आभा सिन्हा, पटना
भारतीय उपमहाद्वीप में फैले 51 शक्तिपीठों का वर्णन न केवल देवी सती के अंगों के गिरने की गाथा है, बल्कि यह हिन्दू आस्था, संस्कृति और शक्ति उपासना की समृद्ध परंपरा का जीवंत प्रमाण भी है। इन शक्तिपीठों में एक विशेष स्थान रखता है चटगांव (वर्तमान बांग्लादेश) के चंद्रनाथ पर्वत की चोटी पर स्थित "भवानी शक्तिपीठ", जहाँ देवी सती की दायीं भुजा गिरी थी। यह स्थान आज भी लाखों श्रद्धालुओं की आस्था और साधना का केंद्र बना हुआ है।
भवानी शक्तिपीठ बांग्लादेश के चटगांव जिला के सीताकुंड उपजिला में स्थित है। यह स्थान चंद्रनाथ पर्वत की ऊँचाई पर स्थित है, जो समुद्र तल से लगभग 1152 फीट ऊँचा है और बांग्लादेश के कुछ गिने-चुने पर्वतीय क्षेत्रों में से एक है। इस पर्वत की भव्यता केवल प्राकृतिक सौंदर्य में नहीं है, बल्कि इसकी आध्यात्मिक ऊर्जा में भी विद्यमान है।
"छत्राल" या "चहल" नामक स्थान, जिसे स्थानीय रूप में 'चट्टल' कहा जाता है, इसी पर्वत के शिखर पर स्थित है और यहाँ ही भवानी शक्तिपीठ अवस्थित है। यहाँ से समुद्र और जंगल दोनों के अद्भुत दृश्य देखने को मिलता है, जो किसी साधक या भक्त को सहज ही ध्यान और साधना में लीन कर देते हैं।
हिन्दू धर्म की सबसे प्रसिद्ध पुराण कथाओं में एक है, सती और शिव की कथा, जो शक्तिपीठों की उत्पत्ति का मूल आधार बनती है।
देवी सती ने जब अपने पिता दक्ष प्रजापति के यज्ञ में स्वयं को अग्नि को समर्पित कर दिया क्योंकि उन्होंने महादेव का अपमान किया, तब महादेव ने क्रोध में आकर उनका पार्थिव शरीर उठाकर तांडव नृत्य प्रारंभ किया। यह दृश्य सम्पूर्ण ब्रह्मांड के लिए विनाशकारी होने लगा। तब भगवान विष्णु ने सुदर्शन चक्र से सती के शरीर को 51 भागों में विभाजित कर दिया। जहाँ-जहाँ सती के अंग गिरे, वहाँ-वहाँ शक्तिपीठों की स्थापना हुई।
इसी श्रृंखला में देवी की दायीं भुजा चंद्रनाथ पर्वत पर गिरी, जहाँ भवानी शक्तिपीठ की स्थापना हुई। यहाँ देवी को "भवानी" और भैरव को "चंद्रशेखर" कहा जाता है। चंद्रशेखर स्वरूप शिव का शांत और ध्यानस्थ रूप माना जाता है, जो इस क्षेत्र की साधना परंपरा के अनुरूप है।
भवानी शक्तिपीठ किसी आधुनिक मंदिर की तरह भव्य नहीं है, बल्कि इसका सौंदर्य इसकी प्राचीनता, साधना की गंध और प्राकृतिक परिवेश में समाया है। पत्थरों से बने इस मंदिर में देवी की प्रतिमा विराजमान है जो भक्तों के लिए अतुलनीय श्रद्धा का केंद्र है।
मंदिर के पास ही स्थित है चंद्रनाथ शिव मंदिर, जहाँ शिव का चंद्रशेखर रूप पूजा जाता है। शिव और शक्ति की यह जोड़ी यहाँ विशेष महत्व रखती है और "शिव-शक्ति" एकता का गूढ़ संदेश देती है।
यहाँ आने वाले भक्त अक्सर नवरात्र, महाशिवरात्रि और दुर्गा पूजा के अवसर पर बड़ी संख्या में दर्शन के लिए आते हैं। सीढ़ियाँ चढ़ते हुए पहाड़ी रास्तों से गुजरना कठिन होता है, लेकिन जैसे-जैसे भक्त ऊपर चढ़ते हैं, एक अद्भुत ऊर्जा और दिव्यता का अनुभव उन्हें कष्ट से परे आनंद की ओर ले जाता है।
