मुजफ्फरपुर के छात्रों के लिए खुशखबरी है। अब बीआरएबीयू (बाबासाहेब भीमराव अंबेडकर बिहार विश्वविद्यालय) में मखाना और सिंघाड़ा पालन का कोर्स शुरू होने जा रहा है। यह कोर्स वोकेशनल स्टडीज के तहत होगा और छात्रों को न सिर्फ नई पढ़ाई का विकल्प देगा बल्कि उन्हें रोजगार के नए अवसर भी उपलब्ध कराएगा।
सीसीडीसी प्रो. तरुण कुमार डे के अनुसार, मखाना और सिंघाड़ा इस इलाके की पहचान हैं। मुजफ्फरपुर, दरभंगा, मधुबनी और आसपास के जिलों में मखाना उत्पादन बड़े पैमाने पर होता है। सिंघाड़ा की खेती भी यहां खूब होती है। ऐसे में इनसे जुड़े कोर्स को शुरू करना न सिर्फ शिक्षा के क्षेत्र में नवाचार है, बल्कि स्थानीय अर्थव्यवस्था को भी बढ़ावा देगा।
इस कोर्स के माध्यम से छात्र मखाना और सिंघाड़ा की खेती, प्रोसेसिंग, मार्केटिंग और बिजनेस मॉडल के बारे में गहराई से सीख पाएंगे। इससे वे स्वरोजगार शुरू कर सकते हैं या कृषि-आधारित कंपनियों में नौकरी हासिल कर सकते हैं। आज मखाना की डिमांड देश ही नहीं, विदेशों में भी बढ़ रही है। ऐसे में इस क्षेत्र में प्रशिक्षित युवाओं की मांग भविष्य में और बढ़ने की संभावना है।
सीसीडीसी ने बताया कि जिन कॉलेजों के बगल में तालाब या जलाशय हैं, वहां फिश एंड फिशरी कोर्स भी शुरू किया जाएगा। मुजफ्फरपुर और उत्तर बिहार में मत्स्यपालन की बहुत संभावनाएं हैं। छात्रों को इस कोर्स के जरिये मछली पालन की आधुनिक तकनीक, प्रजनन, पोषण और मार्केटिंग का ज्ञान मिलेगा। इससे वे मत्स्यपालन के क्षेत्र में भी करियर बना सकते हैं।
इन कोर्सों का सबसे बड़ा फायदा यह होगा कि ग्रामीण इलाकों के छात्र अपनी पढ़ाई के साथ-साथ अपने गांव में ही व्यवसाय शुरू कर पाएंगे। मखाना-सिंघाड़ा और मछली पालन से सीधे ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूती मिलेगी और पलायन की समस्या भी कम होगी।
बीआरएबीयू का यह कदम युवाओं के लिए अवसरों के नए द्वार खोलने वाला है। शिक्षा को स्थानीय जरूरतों से जोड़ने की यह पहल न केवल छात्रों को रोजगार दिलाने में मदद करेगी, बल्कि क्षेत्रीय विकास में भी अहम योगदान देगी। मखाना और सिंघाड़ा पालन का यह कोर्स कृषि और उद्योग के बीच सेतु का काम करेगा और उत्तर बिहार को एक नई पहचान दिला सकता है।
