3 सितम्बर को आयुष्मान योग में - “कर्मा-धर्मा एकादशी व्रत”

Jitendra Kumar Sinha
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आभा सिन्हा, पटना

हिन्दू धर्म में वर्षभर में 24 एकादशियों का विधान है। हर एकादशी का अपना विशेष महत्व और फल है। इन सभी एकादशियों में भाद्रपद शुक्ल पक्ष की कर्मा-धर्मा एकादशी, जिसे पार्श्व परिवर्तनी एकादशी भी कहते हैं, अत्यंत पावन और फलदायी माना जाता है। इस वर्ष यह व्रत 3 सितंबर 2025 को आयुष्मान योग, रवियोग और अन्य शुभ संयोगों में मनाया जा रहा है। मान्यता है कि इस व्रत के पालन से पापों का नाश होता है, जीवन में धर्म और कर्म की जागृति होती है तथा मृत्यु के बाद बैकुंठ धाम की प्राप्ति होती है।

इस एकादशी को कर्मा-धर्मा इसलिए कहा जाता है क्योंकि यह व्रत मनुष्य को अच्छे कर्म और धर्म पालन की ओर प्रेरित करता है। इसे पार्श्व परिवर्तनी एकादशी भी कहते हैं, क्योंकि इस दिन भगवान विष्णु क्षीरसागर में शेषनाग की शैय्या पर विश्राम करते हुए करवट बदलते हैं। यह दिन चातुर्मास के मध्य में आता है और व्रत-नियम के पालन का विशेष महत्व रखता है।

इस वर्ष यह एकादशी और भी विशेष है क्योंकि इसमें कई शुभ संयोग बन रहा है। पूर्वाषाढ़ा नक्षत्र- यह नक्षत्र समृद्धि और दीर्घायु प्रदान करने वाला है। श्रीवत्स योग- यह योग हर तरह की बाधाओं को दूर करता है। आयुष्मान योग- इसका नाम ही जीवन में आयु, स्वास्थ्य और सुख-समृद्धि प्रदान करने वाला है। सौभाग्य योग- विशेषकर महिलाओं के लिए यह योग गृहस्थ जीवन में सुख, वैभव और मंगल का कारक है। रवियोग- यह योग सारे अशुभ को नष्ट कर केवल शुभ फल देने वाला होता है। इन सभी योगों का एकसाथ पड़ना इस व्रत को और भी फलदायी बना देता है। नहाय-खाय 2 सितंबर 2025, मंगलवार को होगा। व्रत 3 सितंबर 2025, बुधवार को रखा जाएगा। पारण (व्रत खोलना) 4 सितंबर 2025, द्वादशी तिथि को प्रातःकाल किया जाएगा।

कर्मा-धर्मा एकादशी से जुड़ी एक प्रसिद्ध कथा है। त्रेतायुग में बलि नामक दैत्यराज ने तीनों लोकों पर अधिकार कर लिया था। देवताओं ने भगवान विष्णु से रक्षा की प्रार्थना की। भगवान ने वामन अवतार धारण किया और बलि से तीन पग भूमि दान में मांगी। बलि ने सहर्ष स्वीकार किया। भगवान ने पहले पग से पृथ्वी, दूसरे से आकाश नाप लिया। तीसरे पग के लिए बलि ने स्वयं को समर्पित कर दिया। भगवान प्रसन्न होकर बलि को पाताल लोक का स्वामी बना दिया और वचन दिया कि वे चातुर्मास में शेषनाग की शैय्या पर सोते समय एकादशी को करवट बदलते हुए बलि के द्वार पर आएंगे। इसी घटना की स्मृति में इस एकादशी को पार्श्व परिवर्तनी एकादशी कहा जाता है।

