनुष्ठान नहीं है, बल्कि एक जीवन दर्शन है। यह सिखाता है कि जीवन में चाहे कितनी भी कठिनाइयाँ आएं, श्रद्धा और संयम से हर संकट को पार कर सकते हैं। चौदह गांठें यह याद दिलाती हैं कि सम्पूर्ण ब्रह्मांड एक सूत्र में बंधा हुआ है और उसका केंद्र भगवान विष्णु हैं। इस वर्ष 6 सितंबर को जब श्रद्धालु अपने हाथों पर अनंत सूत्र बांधेंगे, तो वे न केवल एक परंपरा निभाएंगे, बल्कि जीवन के हर पहलू में अनंत विश्वास, आस्था और आशा को भी आत्मसात करेंगे। यही इस पर्व का वास्तविक संदेश है।



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