भवानी शक्तिपीठ का उल्लेख कई प्राचीन ग्रंथों और यात्रा संस्मरणों में मिलता है। "तंत्र चूड़ामणि", "शक्तिसंगम तंत्र", "महाभागवत पुराण" और "शक्ति पीठ स्तोत्र" जैसे ग्रंथों में इसे प्रमुख शक्तिपीठ के रूप में मान्यता दी गई है।
चंद्रनाथ पर्वत की कठिन चढ़ाई और यहाँ की साधना परंपरा यह संकेत देती है कि यह स्थान तपस्वियों, योगियों और साधकों का केंद्र रहा है। ऐसी मान्यता है कि कई सिद्ध योगियों ने यहाँ साधना की और उन्हें साक्षात देवी के दर्शन हुए।
बांग्लादेश विभाजन के पूर्व यह स्थान भारतवर्ष के तीर्थ यात्राओं के मानचित्र में प्रमुख स्थान रखता था। आज भी कई भारतीय श्रद्धालु धार्मिक वीज़ा पर इस शक्तिपीठ के दर्शन हेतु चटगांव पहुँचते हैं।
भवानी शक्तिपीठ जिस पर्वत पर स्थित है, वह "सीताकुंड इको पार्क और बॉटनिकल गार्डन" के अंतर्गत संरक्षित है। यहाँ अनेक दुर्लभ वनस्पतियाँ, औषधीय पौधे और विविध पक्षी व जीव पाए जाते हैं।
इस स्थान की एक विशेषता यह भी है कि यहाँ "सप्तधारा जलप्रपात" (Seven Springs) नामक झरना भी है, जिसे स्थानीय लोग पवित्र मानते हैं। भक्त इस जल में स्नान करके मंदिर की ओर प्रस्थान करते हैं।
इस पूरे क्षेत्र को ध्यान, साधना और प्राकृतिक चिकित्सा के लिए उपयुक्त माना जाता है। अनेक साधक और योगी यहाँ आज भी साधना के लिए समय व्यतीत करते हैं।
बांग्लादेश एक मुस्लिम बहुल देश है, फिर भी चटगांव क्षेत्र में हिन्दू समुदाय की उपस्थिति विशेष रूप से धार्मिक स्थलों पर देखी जा सकती है। यहाँ के स्थानीय बंगाली हिन्दू भवानी माँ को अत्यंत श्रद्धा से पूजते हैं।
हर वर्ष यहाँ भवानी मेला का आयोजन किया जाता है, जिसमें न केवल स्थानीय हिन्दू बल्कि बौद्ध, ईसाई और मुस्लिम समुदाय के लोग भी हिस्सा लेते हैं। यह मेला सांस्कृतिक एकता और धार्मिक सौहार्द्र का प्रतीक बन चुका है।
भले ही यह शक्तिपीठ पौराणिक और आध्यात्मिक रूप से अत्यंत महत्वपूर्ण है, परंतु वर्तमान में यह स्थान कई प्रकार की चुनौतियों से जूझ रहा है। मंदिर परिसर और इसके आस-पास के क्षेत्र का पर्याप्त संरक्षण नहीं हो रहा है। विदेशी नागरिकों (खासतौर पर भारतीयों) को दर्शन हेतु अनुमति और वीजा प्रक्रियाओं का सामना करना पड़ता है। धार्मिक पर्यटन को बढ़ावा देने हेतु कोई विशेष सरकारी योजना लागू नहीं है।
बांग्लादेश सरकार और भारत सरकार के बीच धार्मिक तीर्थ यात्राओं को लेकर सहयोग बढ़ा है, जिससे भवानी शक्तिपीठ में पुनः भक्तों की संख्या में वृद्धि देखी जा रही है।
चंद्रनाथ पर्वत पर स्थित भवानी शक्तिपीठ केवल एक मंदिर नहीं, अपितु एक ध्यान-धाम है। अनेक योगियों ने यहाँ तपस्या की है और चंद्रनाथ की गुफाओं में वर्षों तक साधना कर सिद्धियाँ प्राप्त की हैं।
यहाँ की ऊर्जा इतनी प्रबल है कि साधारण भक्त भी कुछ समय ध्यान में बिताकर मानसिक शांति, चेतना का जागरण और ईश्वरीय अनुभूति प्राप्त करते हैं।
भवानी शक्तिपीठ केवल इतिहास की धरोहर नहीं है, बल्कि आज भी जीवंत ऊर्जा और दिव्य शक्ति का स्रोत है। यहाँ देवी का वरदहस्त भक्तों पर बना रहता है, जो उन्हें कठिनाईयों से निकालकर शक्ति, भक्ति और मोक्ष के मार्ग पर अग्रसर करता है।