कर्मा-धर्मा एकादशी व्रत का पालन अत्यंत नियमपूर्वक किया जाता है। एक दिन पहले प्रातः स्नान कर शुद्ध भोजन ग्रहण किया जाता है। इस दिन केवल सात्विक आहार लिया जाता है। लहसुन, प्याज, मांस, मदिरा आदि वर्जित रहता है। व्रत के दिन प्रातःकाल स्नान करके भगवान विष्णु की प्रतिमा या चित्र के सामने दीपक जलाया जाता है। गंगाजल से आचमन कर और व्रत का संकल्प लिया जाता है। भगवान नारायण के साथ गौरी-गणेश और शिव की भी पूजा करना चाहिए। विष्णु सहस्रनाम का पाठ करना चाहिए या 'ॐ नमो भगवते वासुदेवाय' मंत्र का जप करना चाहिए। दिनभर उपवास रखकर आवश्यकतानुसार फलाहार या केवल जल ग्रहण किया जा सकता है। इस व्रत में रातभर भजन-कीर्तन और कथा श्रवण करने का विशेष महत्व होता है। दीप दान करने से पुण्य कई गुना बढ़ जाता है। द्वादशी तिथि को सूर्योदय के बाद व्रत का पारण करने से पहले ब्राह्मणों को भोजन कराकर, दान देकर स्वयं अन्न ग्रहण करना चाहिए।

इस व्रत से सभी पापों का क्षय होता है। भगवान विष्णु भक्त को धर्म और मोक्ष की प्राप्ति होता है। व्रती को बैकुंठ धाम जाने का अवसर मिलता है। इस व्रत का पालन करने से घर-परिवार में सुख-शांति और समृद्धि आती है। बहनें इस दिन अपने भाइयों की दीर्घायु और कल्याण के लिए व्रत करती हैं।



धार्मिक मान्यता के साथ-साथ एकादशी का वैज्ञानिक महत्व भी है। महीने में दो बार एकादशी उपवास करने से शरीर की डिटॉक्स प्रक्रिया होती है। उपवास से पाचन तंत्र को आराम मिलता है। शरीर की ऊर्जा और इम्युनिटी बढ़ती है। मानसिक शांति और एकाग्रता प्राप्त होता है।

भारत के विभिन्न राज्यों में इस एकादशी को अलग-अलग ढंग से मनाया जाता है। बिहार और झारखंड में बहनें भाई की लंबी उम्र के लिए व्रत करती हैं। उत्तर प्रदेश के लोग इस दिन गंगा स्नान और दान-पुण्य करते हैं। मध्यप्रदेश और राजस्थान में मंदिरों में विशेष झांकियां सजती हैं और भजन-कीर्तन होते हैं। दक्षिण भारत में इसे 'परिवर्तनी एकादशी' के नाम से मनाया जाता है।

इस दिन किया गया दान अक्षय पुण्य देने वाला होता है। अन्न, वस्त्र, जल का दान करना शुभ होता है। तुलसी दल चढ़ाने से भगवान विष्णु अति प्रसन्न होते हैं। गौदान और ब्राह्मणों को भोजन कराने से व्रत का फल अनेक गुना हो जाता है।

कर्मा-धर्मा एकादशी यह सिखाती है कि जीवन में केवल कर्म करना ही पर्याप्त नहीं है, बल्कि धर्म के साथ किया गया कर्म ही श्रेष्ठ होता है। भगवान विष्णु करवट बदलते हैं, यह प्रतीक है कि जीवन में परिवर्तन और संतुलन आवश्यक है।

कर्मा-धर्मा एकादशी व्रत केवल धार्मिक अनुष्ठान नहीं है, बल्कि यह जीवन जीने की कला भी सिखाता है। यह संयम, साधना और आत्मशुद्धि का मार्ग दिखाता है। पापों से मुक्त होकर पुण्य की ओर बढ़ने का अवसर प्रदान करता है और सबसे बड़ा संदेश देता है धर्म से जुड़कर ही सच्चे सुख और मोक्ष की प्राप्ति संभव है। इस प्रकार आयुष्मान योग और रवियोग जैसे दुर्लभ संयोगों में पड़ने वाली कर्मा-धर्मा एकादशी हर दृष्टि से जीवन को मंगलमय बनाने वाली है।



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