बिहार हमेशा से भारतीय राजनीति का केन्द्र रहा है। यहाँ की राजनीति न केवल जातीय समीकरणों पर आधारित रहती है बल्कि विकास, रोज़गार और बुनियादी सुविधाओं पर भी जनता का ध्यान केंद्रित रहता है। चुनावी मौसम में यहाँ हर पार्टी बड़े-बड़े वादे करती है, परंतु जमीनी स्तर पर जनता की समझ और अनुभव से ही तय होता है कि सत्ता किसके हाथ में जाएगी। 2025 का विधानसभा चुनाव इसका अपवाद नहीं है। इस बार भी सत्ता पक्ष और विपक्ष आमने-सामने हैं, लेकिन समीकरण कुछ बदला हुआ है।
राजद नेता तेजस्वी यादव ने "वोटर अधिकार यात्रा" के माध्यम से जनसंपर्क की बड़ी पहल की है। इस यात्रा का उद्देश्य लोगों से सीधे जुड़ना और अपने पक्ष में माहौल बनाना है। लेकिन सवाल उठता है कि क्या यह यात्रा वास्तव में जनता की भावनाओं को समझने में सफल हो रही है या फिर यह केवल प्रचार का साधन बनकर रह जाएगी?
तेजस्वी यादव का मकसद है जनता को यह विश्वास है दिलाना कि वे युवाओं के नेता हैं। रोजगार, शिक्षा और स्वास्थ्य को एजेंडा बनाने की कोशिश। नरेन्द्र मोदी और नीतीश कुमार पर व्यक्तिगत हमला करके सत्ता विरोधी लहर भुनाने का प्रयास। लेकिन धरातल पर देखा जाए तो जनता नरेन्द्र मोदी के राष्ट्रवादी छवि और नीतीश कुमार के विकास कार्यों को भुला नहीं पा रही है। यही कारण है कि तेजस्वी के आरोपों का असर वैसा नहीं दिख रहा है जैसा उन्होंने सोचा था।
तेजस्वी यादव और राहुल गांधी का चुनावी रवैया इस बार कई जगह जनता को खटक रहा है। नरेन्द्र मोदी पर व्यक्तिगत टिप्पणी करना विपक्ष के लिए आत्मघाती साबित हो रहा है। जब जनता को उनके काम से शिकायत नहीं है तो केवल आलोचना से विश्वास नहीं जीता जा सकता है। नरेन्द्र मोदी पर हमला करने से विपक्ष की नकारात्मक छवि बनती है। लोग इसे राष्ट्र के खिलाफ बयान मानने लगते हैं। वोटर यह सोचने पर मजबूर हो जाता है कि विपक्ष के पास अपना विजन नहीं है।
राहुल गांधी के बयान कई बार विपक्ष की मेहनत पर पानी फेर देता है। ट्रंप और अमेरिका जैसे मुद्दों को ज्यादा तवज्जो देना, जबकि बिहार की जनता बेरोजगारी, महंगाई और बुनियादी सुविधाओं पर चर्चा चाहती है, जनता के स्वाभिमान पर चोट जैसा लगता है।
नीतीश कुमार ने अपने कार्यकाल में सड़क, बिजली, शिक्षा और महिला सशक्तिकरण पर काम किया है। भले ही कई खामियाँ रही हों, लेकिन जनता इन कामों को पूरी तरह भूल नहीं सकती। यही कारण है कि एनडीए को आज भी जनता के बीच विकास की विश्वसनीयता हासिल है।
नीतीश कुमार के उपलब्धि में सड़क और पुलों का जाल बिछाना। हर घर तक बिजली पहुँचाना। शराबबंदी जैसे बड़े सामाजिक फैसले। शिक्षा में साइकिल योजना और छात्रवृत्ति जैसी योजनाएँ शामिल है।
भारत की राजनीति में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की छवि सबसे बड़ा चुनावी मुद्दा बन चुका है। बिहार में भी मोदी का नाम ही वोट खींचने का काम करता है। विपक्ष यदि इस छवि को चुनौती देने की कोशिश करता है, तो वह जनता की भावनाओं को आहत करता है।
नरेन्द्र मोदी राष्ट्रहित सर्वोपरि रखने वाले नेता हैं। गरीबों के लिए योजनाएँ जैसे उज्ज्वला, आयुष्मान भारत, पीएम आवास योजना। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत की बढ़ती ताकत का प्रतीक।
नरेन्द्र मोदी पर सवाल उठाने के बजाय यदि विपक्ष बिहार की समस्याओं पर केंद्रित रहता तो शायद जनता उससे जुड़ पाती। लेकिन ऐसा न करके उसने एनडीए की राह और आसान कर दी है।
जब बिहार की गलियों, कस्बों और गाँवों में जाएंगे तो पाएंगे कि लोग आज भी बुनियादी सुविधाओं को महत्व देते हैं। वे रोजगार और शिक्षा चाहते हैं, लेकिन साथ ही सुरक्षा, स्थिरता और राष्ट्रहित भी उनकी प्राथमिकता है। यही कारण है कि विपक्ष का नकारात्मक एजेंडा असरदार नहीं हो पा रहा।
जनता का दृष्टिकोण है सड़क पर बुलेट चलाने से उत्साह तो आता है, लेकिन बेरोजगारी का हल नहीं निकलता। बड़े भाषणों से ज्यादा लोग छोटे-छोटे कामों को महत्व देते हैं। जातीय राजनीति की जगह अब युवा रोजगार और शिक्षा पर चर्चा करना चाहता है।
राजद, कांग्रेस और अन्य दलों का गठबंधन इस बार मतदाताओं के बीच विश्वास की कमी झेल रहा है। तेजस्वी की मेहनत को राहुल गांधी के अनगढ़ बयानों से नुकसान हो रहा है। साथ ही, कुछ नेताओं को लाना और उन्हें प्राथमिकता देना भी जनता को अच्छा नहीं लग रहा है।
अंदरूनी खींचतान भी कायम है। उम्मीदवारों को लेकर सहमति नहीं बन पाना। गठबंधन के भीतर सत्ता की दौड़। राष्ट्रीय बनाम क्षेत्रीय मुद्दों पर असहमति।
एनडीए अभी पूरी तरह से अपना पत्ता नहीं खोल रहा है। विपक्ष ने भले ही अपना एजेंडा सामने रख दिया हो, लेकिन एनडीए चुनाव के अंतिम चरणों में अपने बड़े हथियारों का इस्तेमाल करेगा। इसमें मोदी की रैलियाँ, नीतीश की उपलब्धियाँ और केंद्र की योजनाओं का प्रचार शामिल है।
एनडीए की संभावित चालें हैं विकास योजनाओं का सीधा प्रचार। मोदी की राष्ट्रवादी छवि का जोरदार इस्तेमाल। विपक्ष की गलतियों को जनता के सामने उभारना।
2025 के बिहार चुनाव में तस्वीर साफ दिख रही है। विपक्ष अपनी गलतियों से खुद को कमजोर कर रहा है, जबकि सत्ता पक्ष जनता की भावनाओं और विकास कार्यों पर आधारित रणनीति से मजबूत स्थिति में है। तेजस्वी यादव की मेहनत सराहनीय है, लेकिन राहुल गांधी के बयानों और मोदी पर व्यक्तिगत हमलों की वजह से जनता का विश्वास डगमगा रहा है। अंततः, बिहार की राजनीति एक बार फिर यह साबित कर रही है कि केवल नारों और बयानों से चुनाव नहीं जीते जा सकते। जनता जमीनी सच्चाई देखती है और उसी के अनुसार अपना फैसला करती है। इस बार भी यदि विपक्ष ने अपनी रणनीति नहीं बदली, तो पराजय निश्चित है और सत्ता पक्ष का पलड़ा भारी रहेगा।
